धर्म संस्कृति : देवताओं के चार हाथ क्यों होते हैं
धर्म संस्कृति : कहा जाता है कि देवताओं की दो भुजाएं स्त्रियों की होती है और दो भुजाएं पुरुषों की होती है इसी कारण उनके चार हाथ होते इसका दूसरा कारण है बताया जाता है कि मनुष्य के जीवन के चार लक्ष्य होते हैं जैसे कि हमारी अनेकों कामना होती है जिन की पूर्ति के लिए हम देवताओं की शरण में जाते हैं तो सभी देवता हमें धर्म-कर्म मोछ और अर्थ का आशीर्वाद प्रदान करते हैं इनके जो चार हाथ है वह हमें अर्थ कर्म मोछ्य और धर्म का मार्ग बताते हैं इसे पुरुषार्थ के कारण देवताओं को चतुर्भुज भी कहा जाता है और मनुष्य जीवन को इन्हीं कर्मों के साथ व्यतीत करता है इसलिए देवताओं के चार हाथ होते हैं देवता के जो चार हाथ होते हैं वह अर्थ धर्म कर्म मोक्ष हैं.
इसी पुरुषार्थ के कारण देवताओं को चतुर्भुज कहते हैं और मनुष्य को इन्हीं को बातो को पूरे जीवन में याद रखना चाहिए और जहां तक हो सके हमें बुरे कर्मों से बच कर रहना चाहिए और हमेशा सच्चाई का रास्ता अपनाना चाहिए क्योंकि बुरे का रास्ता एक दिन बुराई की तरफ ही हमें ले जाता है देवता के चार हाथ का मतलब यही है कि हमें परोपकार की भावना रखने और हमेशा सत्य मार्ग पर चलना चाहिए क्यों होते हैं.
चार युग सतयुग कलयुग द्वापर त्रेता युग और देवताओं के चारों हाथों का मतलब है कि देवता लोग अपने चारों हाथों में अपने चारों युगों समाए हुवे हैं इसलिये देवताओं के चार हाथ होते हैं और दिशाएं हमारी चार होती है पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण पूरब की दिशा में वाराह देवता का निवास होता है पश्चिम दिशा में गोविंद देवता का वास होता है उत्तर में श्री पति देवता का वास होता है और दक्षिण में मृत्युलोक होता है जिसके देवता यमराज हैं देवताओं के चार हाथ क्यों होते हैं देवताओं के चारों हाथों से देवताओं की विशेषता की पहचान होती है जैसे कि भगवान विष्णु अपने चारों हाथों में और दोनों उठी भुजाओं में कुछ ना कुछ धारण किए हुए हैं एक हाथ में गदा दूसरे में त्रिशूल तीसरे हाथ में चक्र और चौथे हाथ में शंख धारण किए हुए हैं और वो अपने चारों हाथों कुछ न कुछ संकेत देते हैं और हमे सत्मार्ग पर चलने का उपहार देते हैं और मनुष्य को अच्छे मार्ग और सत्कर्म करने की प्रेरणा देने के कारण देवताओं के चार हाथ होते हैं.