14 अगस्त / सम्पूर्णानंद मिश्र
14 अगस्त / सम्पूर्णानंद मिश्र
एक तारीख़ सिर्फ़ नहीं है
14 अगस्त
काला अध्याय है
इतिहास का
जिसकी पंक्तियां पढ़कर
खड़े हो जाते हैं
आज भी रौंगटे
रौंदा गया था
आज के दिन ही
हिंदुस्तान की आत्मा को
साम्प्रदायिकता की आग में
झोंका गया था मासूमों को
बताया गया था कि
तुम्हारा ख़ून बिल्कुल अलग है
सबसे भिन्न हो तुम
महफ़ूज नहीं हो इस छत के नीचे
जानलेवा है यह
आबो-हवा तुम्हारे लिए
चले जाना ही अच्छा होगा
तुम लोगों का यहां से
बड़ा कठिन था
समझना उनके लिए
कि कौन सी ज़मीन
कौन सा घर
सब मिलकर
एक साथ
एक दूसरे के
दु:ख के रथ के पहिया को
मुसीबत के दलदल से निकालते थे
नहीं समझ पा रहे थे वे
क्या करें
किंकर्तव्यविमूढ़ थे
सरहद के इस पार
अलगू चाचा
और उस पार करीम चाचा
किसका हाथ थामें
किसका छोड़े
हर जगह हो हल्ला
मार- काट चीख पुकार
बचाओ बचाओ की आवाज़
सबका ख़ून एक था
कल तक
और आज अलग-अलग
क्योंकि
दो फांक हो गए थे
देश के
बड़ा कठिन दौर था
मासूमों के लिए
यह जानना कि
सियासत का कौन सा रंग असली है
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874
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