अशक्ति ही सुख दुख का कारण है : मुनिंद्रा दास जी महराज
शिव पार्वती की कथा सुन मंत्रमुग्ध हुए श्रोता
4 अप्रैल को होगा विशाल भण्डारे का आयोजन
शिवगढ़,रायबरेली। क्षेत्र के ग्राम पंचायत पड़रिया स्थित नाग देवता नगदवा बाबा के मन्दिर प्रांगण में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक मुनींद्रा दास जी महाराज ने शिव पार्वती विवाह और शुकदेव जन्म की रोचक कथा का वर्णन किया। भागवत कथा को सुनने के लिए आसपास के सैकड़ों भक्त पहुंचे। भगवान के जयकारे से समूचा मन्दिर प्रांगण गूंज उठा।
मनिंद्रा दास जी महराज ने भक्तों को बताया कि हिमालय राज की कन्या पार्वती बड़ी होने लगती हैं। पार्वती ने मन में प्रण लिया की वह शिव को पति के रूप में प्राप्त करेंगी। देवता भी शिव को मनाते हैं कि वह पार्वती से विवाह कर लें लेकिन शिव इसके लिए तैयार नहीं हुए। माता पार्वती शिव को प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या करती हैं। भगवान शिव प्रसन्न हो विवाह के लिए तैयार हो जाते हैं। देवताओं , भूत ,पिशाचों को लेकर तन में भस्म लगाए शिव बारात लेकर हिमालयराज के यहां पहुंचते हैं। माता मैना दूल्हे का भेष देखकर डर जाती हैं और पार्वती का विवाह करने से मना कर देती हैं।
सभी ने समझाया कि शिव कोई साधरण नहीं हैं, वह तो देवों के देव हैं। उन्होंने बताया कि मां पार्वती और भगवान शिव का विवाह होता है और देवता पुष्पों की वर्षा करते हैं। अगले प्रसंग में भगवान शिव माता पार्वती को अमर कथा सुना रहे हैं, माता को नींद आ जाती है और उनकी जगह एक तोता हुंकारी भरने लगता है। जब शिव को पता चला तो उन्होंने शुक को मारने के लिए त्रशूल छोड़ दिया।
तीनों लोकों में भागता शूक व्यास के आश्रम पहुंचा और उनकी पत्नी के मुख से गर्भाशय में पहुंच गया। जहां वह बारह वर्ष तक रहे और भगवान कृष्ण के आश्वासन के बाद जन्म लिया। मुनिन्द्रा दास जी महराज ने कहा कि अशक्ति ही सुख दुख का कारण है। यदि संसार में ये अशक्ति है, तो दु:ख का कारण बन जाती है। यही अशक्ति भगवान और भक्ति में हो जाए तो मोक्ष का द्वार खुल जाता है। उन्होंने सती प्रसंग ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए प्रभु चरित्र का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि उनके शील गुण से प्रसन्न होकर भगवान ने प्रभुजी को उनकी रूचि के अनुसार दस हजार कानों की शक्ति प्राप्त करने का वरदान दिया, जिससे वे अर्धनिश प्रभु का गुणगान सुनते रहें। इसके बाद ऋषभ देव के चरित्र वर्णन करते हुए कहा कि मनुष्य को ऋषभ देव जी जैसा आदर्श पिता होना चाहिए। जिन्होंने अपने पुत्रों को समझाया कि इस मानव शरीर को पाकर दिव्य तप करना चाहिए, जिससे अंत:करण की शुद्धि हो तभी उसे अनंत सुख की प्राप्ति हो सकती है। भगवान को अर्पित भाव से किया गया कर्म ही दिव्य तप है।
इस मौके पर जजमान हिमाचल सिंह व उनकी धर्मपत्नी कोमल सिंह, पूर्व प्रधान रामराज सिंह, हरिमोहन सिंह जगत, बहादुर सिंह, रघुराज सिंह, उदयराज सिंह, राजाराम सिंह, ओम प्रकाश सिंह, दान बहादुर सिंह, बद्री सिंह, शिव बक्स सिंह, जगजीवन सिंह भदौरिया, तेज बहादुर सिंह, रामहर्ष यादव, दयाशंकर यादव, दिनेश यादव, शिवकरन सिंह, महिपाल सिंह, देशराज यादव,अरविंद सिंह के साथ ही भारी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।