19 से शुरू हो रहा पितृपक्ष,जानें तिथियां और श्राद्ध करने का सही समय
लखनऊ : पितरों की आत्मा की शांति के लिए साल का 15 दिन बेहद खास होता है,जिसे पितृपक्ष कहा जाता है।हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व होता है।कहते हैं कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और इस दौरान उनका नियमित श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्रद्धया इदं श्राद्धम यानी पितरों के निमित्त,उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है।
सनातन धर्म में आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या पूर्वजों के लिए समर्पित हैं।इस बार द्वितीया तिथि की हानि व प्रतिपदा तिथि मध्याह्न में 18 सितम्बर को मिल रहा है।श्राद्धकर्म सुबह ही किए जाते हैं।इसलिए 18 सितंबर को प्रतिपदा का श्राद्ध किया जा सकता है,लेकिन पितृपक्ष की शुरुआत 19 सितंबर से मानी जाएगी।द्वितीया तिथि के हानि की वजह से 19 सितंबर से 15 दिनों के पितृपक्ष की शुरुआत होगी।
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि शास्त्र के अनुसार श्राद्ध काल निर्णय के बारे में कहा गया है कि आठवां मुहूर्त कुतुप और नौवां रोहिणेय नामक होता है।रोहिणेय काल के बाद जिस तिथि का आरंभ हो उसमें श्राद्ध नहीं करना चाहिए।इसलिए भाद्र शुक्ल पूर्णिमा व प्रतिपदा का श्राद्ध 18 सितम्बर को किया जाएगा।ज्योतिषाचार्य ने बताया कि शास्त्र के अनुसार आश्विन कृष्ण प्रतिपदा उदयातिथि में 19 सितंबर को मिल रहा है, जबकि आश्विन कृष्ण प्रतिपदा तिथि 18 सितम्बर प्रात: 8:41 बजे पर लग रही है, जो 19 सितम्बर को प्रात: 6:17 बजे तक रहेगी।उदया में प्रतिपदा 19 सितम्बर को मिलने से पितृपक्ष 19 सितम्बर से प्रारंभ होगा।
पितृ विसर्जन दो अक्टूबर को
19 सितम्बर को द्वितीया का श्राद्ध किया जाएगा।पूर्णिमा व प्रतिपदा का श्राद्ध 18 सितम्बर को होगा,जबकि सर्वपितृ विसर्जन अमावस्या तिथि पर दो अक्टूबर को होगी।इसके अगले दिन तीन अक्टूबर से शारदीय नवरात्र आरंभ होगा।
शास्त्रों में तीन ऋण का वर्णन
शास्त्रों में मनुष्यों के लिए देव ऋण,ऋषि ऋण,पितृ ऋण बताए गए हैं,जिन माता-पिता ने हमारी आयु-आरोग्यता और सुख-सौभाग्यादि की अभिवृद्धि के लिए अनेकानेक प्रयास किए उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म लेना निरर्थक होता है।इसीलिए धर्मशास्त्र में पितरों के प्रति श्रद्धा समर्पित करने को पितृपक्ष महालया की व्यवस्था की गई है।पितृगण अपने पुत्रादिक से श्राद्ध-तर्पण की कामना करते हैं।यदि यह उपलब्ध नहीं होता तो वे नाराज होकर श्राप देकर चले जाते हैं।
पितरों को संतुष्ट करना आवश्यक
प्रत्येक सनातनी को वर्ष भर में उनकी मृत्यु तिथि को सर्वसुलभ जल,तिल,यव,कुश और पुष्पादि से श्राद्ध सम्पन्न करने और गौ ग्रास देकर एक,तीन,पांच आदि ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से पितृगण संतुष्ट होते हैं।उनके ऋणों से मुक्ति भी मिलती है।अत: इस सरलता से साध्य होने वाले कार्य की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।इसके लिए जिस मास की जिस तिथि को माता-पिता आदि की मृत्यु हुई हो उस तिथि को श्राद्ध-तर्पण,गौ ग्रास और ब्राह्मणों को भोजानादि कराकर कुछ दक्षिणा देना आवश्यक होता है।इससे पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार का सुख-सौभाग्य एवं समृद्धि की अभिवृद्धि होती है।
श्राद्ध दिन तारीख
प्रतिपदा बुधवार 18 सितंबर
द्वितीया बृहस्पतिवार 19 सितंबर (महालया शुरू)
तृतीया शुक्रवार 20 सितंबर
चतुर्थी शनिवार 21 सितंबर
पंचमी रविवार 22 सितंबर
षष्ठी सोमवार 23 सितंबर
सप्तमी मंगलवार 24 सितंबर
अष्टमी बुधवार 25 सितंबर
नवमी बृहस्पतिवार 26 सितंबर (मातृ नवमी व सौभाग्यवति स्त्रियों का श्राद्ध)
दशमी शुक्रवार 27 सितंबर
एकादशी शनिवार 28 सितंबर
द्वादशी रविवार 29 सितंबर (संन्यासी,यति, वैष्णवों का श्राद्ध)
त्रयोदशी सोमवार 30 सितंबर
चतुर्दशी मंगलवार 01 अक्टूबर (शस्त्र व दुर्घटना आदि में मृत्यु व्यक्ति का श्राद्ध)
सर्वपितृ अमावस्या (पितृ विसर्जन) बुधवार दो अक्टूबर (अज्ञात तिथि वालों का श्राद्ध, भगवान श्रीहरि के प्रसन्नार्थ ब्राह्मण भोजन, पितृ विसर्जन, महालया की समाप्ति