चौथे दिन सुनाई गई सीता स्वयंवर एवं भगवान राम-सीता के विवाह की अनुपम कथा
रिपोर्ट अंगद राही
शिवगढ़,रायबरेली। शिवगढ़ क्षेत्र के प्राचीन कालीन श्री बरखण्डीनाथ महादेव मंदिर में चल रही सात दिवसीय श्री रामकथा के चौथे दिन कथावाचक नरसिंह दास जी महाराज ने सीता स्वयंवर एवं राम-सीता विवाह की कथा सुनाई। कथा के दौरान कलाकारों ने बीच-बीच में आकर्षक झांकियां दिखा कर पूरा माहौल भक्तिमय कर दिया। यह दिन बहुत खास ही रहा। सीता स्वयंवर के बाद भगवान राम और सीता का बड़े ही धूम-धाम से विवाह हुआ। कथा सुनाते हुए नरसिंह दास जी महाराज ने कहा कि राम राजा दशरथ के घर पैदा हुए थे और सीता राजा जनक की पुत्री थी।
मान्यता है कि सीता का जन्म धरती से हुआ था इसीलिए माता सीता को धरती पुत्री भी कहा गया है। एक बार पृथ्वी पर सूखा पड़ने पर राजा जनक हल चला रहे थे उसी समय उन्हें घड़े में एक नन्ही सी कन्या मिली थी जिसका नाम उन्होंने सीता रखा था। सीता जी को जनकनंदिनी के नाम से भी पुकारा जाता है। एक बार सीता ने शिव जी का धनुष उठा लिया था जिसे परशुराम के अतिरिक्त और कोई नहीं उठा पाता था। राजा जनक ने यह निर्णय लिया कि जो भी शिव का धनुष उठा पाएगा सीता का विवाह उसी से करेंगे।
सीता के स्वयंवर के लिए घोषणाएं कर दी गई। स्वयंवर में भगवान राम और लक्ष्मण ने भी प्रतिभाग किया। सीता स्वयंवर में कई देशों से राजा,महराजा एवं राजकुमार आए पर कोई भी शिव जी के धनुष को नहीं उठा सका।
राजा जनक हताश हो गए और उन्होंने कहा कि क्या कोई भी मेरी पुत्री के योग्य नहीं है? तब महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम को शिव जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने को कहा। गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान राम शिव जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने लगे और धनुष टूट गया।
इस प्रकार सीता जी का विवाह राम से हुआ। राम सीता का जीवन प्रेम, आदर्श, समर्पण और मूल्यों को प्रदर्शित करता है। राम-विवाह के दौरान कथा सुन रहे दर्शकों द्वारा जमकर पुष्प वर्षा की गई। इस मौके पर लवकुश मिश्रा,अंजनी कुमार दीक्षित ,राज दीक्षित, राजीव दीक्षित, रामकुमार अवस्थी, विष्णु कुमार गोस्वामी , अनिल शुक्ला, अनूप मिश्रा, सुसील गोस्वामी, रिंकू जासवाल आदि लोग उपस्थित रहे।
