लक्ष्मण-निषादराज,राम-केवट संवाद सुन भावविभोर हुए श्रोता
- पं. बृजेश शुक्ल शास्त्री ने सुनाई वन गमन की मार्मिक कथा
शिवगढ़,रायबरेली। क्षेत्र के लाही बॉर्डर गुमावां स्थित संकट मोचन मन्दिर में चल नहीं संगीतमयी सात दिवसीय श्री रामकथा के चौथे दिन सुविख्यात कथावाचक पं.बृजेश शुक्ल शास्त्री जी महराज ने अपनी अमृतमयी वाणी से निषादराज-लक्ष्मण संवाद, राम केवट संवाद की बड़ी ही मार्मिक कथा सुनाई जिसे सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए। वन गमन के दौरान अयोध्या के राजकुमार राम- जनक नंदिनी सीता और लक्ष्मन को कटीले एवं कंक्रीट भरे रास्ते में नंगे पैर चलते देखकर निषादराज भावुक हो उठा और उन्हे अपने महल ले जाने एवं उनसे अपनी नगरी का राजा बनने का अनुरोध किया। किन्तु राम ने उसके राजमहल में जाने एवं उसके राज्य का राजा बनने से इंकर कर दिया। जिसके बाद भगवान राम-सीता गंगा नदी के किनारे स्थित शीशम के पेड़ के नीचे विश्राम करते हैं जिनकी रक्षा के लिए निषाद राज चारों तरफ पहरा लगा देता है। किंतु लक्ष्मण कहते हैं इसकी जरूरत नहीं है इसके लिए एक भाई ही पर्याप्त है।
निषादराज भावुक होते हुए कहते है कि अयोध्या के राजभवन में पले राजकुमार राम,जनक नंदिनी सीता को विवाह के बाद सुख मिलना चाहिए किंतु कैकेई तूने एक बार भी नही सोंचा तू कितनी कुटिल और क्रूर हो गई। हे ईश्वर तू भी कितना निष्ठुर हो गया है जो राम-सीता को कटीले और कंक्रीट रास्तों से होकर दुख भोगने के लिए जंगल भेज दिया। माता कैकेई लिए निषादराज की बातें सुनकर लक्ष्मण से सहन नही हुआ और वे निषादराज को उपदेश देते हुए कहाकि इन्हें कोई कष्ट नहीं है, जिसे कोई कष्ट हो उसे क्या नींद आ सकती है।
शास्त्री जी ने एक राजा और मंत्री के प्रसंग के माध्यम से बताया कि ईश्वर जो करता है भले के लिए करता है, जो कर्म में लिखा है उसे कोई टाल नहीं सकता। जिसके बाद गंगा नदी पार करने के लिए श्रीराम केवट से बार-बार नाव लाने के लिए कहते हैं पर केवट नाव नही लाता है केवट जान जाता है कि ये भगवान श्री राम ही हैं, परंतु उसने नांव लाने से मना कर दिया जिसपर भगवान श्री राम ने नांव ना लाने की वजह पूछी, केवट ने उत्तर दिया और बोला, प्रभु मैं आपकी लीलाओं से अच्छी तरह अवगत हू, मैं जनता हू आपके चरणों की रज के जादू को जो एक पत्थर को सुन्दर नारी बना सकता है अगर आपकी जादू भरी पद रज एक कठोर पाषाण को नारी बना सकती है तो यह तो मात्र लकड़ी से बनी नांव है इसका तो क्या ही हाल होगा…? यह सब सुन स्वभाव से उग्र लक्ष्मण जी क्रोधित हो केवट को डांटने-फटकार्ने लगे, जिसपर भगवान राम ने उन्हें शांत किया और मुस्कुराकर केवट से बोले, केवटराज! कोई तो उपाय होगा जिससे हमें आप पार उतार सके…? यह सुन केवट बोले, हे प्रभु! आपको नांव पर चढ़ाने के लिए पहले मुझे आपके चरणों को धोना पड़ेगा। चरण धोने के बाद केवट उन्हे नदी पार कराई। गंगा पार उतरने के बाद भगवान श्रीराम असमंजस में पड़ जाते है कि केवट को इसके बदले में क्या दिया जाए। इस बारे में रामजी बहुत सोचते है, तब सीताजी ने अपनी अंगुली से अंगूठी निकालकर केवट को भेंट की। पर केवट से उतराई लेने से साफ मना कर देता है और कहता है कि मैया सीता के सभी आभूषण उतर गए है मैं इतना भी कठोर नहीं हूं कि बचे हुए आभूषण भी उतरवा लूं।
केवट ने भगवान से धन-दौलत, पद ऐश्वर्य, कोठी-खजाना नहीं मांगा। उसने सिर्फ भगवान से उनके चरणों का प्रक्षालन मांगा। भगवान ने उसके निस्वार्थ प्रेम को देखकर उसे दिव्य भक्ति का वरदान दिया तथा उसकी समस्त इच्छाओं को पूर्ण किया। इस मौके पर महंत राम कृष्ण दास, आनंद शुक्ला, राखी शुक्ला, शिवा शास्त्री, सूरज सिंह, लवलेश शुक्ला, सोनू, विनोद, राजेश, हरि बहादुर सिंह, राजेंद्र सिंह, अभिलाष मौर्या, हरियाणा दीक्षित, रेनू शुक्ला, दामिनी लक्ष्मण शुक्ला आदि श्रोतागण मौजूद रहे।
