Tuesday, September 26, 2023
Homeउत्तर प्रदेशपुनः न कहना कभी 'नाश सर्वस्व हुआ है' | आरती जायसवाल

पुनः न कहना कभी ‘नाश सर्वस्व हुआ है’ | आरती जायसवाल

पुनः न कहना कभी ‘नाश सर्वस्व हुआ है’अभी तुम्हारा मेरा होना शेष है।


जीवन की
डगमग राहों पर
चलते-चलते ,
सुख में हँसना ,
दुःख में रोना
शेष है ।
ख़त्म नहीं होती हैं
उहापोह इस मन की
अभी कोई अनसुलझा
कोना शेष है।
वो बचपन की हँसी
ठिठोली ,
गाँव के उस मिट्टी की
रोली ,
नेह बँधे वो प्रीत के धागे
हम जिनके पीछे थे भागे ,
उन धागों में
प्रेम पिरोना शेष है।
रूढ़ि और मिथ्या अहंकार की
अग्नि में भस्मित
अपनी इच्छाओं की
अब तक दाह शेष है,
आत्मप्रेमवश उपजी अपनी आत्मकथा में
अब तक मन में पोषित होती
चाह शेष है,
काल की गति-मति में धुंधला-धुंधला
अभी भी अपना पाना-खोना शेष है।
मर्यादा ,कर्तव्य-परिधि में बँधकर
रहना ,
अपनी ही खींची वर्जनाओं को सहना ,
कितनी ही मृत भावनाओं का बोझ उठाए ,
अभी ये भारी जीवन ढोना शेष है।
अन्तर्मन के अन्तस में
स्मृति शेष है ,
प्रेम-वियोग में व्याप्त
कोई आवृत्ति शेष है ,
मर्त्यलोक के पार
मिलन की आस शेष है ,
चिर-प्रतीक्षित
हृदय का आभास शेष है ,
कभी दृष्टि भर देख सकें
एक बार पुनः
इन नयनों में आकुलता की
प्यास शेष है,
जन्म-जन्म की मृगतृष्णा के
मधुर भँवर में
अभी तुम्हारा मेरा होना शेष है ।

-आरती जायसवाल

सर्वाधिकार सुरक्षित।मेरे अप्रकाशित काव्य संग्रह —–‘जीवन-दाह’ से।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments