चुनाव के समय नेता उड़ाते हैं गरीबो का मजाक मीडिया भी करती है नेताओं का सहयोग-नरेंद्र सिंह फौजी जनसत्ता दल
रायबरेली : कुछ लोगों को हमेशा एक गलतफहमी रहती हैं कि जो गरीबों के हक का,अधिकार का,विकास का गरीब मजदूर का , किसान का एवं जीवन यापन के लिए प्राइवेट नौकरी कर रहे युवा बेरोजगारों के खून पसीने की कमाई को हडप कर इठलाते हैं उनको गरीबों की तकलीफ महंगाई आलू प्याज आटा चावल दाल मसाला गैस डीजल पेट्रोल रोजमर्रा की वस्तुओं की लगातार हो रही महंगी वस्तुओं की कीमत नहीं पता चल पा रही है ।आज जिसके घर में सरकारी नौकरी नहीं है जिसके बच्चे बेरोजगार हैं उनके घर जाकर पूछिए क्या होती है महंगाई। चुनाव के समय में एक दिन एक जून का खाना गरीब के घर खा कर फोटो खिंचवा लेने से उस गरीब के घर की गरीबी नहीं दूर हो जाती किस तरह के नेता उसकी गरीबी का मजाक उड़ाते हैं और वही समाज का चौथे स्तंभ माने जाने वाले प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी बड़े-बड़े शब्दों में उनको प्रचारित करती है कि मानो वह नेता कई सालों से उस गरीब के घर में रहकर जीवन यापन कर रहा हो।
मैं बिल्कुल साफ शब्दों में कहना चाहता हूं कि आज भारत में यह स्थिति में बन रही है जिसमें एक कोने में पड़ा गरीब भारत जिसमें मजदूर मजबूर शोषित पीड़ित प्रभावित जो उद्योगपतियों से पूजी पतियों से समाज के मजबूत वर्ग से अपने आप को दबे कुचले समझते हैं और एक अमीर भारत जो कि गरीबों की तकलीफों को समझ नहीं पा रहा है ऐसा लगता है कि सब खुशहाल है पूरा भारत वर्ष खुशी मना रहा है हर त्यौहार मना रहा है परंतु जरा दिल्ली से आकर उस गांव की स्थिति देखिए जहां किसान के पसीने से मेहनत से पैदा किए गए अनाज को वही एहसान रूप में उसे दोबारा सरकार अपनी वाहवाही के लिए देती है क्या यही भारत है क्या जिन्होंने भारत के लिए अपना बलिदान दे दिया भारत को स्वतंत्र करने के लिए पूरा जीवन न्योछावर कर दिया तो क्या यही उनका सपना था क्या इसी इसीलिए वह भारत को आजादी दिला कर गए थे कि आज अपना ही अपने का शोषण करने में लगा है अपना ही अपनों के पैर खींचने में लगा है अपना ही अपनों को चूसने में लगा है ।
आज युवाओं को सोचना होगा समझना होगा विचार करना होगा क्या यही राजनीति है क्या यही सेवा नीति है कि राजनीति का उद्देश्य केवल पूंजीपति होना उद्योगपति होना अपने स्वार्थ के लिए अपने परिवार के लिए अपने नाते रिश्तेदारों को आगे बढ़ाने के लिए उनको अच्छी जगह बैठाने के लिए उन्हीं के विकास तक के लिए ही राजनीतिक सेवा होती हैं उन्हीं के लिए ठेका टेंडर सुविधाएं होना चाहिए या राजनीति का उद्देश्य उन लोगों के लिए सेवा होना चाहिए जिनका कोई नहीं जो केवल भगवान के भरोसे जीवन जी रहे हैं एक सरकार से बड़ी आशा और उम्मीद करते हैं कि हमने सरकार बनाया है सरकार मेरा सहारा बनकर मेरी आशा उम्मीदों पर खरा उतरे बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कोरोना संक्रमण के बाद आज लोग जीवन जी नहीं पा रहे हैं मजबूर हैं आत्मदाह कर रहे हैं।
यह आवाज दिल्ली तक कब पहुंचेंगी और कौन पहुंचाने वाला होगा और कब तक हमारा समाज इस तरह के अवसरवादी मौकापरस्त लोगों को कुर्सी दिलाते रहेंगे जो केवल चुनाव के समय में ही अपने क्षेत्र में दिखाई पड़ते हैं अनेकों तरह से वादा करते हैं लोगों को बहला-फुसलाकर उनको पैसा देकर उनको शराब पिलाकर उनके मताधिकार को खरीद लेते हैं तो क्या इस तरह के लोग आपकी सेवा के लिए तत्पर रहेंगे यह एक बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह और हम सब को समझना होगा जानना होगा और निर्णय लेना होगा कि राजनीति सेवा भाव के लिए कर रहा है और कौन राजनीति मेवा भाव के लिए कर रहा है अपने पूर्व प्रधानमंत्री स्व० लाल बहादुर शास्त्री जी कहकर गए थे जय जवान जय किसान परंतु आज आधुनिक भारत में सबसे ज्यादा दयनीय स्थिति जवान की है और किसान की जो अपनी पसीने की कमाई से अनाज पैदा करता है पूरे देश का पेट भरता है और उसी अनाज को विचवलिए उसी को दुगने और तिगुने दाम में उसको एहसान स्वरूप योजनाओं के रुप में वापस करते हैं और कहते हैं कि मैंने योजना के द्वारा गरीब को यहां दे रहा हूं और एक तरफ वही भारत देश की सीमाओं की सुरक्षा कर रहे हैं।
उन जवानों का जो कि माइनस 40 डिग्री सेल्सियस में दुर्गम क्षेत्रों में अपनी जान की बाजी लगाकर सीमाओं की सुरक्षा कर रहे हैं किसी पूंजीपति का किसी उद्योगपति का किसी राजनेता का बच्चा देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए नहीं जाता है यहां पर भी वही किसान का बेटा गरीब का बेटा गांव का बेटा देश की सुरक्षा कर रहा है देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा रहा है और यहां लोग उन पर भी राजनीति करते हैं यह मेरी व्यक्तिगत सोच है अगर आप मेरी सोच से मेरे विचार से तो आप अपने कमेंट के माध्यम से मेरे मनोबल को ऊंचा करने का प्रयास करें – नरेन्द्र सिंह फौजी प्रदेश महासचिव सैनिक प्रकोष्ठ जनसत्ता दल लोकतांत्रिक उत्तर प्रदेश।