बीजेपी के शेर पर क्यों दहाड़ रहा विपक्ष, जानिए क्या कहता है कानून?
संसद भवन में नई इमारत पर राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न का अनावरण होते ही यह चर्चा का विषय बन गया। बता दें की जब से देश के नए संसद भवन की छत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विशालकाय अशोक स्तंभ का अनावरण किया गया है, इस पर विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। अब विपक्ष का कहना है कि राष्ट्रीय प्रतीक में फेरबदल किया गया है। आरोप लग रहे हैं कि अशोक स्तंभ की डिजाइन के साथ छेड़छाड़ की गई है. मूर्तिकार जरूर इन दावों को खारिज कर रहे हैं, लेकिन विपक्ष लगातार हमलावर है। कई नेताओं का कहना है कि सेंट्रल विस्टा की छत पर स्थापित राष्ट्रीय प्रतीक के शेर आक्रामक मुद्रा में नजर आते हैं जबकि ओरिजिनल स्तंभ के शेर शांत मुद्रा में हैं। यह विवाद टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा के ट्वीट के बाद शुरू हो गया जब उन्होंने कहा कि अब सत्यमेव जयते से सिंहमेव जयते की ओर जा रहे हैं।
अशोक स्तंभ का क्या है इतिहास?
सम्राट अशोक मौर्य वंश के तीसरे शासक थे। उन्हें सबसे शक्तिशाली शासकों में गिना जजाता है। उनका जन्म 304 ईसा पूर्व हुआ था। उनका साम्राज्य तक्षशिला से लेकर मैसूर तक फैला हुआ था। पूर्व में बांग्लादेश से पश्चिम में ईरान तक उनका राज्य था। सम्राट अशोक ने अपने साम्राज्य में कई जगहों पर स्तंभ स्थापित करवाकर यह संदेश दिया था कि यह राज्य हमारे अधीन है। कई जगहों पर अशोक के बनवाए स्तंभ मिले हैं जिनमें शेर की आकृति बनी है। लेकिन सारनाथ और सांची में उनके स्तंभ में शेर शांत दिखते हैं। माना जाता है कि ये दोनों प्रतीक उनके बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद बनवाए गए।सम्राट अशोक ने अपने जीवनकाल में कई युद्ध लड़े। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ा काम किया और तक्षशिला, विक्रमशिला और कांधार विश्वविद्यालय स्थापित करवाए। 261 ईसा पूर्व जब कलिंग के युद्ध में भारी नरसंहार हुआ तो सम्राट अशोक को बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने हथियार रखने का फैसला कर लिया। उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। इसके बाद भी उन्होंने अशोक स्तंभ बनवाए जिसमें शेरों की छवि को शांत और सौम्य बनाया गया।
क्या है अशोक स्तंभ का संदेश?
सारनाथ के अशोक स्तंभ को 26 अगस्त 1950 में राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया। महत्वपूर्ण सरकारी दस्तावेजों, मुद्राओं पर अशोक स्तंभ दिखायी देता है। यह प्रतीक सम्राट अशोक की युद्ध और शांति की नीति को दर्शाता है। इसमें के चार शेर आत्मविश्वास, शक्ति, साहस और गौरव को दिखाते हैं। वहीं इसमें नीचे की तरफ एक बैल और घोड़ा बना है। बीच में धर्म चक्र है। पूर्वी भाग में हाथी और पश्चिम में बैल है। दक्षिण में घोड़े और उत्तर में शेर है। इनके बीच में चक्र बने हुए हैं। इसी चक्र को राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया गया है। स्तंभ में नीचे सत्यमेव जयते लिखा गया है जो कि मुंडकोपनिषद का एक सूत्र है।
क्या कहता है कानून?
ऐसे में सबसे पहले सवाल तो सह उठता है की क्या सही में भारत सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों में बदलाव कर सकती है? अब इस विवाद का जवाब भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 से जुड़ा हुआ है. बाद में जब इस कानून को 2007 में अपडेट किया गया था. बता दें की जब अशोक स्तंभ को राष्ट्रीय प्रतीक माना गया तो उसको लेकर कुछ नियम भी बनाए गए। अशोक स्तंभ का इस्तेमाल सिर्फ संवैधानिक पदों पर बैठे लोग ही कर सकते हैं। इसमें भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सांसद, विधाक, राज्यपाल, उपराज्यपा और उच्च अधिकारी शामिल हैं। राष्ट्रीय चिह्नों का दुरुपयोग रोकने के लिए भारतीय राष्ट्रीय चिह्न (दुरुपयोग रोकथाम) कानून 2000 बनाया गया। इसे 2007 में संशोधित किया गया। इसके मुताबिक अगर कोई आम नागरिक अशोक स्तंभ का उपयोग करता है तो उसको दो साल की कैद या 5 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
सेक्शन में कहा गया है कि जरूरत पड़ने पर केंद्र सरकार के पास हर वो परिवर्तन करने की ताकत है जिसे वो जरूरी समझती है. इसमें राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव वाली बात भी शामिल है. वैसे एक्ट के तहत सिर्फ डिजाइन में बदलाव किया जा सकता है, कभी भी पूरे राष्ट्रीय प्रतीक को नहीं बदला जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट संजय घोष कहते हैं कि 2005 एक्ट के तहत सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है, लेकिन ये याद रखना जरूरी है कि ये प्रतीक भारत के लोकतंत्र का अहम हिस्सा हैं, उनकी एक अलग ऐतिहासिक पहचान है. ऐसे में सरकार कभी भी कुछ बदलने का फैसला लेती है तो उसे काफी सोच-समझकर फैसला लेना चाहिए.
अब डिजाइन में तो सरकार बदलाव कर सकती है, लेकिन क्या पूरे राष्ट्रीय प्रतीक को भी बदला जा सकता है? यहां ये जानना जरूरी हो जाता है कि कानून के तहत तो सिर्फ डिजाइन में भी बदलाव किए जा सकते हैं. लेकिन जैसा देश का संविधान है, सरकार किसी भी कानून में समय-समय पर बदलाव ला सकती है, उनका संशोधन कर सकती है.
इस बारे में एडवोकेट राधिका रॉय बताती हैं कि केंद्र सरकार के पास सिर्फ राष्ट्रीय प्रतीक के डिजाइन में बदलाव करने की ताकत नहीं है बल्कि वो पूरा राष्ट्रीय प्रतीक भी बदल सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो सरकार को ऐसे बदलाव करने से रोक सके. ऐसे में कानून में संशोधन कर और फिर दोनों सदनों से उसे पारित करवाकर पूरे राष्ट्रीय प्रतीक को भी बदला जा सकता है.
NALSAR के वाइस चांसलर फैजान मुस्तफा ने भी इस विवाद पर अहम जानकारी दी है. वे बताते हैं कि आर्टिकल 51A और National Honors Act में ये स्पष्ट रूप से बताया गया है कि किसी भी भारतीय को अपने राष्ट्रीय प्रतीकों का कैसे सम्मान करना चाहिए. इसमें राष्ट्रीय ध्वज से लेकर राष्ट्रगान तक शामिल है.