आफताब को सौंपों सीधे श्रृद्धा के घरवालों को

आफताब को सौंपों सीधे श्रृद्धा के घरवालों को


 

मानवता हो गई तार तार यह दानव बढ़ता जाता है।

प्यार कहाँ बाजार कहाँ कुछ समझ नही अब आता है।

 

तू मेरी है मै तेरा हूँ वह दूर हो गया आज ख्वाब।

आखिर वह कौन समस्या थी तू क्रूर हो गया आफताब।

 

क्या नारी कोई खिलौना है जिसने जब चाहा बाँट दिया।

जब तक जी चाहा खेला फिर टुकडों टुकड़ों में काट दिया।

 

जो हाथ उठा अबलाओं पर उनके हर खण्ड बाँटने को।

कोदण्ड बहुत लालायित है तेरे भुजदण्ड काटने को।

 

लेकिन न्यायालय ने अब तक तो केवल पेपर मोडे हैं।

तेरे जैसे कितने वह निर्भीक दरिंदे छोडे है।

 

हे न्यायालय हे न्यायमूर्ति अब मत छोडों चण्डालों को।

आफताब को सौंपों सीधे श्रृद्धा के घरवालों को।

 

– अंकित यादव अंकुल, रायबरेली उत्तर प्रदेश

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *