पिता को समर्पित | सारिका अवस्थी

पिता को समर्पित


 

हे पितु ! क्या अर्पण करूं तुम्हे,

तुम मेरे भाग्यविधाता हो ।

ना जानूं ईश्वर कौन कहां,

बस तुम ही मेरे विधाता हो ।।

 

आता जब भी मुझ पर संकट,

बन ढाल सम्मुख आ जाते हो ।

जब जब भी मै डर जाती हूं,

कसकर सीने से लगाते हो ।।

 

धूप छांव ये गर्मी सर्दी,

सब सहते तुमको देखा है ।

तुम बने विशाल तरुवर की भांति,

छांव नेह की देते देखा है ।।

 

सागर सी गहराई मन में,

मन ही मन तुम सब सह लेते,

आंखो में छलकते आंसू जब,

पलको से अपनी छुपा लेते ।।

 

तुम प्रेरक हो इस जीवन के,

कैसे मै वर्णन करूं भला ।

अन्तर्मन में बस प्रेम स्नेह,

हे पितु !क्या तुम पर लिखूं भला ।।

 

साथ तुम्हारे रहती हूं जब,

जीवन लगता यह जन्नत है ।

रहे हाथ सदा सिर पर मेरे,

बस जीवन की यही मन्नत है ।।

– लेखिका – सारिका अवस्थी

D/O-  देवेन्द्र अवस्थी

शिवगढ़ रायबरेली

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