स्वाधीनता | सारिका अवस्थी | Hindi Kavita
🇮🇳 स्वाधीनता 🇮🇳
═════════════════════
पराधीनता के बंधन में,
जब जकड़ा देश हमारा था ।
गोरो के बने खिलौने थे,
छीना अधिकार हमारा था ।।
यह जन्मभूमि थी हम सबकी,
बन कर गुलाम हम जीते थे ।
हिंसा की चढ़ते बेदी थे,
पर उस भी ना कह सकते थे ।।
दो पल की मिलती ना रोटी,
बस जुल्म हमे ही सहना था ।
तब खोई इस आजादी का,
फिर मूल्य सभी ने जाना था ।।
तोड़ गुलामी की जंजीरें,
कफन बांध सब निकल पड़े,
खोई आजादी पाने को,
लड़े मृत्यु से, अड़े रहे ।।
जाने कितनी मांओं के ही,
बेटे हवन हुए होगे ।
सूनी पथराई आंखो के,
संबल भी दूर हुए होगे ।।
आजादी की रण बेदी पर,
कुमकुम श्रृंगार धुले होगें।
उजड़ा सुहाग उन वधुओ का,
सिंदूरी स्वप्न जले होगे । ।
बलिदान देख इन वीरों का,
भारत माता भी रोई थी ।
देख शहादत वीरों की,
प्रकृति भी उस दिन सहमी थी ।।
अस्त हुए जो सूर्य भारत के,
आजादी का सूर्य उगा ।
आन नही मिटने पाए ,
रहे सलामत देश सदा ।।
सारिका अवस्थी
D/O- देवेन्द्र कुमार अवस्थी
बीएड प्रथम वर्ष
शिवगढ़, रायबरेली