पुलिस की कड़ी निगरानी में शान्तिपूर्वक सम्पन्न चेहल्लुम

  • हर बार की तरह चेहल्लुम में देखने को मिगी हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल।

शिवगढ़,रायबरेली। शिवगढ़ थाना क्षेत्र के बैंती कस्बे में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच चेहल्लुम का त्यौहार सम्पन्न हुआ। गौरतलब हो कि शिवगढ़ थाना प्रभारी राकेश चंद्र आनंद, उप निरीक्षक पंचमलाल सहित भारी तादाद में मौजूद पुलिस कर्मियों की कड़ी निगरानी में शांतिपूर्वक तरीके से चेहल्लुम का त्यौहार सम्पन्न हुआ।

चेहल्लुम के त्यौहार में शांति व्यवस्था बनाए रखने को लेकर थाना प्रभारी के नेतृत्व में शिवगढ़ पुलिस पूरी तरह अलर्ट मोड पर रही। बैंती बाजार से जुलूस निकालकर कस्बे का भ्रमण करते हुए तकिया चौराहा होते हुए ऊंचवा पर जाकर जुलूस समाप्त हुआ। जहां से कबीरादान होते हुए कर्बला पर ले जाकर ताजियों को दफन किया गया।

जुलूस में प्रधान प्रतिनिधि जानकीशरण जायसवाल,बैंती मस्जिद के पेश इमाम मोहम्मद असीर, क्षेत्र पंचायत सदस्य दिनेश रावत के साथ ही भारी संख्या में हिंदू मुस्लिम भाई मौजूद रहे। हर त्यौहार की तरह चेहल्लुम में भी हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल देखने को मिली। पेश इमाम मोहम्मद असीर ने चेहल्लुम की जानकारी देते हुए बताया कि मुहर्रम के 40 वें चेहलुम मनाया जाता।

उन्होंने बताया कि मैदाने कर्बला में शहीद हुए इमाम हुसैन व उनके 71 अनुयायियों की शहादत के चालीस दिन बाद चेहल्लुम मनाया जाता है। इमाम हुसैन मोहर्रम की दसवीं पर शहीद हुए थे,चालीसवें पर हम शनिवार को उनके और उनके साथियों की शहादत को एक बार फिर याद करेंगे। उन्होंने बताया कि हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम और मानवता के लिए यजीदियों की यातनाएं सही।

करबला के मैदान में हुसैन का मुकाबला ऐसे जालिम व जाबिर शख्शियत से था, जिसकी सरहदें मुलतान और आगे तक फैली हुई थी। उसके जुल्म को रोकने के लिए इमाम हुसैन आगे बढ़े। उस समय उनके साथ मात्र 72 हकपरस्त (सैनिक) थे, तो दूसरी तरफ यजीद की 22000 हथियारों से लैस फौज थी।

ईमान के लिए वे अपना सब कुछ गंवाने को तैयार थे। करबला की जंग देखने में एक छोटी सी जंग थी, लेकिन यह जंग दुनिया की सबसे बड़ी जंग साबित हुई। जिसमें मुट्ठी भर लोगों ने अपनी शहादत देकर दुनिया को एक रोशनी दिखाई थी। शहीद होकर इस्लाम का परचम लहराया था। यजीद ने केवल मोर्चा जीता था लेकिन ¨जदगी का जंग तो वह हार गया था। हजरत इमाम हुसैन ने शहादत कबूल करके ये पैगाम दिया कि शहादत मौत नहीं जो दुश्मन की तरफ से हम पर लादी जाती है। बल्कि शहीद एक मनचाही मौत है।

जिसे मुजाहिद पूरी आगाही, मंतिक सउर बेदारी और अपनी बसीरत के साथ चुनता है। मुहर्रम की दसवीं तारीख को करबला के मैदान में नवासा-ए-रसूल हजरत इमाम हुसैन ने 72 हकपरस्तों (सैनिकों) के काफिले के साथ दीन-ए- रसूल को बचाने के लिए अपनी और अपने घर व खानदान वालों के साथ कुर्बानी दी। इसमें मर्द व दुधमुंहे बच्चे भूखे-प्यासे शहीद हो गए थे।

इमाम हुसैन की शहादत के बाद काफिले में बची औरतें व बीमार लोगों को यजीद की सेना ने गिरफ्तार कर लिया था। उनके खेमे (टेंट) में आग लगा दी गई। यजीद के कब्जे वाले काफिले को यजीद ने मदीना जाने की अनुमति दी और सैनिकों से वापस पहुंचाने को कहा। हजरत-ए-जैनुल आब्दीन पर मदीना से वापसी के दौरान करबला पहुंचे और शोहदा-ए-करबला की कब्र की जयारत यानी दर्शन की। जो इमाम हुसैन की शहादत का चेहल्लुम (चालीसवां) दिन था। हजरत इमाम हुसैन के शहादत की याद में शादात के 40वें दिन चेहल्लुम मनाया जाता है।

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