जरा संभल कर चलना ये है भवानीगढ़- सूरजपुर सम्पर्क मार्ग

शिवगढ़,रायबरेली। वर्ष 2017-18 में प्रधानमंत्री सड़क योजना अन्तर्गत निर्मित क्षेत्र का भवानीगढ़ सूरजपुर सम्पर्क मार्ग जगह-जगह गड्ढों में तब्दील हो गया है, जिसमें गिरकर स्कूली छात्र-छात्राएं एवं राहगीर आए दिन दुर्घटना का शिकार होते रहते हैं। जिस पर साधन से चलना तो दूर की बात पैदल चलना भी दुश्वार हो रहा है ग्रामीणों की शिकायतों के बावजूद जिम्मेदार कुम्भकर्णी नींद में सो रहे हैं। गौरतलब हो कि वर्ष 2017-18 में भवानीगढ़ से सूरजपुर तक 7 किलोमीटर लम्बे इस सम्पर्क मार्ग का निर्माण 3. 87 करोड़ की लागत से किया गया था, 5 वर्षों तक हर साल कार्यदाई संस्था को इस सम्पर्क मार्ग की रिपेयरिंग कराना था। जिसमें पटरियों की सफाई, पूल-पुलियों की रंगाई पुताई शामिल थी। किन्तु विभागीय अधिकारियों और कार्यदाई संस्था के बीच बन्दरबांट के चलते एक बार भी ना तो ठीक तरह से इस सम्पर्क मार्ग की रिपेयरिंग कराई गई और ना ही पटरियों की सफाई और पुल पुलियो की रंगाई पुताई कराई गई। ग्रामीणों के विरोध प्रदर्शन के बावजूद साढ़े 5 वर्षों में सिर्फ दो बार रस्म अदायगी के लिए छोड़- छोड़कर सड़क की रिपेयरिंग कराई गई। जिसको लेकर ग्रामीणों में कार्यदाई संस्था एवं प्रधानमंत्री सड़क योजना विभाग के अधिकारियों के खिलाफ गहरा रोष व्याप्त है।

ग्रामीण रामहर्ष, विपिन सिंह, एडवोकेट गौरव मिश्रा, मायाराम रावत, राजेंद्र कुमार सहित ग्रामीणों का कहना है कि भवानीगढ़-सूरजपुर सम्पर्क मार्ग बाराबंकी जनपद की सीमा से जुड़ा होने के कारण इस सम्पर्क मार्ग पर हजारों छात्र-छात्राओं के साथ ही 24 सों घण्टे राहगीरों का आवागमन रहता है।

सम्पर्क मार्ग के गड्ढों में तब्दील होने के चलते राहगीरों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आक्रोशित ग्रामीणों का कहना है कि सरकार का सड़कों को गड्ढा मुक्त करने का दावा हवा हवाई साबित हो रहा है। ग्रामीणों की माने तो अदम गोंडवी की ये पंक्तियां “तुम्हारी नजरों में गांव का मौसम गुलाबी है मगर यह दावे झूठे हैं ये आंकड़े किताबी हैं” चरितार्थ हो रही है। इस सम्पर्क मार्ग की जल्द मरम्मत ना होने पाए ग्रामीणों ने आंदोलन की चेतावनी दी है।

कार्यदाई संस्था द्वारा नहीं कराई गई थी इण्टरलॉकिंग

सड़क के निर्माण के समय गांवों में सड़क के दोनों ओर कार्यदाई संस्था को इण्टरलॉकिंग कराना था। जिसके लिए इण्टरलॉकिंग ईटें आई थी। किन्तु कार्यदाई संस्था और विभागीय अधिकारियों के बीच बन्दरबांट के चलते कार्यदाई संस्था ने बगैर इण्टरलॉकिंग कराए ईटें वापस कर दी। जिसको लेकर ग्रामीणों ने जिलाधिकारी से शिकायत भी की थी किंतु नतीजा शून्य रहा।

साढ़े 5 वर्ष बीत जाने के बाद भी कार्यदाई संस्था ने इण्टरलॉकिंग कराना मुनासिब नहीं समझा। ऊंची पहुंच और मनमानी के चलते कार्यदाई संस्था के हौसले बुलन्द हैं। ग्रामीणों ने जांच कराकर कार्यवाही करने की मांग की है।

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