वीर शिवा जी | आल्हा छंद | वीर शिवा जी की जयगाथा
वीर शिवा जी
(आल्हा छंद)
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वीर शिवा जी की जयगाथा,
गूंज रही है चारों ओर ।
मात भवानी के ये सुत थे,
नहीं चला मुगलों का जोर ।।
जन्म लिए थे शिवा तीस में,
धन्य किए शिवनेरी नगर ।
पिता शाह जी के गौरव थे,
जीजा मां के शिवा कुवंर ।।
धीर वीर वे महावीर थे,
प्रजा करे उनकी जयकार ।
वीर मराठा ताज बने हैं,
रण – बीच मचा हाहाकार ।।
रंग चढ़ा भगवा गहरा था,
बने प्रजा के थे रक्षक ।
नारी का आदर करते थे,
शत्रुओं के शिवबां भक्षक ।।
वीर स्वाभिमानी योद्धा थे,
युद्ध लड़े वो छापामार ।
सिर अपना था नहीं झुकाया,
लगा मुगल का था दरबार ।
मुगल सल्तनत चूर चूर कर,
बरस पड़े थे बनकर काल ।
हिन्दू समाज के संस्थापक,
जलाई ज्योति थी चिर काल ।।
राम दास के शिष्य अनोखे,
महादेव का कर के गान ।
तलवार तीर साथी उनके,
अखंड भारत की थे शान ।।
वीर मराठा के चरणों में,
शत शत करती हूं मै नमन ।
वीर शिवा छत्रपति कहलाए,
बने राष्ट्र की थे धड़कन ।।
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सारिका अवस्थी
एम ए उत्तरार्ध
रायबरेली शिवगढ़
दबाव और प्रभाव में खब़र न दबेगी,न रुकेगी