महाराणा प्रताप का नाम इतिहास के पन्नों में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ प्रण के लिये अमर है : अभिनव सिंह

  • गुमावां लाही बॉर्डर चौराहे पर हर्षोल्लास पूर्वक मनाई गई महाराणा प्रताप की जयन्ती

शिवगढ़,रायबरेली। शिवगढ़ क्षेत्र के लाही बॉर्डर गुमावां स्थित राधे कृष्णा हॉस्पिटल परिसर में नरसिंह ऑटोमोबाइल बजाज एजेंसी के प्रबन्धक सूरज सिंह के नेतृत्व में हर्षोल्लास पूर्वक महाराणा प्रताप सिंह की जयन्ती मनाई गई। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित करणी सेना के बाराबंकी जिलाध्यक्ष अभिनव सिंह ने महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर माला चढ़ाकर उनके जीवन पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालते हुए कहा कि महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था।

महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने जंगल में रहकर घास की रोटी खाई किन्तु मुगल बादशहा अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया किंतु दुर्भाग्य था कि महाराणा प्रताप अकबर से हल्दीघाटी के युद्ध में हार गए। सूरज सिंह ने कहा कि महाराणा प्रताप मेवाड़ के महान हिंदू शासक थे, उनके संघर्ष की कहानी को सभी जानते हैं।

सोलहवीं शताब्दी के राजपूत शासकों में से महाराणा प्रताप ऐसे शासक थे जो अकबर को लगातार टक्कर देते रहे। 18 जून 1576 ई. को हल्दीघाटी का युद्ध मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था।
ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे।

मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी। महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था। हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 20000 सैनिक थे और अकबर के पास 85000 सैनिक इसके बावजूद महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे।

अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए 6 शान्ति दूतों को भेजा था, जिससे युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से खत्म किया जा सके, लेकिन महाराणा प्रताप ने यह कहते हुए हर बार उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया कि राजपूत योद्धा यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता। इस मौके पर नरसिंह ऑटोमोबाइल के प्रबंधक एवं काशी विश्वनाथ के सक्रिय सदस्य सूरज सिंह,राधे कृष्ण हॉस्पिटल के मालिक सचिन सिंह नितिन सिंह, डॉ.पवन सिंह सौरभ सिंह, ऊदल सिंह आदि लोग उपस्थित रहे।

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