निशब्द हो जाना सहसा / श्रवण कुमार पाण्डेय पथिक
निशब्द हो जाना सहसा / श्रवण कुमार पाण्डेय,पथिक
शब्द होते हुये भी,
सामर्थ्य होते हुए भी,
निशब्द हो जाना सहसा,
लगता ठीक वैसा,
जैसे बच्चों के बिना,
स्कूल अथवा मदरसा,
जैसे, कोई पुराना मंदिर,
किसी घने बीहड़ जंगल का,
अथवा कोई बूढ़ा भवन,
जिसमें अब कोई नहीं रहता,
ताकते तुकुर टुकुर
जैसे कोई उम्रदराज दम्पति,
बच्चे प्रवासी धनार्थ
सुबह शाम नीरस नित्यप्रति,
जैसे कोई वृध्द विधुर,
मेघों में खोजता कीर्तिशेष प्रिया,
कि जैसे कोई विधवा,
जिसने अपना सुहाग खो दिया
कायम जहां निशब्दता,
इस पर कोई भी किससे क्या कहे,
कोई नही समीप जो देखे,
कब आंसू कढे,कब बेआवाज बहे,
आखिर भीतर ही भीतर,
सुने आकृतज्ञ लोगों के कहकहे,
खुद से खुद ही कहे,सुने,
कोई कहां तक सहे,कितना दहे,
आधुनिकता बेरहम हो,
जब तानती निशब्द्ता का व्योम,
तब संस्कार उद्वेलित हो,
ओढ़ लेते हैं,एक कवच सा मौन,
मौन का धारण कर लेना,
पराजय का परिचायक नहीं है,
जब कोई न सुने आपकी,
उस समय हेतु मौन ही सही है,
मौन, मन का शौक नही,
मौन, निरुपायता भी नहीं मन की,
मौन ,स्वीकृत संकेत नहीं,
मौन ,एक भावना सघन घन सी,
मौन ,एक सशक्त जवाब है,
मौन ,की खुद की नव्य रंग,आब है,
मौन ,बहुत कुछ साधता है
मौन ,समयदुर्ग का समर्थ नवाब है,
मौन, सदा अपराजेय है,
मौन ,विश्लेश्य है,सुसंज्ञेय है,
मौन ,सर्वदा अनुपमेय है,
मौन ,एक स्थापित प्रमेय है,
मौन,समर्थ स्थिति है,
मौन ,अनासक्त,विरक्ति है,
मौन ,अहिंसक अभिव्यक्ति है,
मौन ,कोई बाजार की वस्तु नही,
मौन ,सात्विक ध्येय है,
मौन ,सब भांति अजेय है,
मौन, का कोई विकल्प नहीं,
मौन से ,प्रखर कोई आयुध नहीं,
श्रवण कुमार पाण्डेय,पथिक,