कलम – ए – दर्द कहानी | अभय प्रताप सिंह | आज की कहानी
कलम – ए – दर्द कहानी | अभय प्रताप सिंह | आज की कहानी
मैं लिखना चाहता हूं , लेखक बनना चाहता हूं , और अब मैं लिखना शुरू कर दिया हूं , धीरे – धीरे ही सही पर अब लिखने लगा हूं क्योंकि मैं बहुत दिनों से कुछ लिखने का प्रयास कर रहा हूं ,ये होती है एक कलमकार की शुरुआत एक रचनाकार की शुरुआत ।
एक कलमकार या रचनाकार जब अपनी लेखनी की शुरुआत करता है तो उसे कुछ मालूम नहीं होता है शिवाय उस सपने के, जो वो कुछ नींद में और कुछ जागते हुए देखा होता है, वो प्रयास करता है , शुरुआत करता है, गलती करता है लेकिन अपने शब्दों का चयन कर, हर रोज़ मेहनत कर आगे बढ़ता है ।
वो दुःख – सुख , धूप – छांव , रात – दिन नहीं देखता है, वो हर पल सोचता रहता है और जब भी कोई शब्द उसके मन में किसी दृश्य , किसी पल , किसी चित्र या किसी व्यक्ति विशेष को देखकर आता है तो, वो अपने शब्दकोश में इस उम्मीद से उस शब्द को उतार लेता है मानो आज वो उसी शब्द पर लिखने वाला हो, या फिर उसी शब्द का सहारा लेकर लिखने वाला हो , एक रचनाकार , साहित्यकार ,कलमकार , सृजनकार , ग्रंथकर्ता , ग्रंथकार , कातिब अपना सबकुछ लिख देता है , बस पढ़ने वालों को, वो महज़ कुछ पंक्तियां या कुछ शब्दों की श्रृंखलाएं लगती हैं , शायद यही कारण है की सैकड़ों की भीड़ में कोई एक ” कातिब ” निकलता है।
आज़ कातिब अपनी लेखन जगह पर बैठा , सामने रखे मेज पर एक डायरी और कलम रखे कुछ सोच ही रहा था तभी कलम बोली …
क्या कर रहे हो कातिब ?
कातिब – थोड़ा मुस्कराते हुए …. कलम कर तो कुछ नहीं रहा हूं बस आज कुछ लिखने की सोच रहा हूं।
कलम – अच्छा
कातिब – हां
कलम – तुम लोगों को तो लिखना बहुत आसान लगता होगा न ( असमंजस में )
कातिब – हां आसान तो लगता है बस ये मानो की शब्दों के कुवें में कूदना पड़ता है जहां लाखों – करोड़ों शब्दों का भंडार होता है और उस भंडार से कुछ चुनिंदा शब्दों को निकाल कर उन्हें एक रूप – रेखा देकर लिखना होता है , इसलिए आसान तो है ख़ैर।
कलम – अच्छा ये बताओ तुम इतने ज्यादा शब्दों को कुछ मिनटों में कैसे लिख लेते हो ?
कातिब – अगर इस सवाल का मैं जवाब दूं तो मुझे तुमको कुछ साल पीछे ले जाना पड़ेगा ।
कलम – अच्छा
कातिब – हां
कलम – बताओ फिर
कातिब – बात सालों पहले की है जब मुझे क्या लिखना है , कैसे लिखना है और क्यों लिखना है ?
इन सब सवालों में से किसी एक का भी जवाब नहीं पता था लेकिन मैं सवालों के जवाब ढूंढना शुरू किया तो महज़ कुछ महीनों में मुझे उन सारे सवालों के ज़वाब मिल गए।
कलम – उसके बाद ?
कातिब – उसके बाद फिर मैं बहुत सारे लोगों को पढ़ा ,फिर उनको समझा और जब वो लोग मुझे समझ में आ गए तब जाकर मै कुछ शब्दों को अपनी डायरी में उतारना शुरू किया , फिर देखा तो मुझे लगा की मैं अभी भी कुछ गलतियां कर रहा हूं।
कलम – उसके बाद ?
