मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल आंखों के लिए है घातक : डॉक्टर धर्मेंद्र सिंह

रिपोर्ट – अंगद राही 

  • आँखे अनमोल है इसे बचाइए : रमेश बहादुर सिंह

रायबरेली। आर्यवर्त आई हॉस्पिटल के निदेशक और रायबरेली के वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉ. धर्मेंद्र सिंह ने आज एक निजी स्कूल में छात्र छात्राओं को नेत्र संबंधी अहम जानकारियां दी।कचेहरी रोड स्थित एसजेएस पब्लिक स्कूल में आयोजित एक कार्यक्रम में डॉ.धर्मेंद्र सिंह ने छात्र छात्राओं के साथ नेत्र संबंधी तमाम अहम जानकारियां साझा की। उन्होंने छात्र छात्राओं को बताया कि आंखें ईश्वर की अनमोल देन है और अगर आंखों की सही से देखभाल नहीं की गई तो नेत्र संबंधी कई बीमारियां हो सकती है।उन्होंने कहा कि जिन बच्चों में दृष्टि दोष होता है उन्हें शिक्षा हासिल करने में तमाम मुश्किलें आती हैं, लेकिन अगर समय रहते ही नेत्र संबंधी तमाम बीमारियों को पहले ही पता लगा लिया जाए तो इसे आगे बढ़ने से रोका जा सकता है। उन्होंने बच्चों को एमबलायोपिया और मायोपिया के बारे में जानकारी दी।

एमबलायोपिया के बारे में जानकारी देते हुए डॉ धर्मेंद्र सिंह ने बताया सरल शब्दों में इसका तात्पर्य स्वस्थ नेत्र होते हैं इससे बच्चों में विजन का डेवलपमेंट कम हो जाता है और अगर इसका समय रहते इलाज नहीं किया गया तो बच्चों में पूरी तरीके से विजन खत्म हो जाता है।उन्होंने बच्चों को ज्यादा देर तक कंप्यूटर लैपटॉप और मोबाइल फोन से दूर रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि डिजिटल गैजेट के साथ ज्यादा वक्त गुजारने वाले बच्चों को अक्सर नेत्र संबंधी बीमारियां हो जाती हैं और उन्हें दृष्टि दोष हो जाता है।

उन्होंने बच्चों को पोशक भोजन करने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि बच्चों को अपने आहार में हरी साग सब्जियां औऱ रंगीन फल इस्तेमाल करने की सलाह दी। इससे पहले उन्होंने तमाम शिक्षकों को भी एक प्रोजेक्टर के माध्यम से नेत्र संबंधी जानकारियां दी।डॉ धर्मेंद्र सिंह पिछले कई दिनों से रिफ्रेक्टिव एरर प्रोग्राम के जरिये एसजेएस के बच्चों का निशुल्क नेत्र परीक्षण कर रहे हैं।

एसजेएस ग्रुप ऑफ स्कूल के चेयरमैन रमेश बहादुर सिंह ने कहा कि डॉ धर्मेंद्र सिंह का प्रयास सराहनीय है। आंखें अनमोल है इसे बचा कर रखिए क्योंकि आंखें ही वह खिड़की है जिसे हम इस दुनिया को देखते हैं। स्कूल की प्रधानाचार्य डॉ बीना तिवारी ने डॉ धर्मेंद्र सिंह का आभार व्यक्त करते हुए उन्हें धन्यवाद दिया। कार्यक्रम के अंत मे उन्हें एक प्रतीक चिन्ह प्रदान किया गया।

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