हज़रत क़ासिम का ताबूत का जुलूस उठा कर लोगो ने किया मातम
रिपोर्टर :-निशांत सिंह
परशदेपुर (रायबरेली) शुक्रवार 6 मुहर्रम की रात को हजरत इमाम हसन अलेहिस्सलाम के 13 हजरत कासिम अलैहिस्सलाम की शहादत का गम मनाया गया। कर्बला के मैदान में यजीद की फौज ने शहजादे कासिम को शहीद करके उनकी लाश को घोड़ों की टापों से पामाल (कुचल) दिया था। सातवीं मोहर्रम से ही यजीदयों ने हुसैनियों पर जुल्म ज्यादा बढ़ा दिये थे। भीषण गर्मी थी इसके बावजूद उन पर पानी बंद कर दिया गया। तीन दिन की भूख-प्यास की शिद्दत में परिवार और साथियों के साथ दी गयी कुर्बानियों को याद करके अजादार गम-ए-हुसैन में डूब गए। हजरत कासिम की शहादत का दर्दनाक मंजर सुन अजादार बेकरार हो उठे। नम आंखों से अजादारों ने आंसुओं का पुरसा पेश किया।
परशदेपुर के कज़ियांना में स्थित बड़े इमामबाड़ा आग़ा हुसैन में अशरे की छठवीं मजलिस को आज़गढ़ से आये हुए मौलाना सादिक़ खान ने खिताब किया।मौलाना ने बताया कि इस्लाम धर्म मे बताया गया है कि सबसे पहले इंसानियत का धर्म होना चाहये अगर आपका सगा भाई गलत है और कोई दूसरे धर्म का या कोई भी इंसान हक पर है तो आपको हक वाले का साथ देना चाहये। मौलाना ने इमाम हजरत अली अलैहिस्सलाम की एलान-ए-विलायात का जिक्र करते हुए कहा कि जब हजरत रसूल खुदा (स.) हज करके वापस आ रहे थे जब गदीर के मैदान में नबी-ए-करीम ने इमाम की विलायत का एलान किया था। रसूल द्वारा इमाम को अपना जनशीन घोषित करने के बाद भी जालिमों ने उनपर और उनके परिवार पर जुल्म करना नहीं छोड़ा।
दस मुहर्रम को इमाम के बेटे हजरत इमाम हुसैन अलेहिस्सलाम को उनके 72 जानिसारों के साथ कत्ल कर दिया गया, जिसकी याद में हर साल दुनियाभर में मुहर्रम मनाया जाता है।मजलिस के बाद हज़रत क़ासिम के ताबूत का जुलूस बड़े इमामबाड़े से निकला गया।जो अपने पुराने रास्तो से होता हुआ छोटे इमामबाड़े पहुँचा उसके बाद बड़े इमामबाड़े में पहुच कर समाप्त हुआ।जुलूस में डॉ आमिर,कबीर,अशर,शुजा ने अपनी पुरकशिश आवाज़ में नॉहाख्वानी करी जिसको सुन कर लोगो की आंखे नम हो गई।