32 साल पहले बना कानून आखिर क्यों एक बार फिर चर्चा में…
देश भर में मंदिर मस्जिद विवाद और काशी और मथुरा में पूजा के अधिकार को लेकर एक याचिका ने 32 साल पहले बने एक कानून को फिर से चर्चा में ला दिया है। जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। जमीयत ने एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एजाज मकबूल के जरिये सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिस पर ग्रीष्मावकाश के बाद सुनवाई होने की उम्मीद है। मदन की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि जमीयत उलेमा ए हिंद बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि संपत्ति विवाद मामले में एक प्रमुख पक्ष था। जिसमें प्लेस आफ वर्शिप एक्ट की धारा 4 को स्वीकार कर लिया गया है और कानून की संवैधानिक सूरते हाल को सर्वोच्च न्यायालय ने भी मान्यता दी है।
याचिका में कहा गया है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 को लागू किए जाने के दो उद्देश्य थे। किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति में बदलाव को रोकना और पूजा स्थलों को उसी में रखना जिस अवस्था में वे 1947 में थे। बाबरी मस्जिद जन्मभूमि संपत्ति मामले के फैसले में अदालत द्वारा बरकरार रखा गया था। बता दें कि ज्ञानवापी मस्जिद मामला वाराणसी जिला न्यायालय में पेंडिंग है, जबकि सुप्रीम कोर्ट में एक से अधिक ऐसी याचिकाएं दायर हैं जिनमें अदालत को पूजा स्थल अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करने के लिए कहा गया है।
आपको बता दें कि 1991 में लागू कानून में कहा गया है कि पूजा स्थलों की स्थिति जो आजादी के समय 15 अगस्त 1947 को थी उसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। इस कानून में अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि को अलग रखा गया था। अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि केस के अलावा अगालतों में लंबित ऐसे सभी मामले समाप्त समझे जाएंगे। कानून के बारे में बताते हुए तत्कालीन गृह मंत्री एस बी चव्हाण ने संसद में कहा कि यह सांप्रदायिक तनाव को रोकने के लिए इसे लाया गया।