कबिरादान बाबा के मन्दिर से निकले असंख्य भंवरों ने छुड़ा दिए थे राजा के छक्के
शिवगढ़,रायबरेली। रायबरेली जिले के लखनऊ,उन्नाव, रायबरेली के बॉर्डर पर स्थित भवरेश्वर मन्दिर से निकने वाले भंवरों की कहानी तो आपने सुनी होगी। किंतु आज हम आपको ऐसे ही एक दूसरे मन्दिर से जुड़ी कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं जिसके विषय में आपने कभी नहीं सुना होगा। हम बात कर रहे हैं रायबरेली के शिवगढ़ क्षेत्र में स्थित प्राचीन कालीन कबीरादान मन्दिर की।
ग्राम पंचायत बैंती के कबीरादान गांव में स्थित प्राचीन कालीन कबीरादान बाबा का मन्दिर जिसके प्रांगण में प्रत्येक वर्ष होली के आठव को लगने वाला बाबा का ऐतिहासिक मेला जिसका जीता जागता प्रमाण है। बताते है कि राजतंत्र में धवलपुर रियासत में लगने वाले बैंती गांव में स्थित कबीरादान बाबा का मन्दिर कभी एक टीला हुआ करता था।
एक बार दूसरी रियासत के राजा ने होली के आठव के दिन उस समय बैंती गांव पर आक्रमण कर दिया जब सभी ग्रामीण होलिकोत्सव मना रहे थे। आक्रमणकारी राजा की विशाल सेना के आगे बैंती गांव में मौजूद धवलपुर स्टेट की मुट्ठी भर सेना पर्याप्त न थी। किंतु उसी समय टीले से निकले असंख्य भवरें आक्रमणकारी राजा की सेना पर टूट पड़े। टीले से निकले असंख्य भवरों ने राजा की सेना के छक्के छुड़ा दिए। भंवरों के आक्रमण से आक्रमणकारी राजा की विशाल सेना भाग खड़ी हुई, अन्तत: बैंती गांव की विजय हुई।
जिसके बाद ग्रामीणों ने बड़ी ही सिद्दत से टीले को मन्दिर का आकार देकर मन्दिर को कबीरादान बाबा नाम दे दिया और पूजा अर्चना शुरु कर दी। और प्रत्येक वर्ष होली के आठव के दिन मन्दिर में मेला लगवाना शुरु कर दिया। यहीं कारण है कि करीब 500 वर्षों से होली के आठव के दिन ग्रामीणों के सामूहिक सहयोग से मन्दिर में ऐतिहासिक मेले एवं विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता चला आ रहा हैं।
ग्रामीणों की मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से बाबा के दर्शन के लिए आता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। कबीरादान बाबा के मन्दिर के प्रति ग्रामीणों की अटूट आस्था है आज भी ग्रामीण कोई भी शुभकार्य करने से पहले कबीरादान बाबा के मन्दिर में माथा टेककर कार्य सिद्धि के लिए बाबा का आशीर्वाद लेते हैं।
दबाव और प्रभाव में खब़र न दबेगी,न रुकेगी