कौए / सम्पूर्णानंद मिश्र
कौए /सम्पूर्णानंद मिश्र
आंसू है
दु:खी कौओं
की आंखों में
गहरे सदमे में हैं
नहीं ग्रहण किए
अन्न का एक भी कण आज
दरअसल
निरंतर निर्मम प्रहार किया गया है
इनकी चोंचों पर
सभ्य मानवों द्वारा
आज भी दर-दर
भटक रहे हैं
पूर्वजन्म की गलती से
अपनी रिहाई की अर्जी लिए
छत की मुंडेर पर
रोज घंटे दो घंटे बैठकर
उड़ जाते हैं
फिर निराश होकर
अपने सीने में दफ़नाते हैं
उपेक्षा के दर्द को
भूखे प्यासे
आस लगाए
थक जाते हैं
और पेट सहलाते हुए
सो जाते हैं
नहीं देख रहे हैं
पितृ विसर्जन पर
अन्न की तरफ़
क्योंकि उनकी अतृप्त आत्मा
नहीं गवाही दे रही है
अन्न का एक कण भी छूने की
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874