काम पर कल से मत आना / सम्पूर्णानंद मिश्र
काम पर कल से मत आना
केवल एक
वाक्य नहीं है
कि कल से
मत आना काम पर
बल्कि
गिर जाना है यह
अनचाहे गर्भ का
जिन्हें
स्वजन के टोटके से
भी बचाना पड़ता है निरंतर
ताकि
भविष्य का फूल
खिल सके समय पर
दरअसल
इस वाक्य का
धारदार चाकू
सीधा- सीधा
नृशंस हत्या करता है
किसी के सपनों का
वैसे
रोज़
किसी की आशाएं
दम तोड़तीं हैं
बाज़ारों में
क्या फ़र्क पड़ता है
तमाशा देखते हैं
और
चुपचाप
घर चले जाते हैं
और यह वृत्तांत
सुनाते हैं रोचकता से
पत्नी को
और इतिसिद्धम के
घोष की मुहर
स्वयं लगाते हैं अपने माथे पर
लेकिन
काम पर मत आना कल से की आवाज़
सुनाई पड़ती है
जब अपने कानों को
तो एक अदद कील आत्मा
में बेतरह धंस जाती है
जिसकी चुभन
कई रातों तक
अपने होने का
निर्मम एहसास कराती है
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874