कातिब – उसके बाद, फिर से मैं लोगों को पढ़ा और उनके साथ – साथ इस बार साहित्य को भी पढ़ा ,पढ़ा ही नहीं बल्कि उसे समझा भी, तब जाकर मुझे पता लगा की मैं गलतियां कहां कर रहा था।
कलम – अच्छा
कातिब – हां
कलम – फिर ?
कातिब – फिर मैं जो पढ़ा था उन्हीं शब्दों को एक – एक करके लिखना शुरू किया पहले तो लगा की मैं अभी भी नहीं लिख पाऊंगा लेकिन हिम्मत नहीं हारा और कुछ पंक्तियां लिख दी। कुछ दिन थोड़ा – थोड़ा लिखने के बाद मुझे ये अहसास हुआ की मैं लिख सकता हूं और उसके बाद मैं धीरे – धीरे पंक्तियों की संख्या बढ़ाता गया और अपनी लेखनी को निखारता गया।
कलम – अच्छा
कातिब -हां
कलम थोड़ी देर सोची फिर बोली ….
कलम – अच्छा जब तुम लोग कुछ लिखकर उसे प्रकाशित करते होगे खुद से, या प्रकाशित करवाते होगे कहीं से या फिर जब तुम लोगों की लिखी लेखनी किसी पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित होती होगी तब तो तुम्हारा लोगों का नाम खूब रौशन होता होगा ।
कातिब – हां होता तो है, पर
कलम – पर, क्या ?
कातिब – दरअसल जब हम जैसे लोग कुछ लिखकर खुद से प्रकाशित करते हैं किसी न किसी माध्यम से या फिर कहीं से प्रकाशित होती है तो, बहुत सारे लोगों की प्रतिक्रियाएं आती हैं ।
कलम – तो , प्रतिक्रियाएं आनी तो अच्छी बात हैं
कातिब – हां, अच्छी बात तो है लेकिन उन प्रतिक्रियाओं में कुछ प्रतिक्रियाएं तो सकारात्मक होती हैं परंतु कुछ प्रतिक्रियाएं नकारात्मक भी होती हैं।
कलम – अच्छा
कातिब – हां
कलम – अच्छा नकारात्मक प्रतिक्रियाओं का क्या मतलब होता है ?
कातिब – ज्यादा तो कुछ नहीं होता है बस उसमें हम जैसे लोगों के लिए कुछ लोगों द्वारा कुछ अपशब्द बोले जाते हैं , कुछ अपशब्द भाषाओं का प्रयोग किया जाता है जिन्हें सुनकर थोड़ी देर के लिए मन उदास होता है और फिर से जब अपनी दिल की बात या अपने मन की बात पुनः शब्दो में उतार लेते हैं तो मन खुश हो जाता है और थोड़ी देर बाद हम पुनः मुस्कुराने लगते हैं या अपने कामों में लीन हो जाते हैं।
कलम – ओह!
कातिब – हां
कलम – और क्या होता है ?
कातिब – ज्यादा तो कुछ नहीं होता पर कभी – कभी हम लोगों की बेइज्जती भी कुछ लोग परिवार के सदस्यों से करते रहते हैं कि –
” ये क्या करता रहता है या करती रहती है। “
कलम – तुम लोग तो उनकी भलाई के लिए , उनके लिए और उनकी हित में ही लिखते हो, फिर वो लोग ऐसा क्यों बोलते हैं ?
कातिब – हां, लिखता तो उनकी हित में ही हूं , उनकी भलाई के लिए ही, परन्तु वो लोग इस बात को समझने के लिए तैयार ही नहीं होते , उनको लगता है की हम जैसे लोग पागल हैं जो इधर – उधर की बातें लिख कर अपने समय के साथ – साथ उनका समय भी ज़ाया करते हैं।
थोड़ी बात आगे बढ़ी फिर कलम बोली ….
अच्छा ये बताओ तुम लोग तो लोगों की भावनाओं को लिखते हो , उनकी समस्याओं का निवारण करने के लिए लिखते हो , उनको थोड़ा सा आगे बढ़ने में ताकत देने के लिए लिखते हो उनको उनकी रास्तों में सक्षम बनाने के लिए लिखते हो जिनसे वो लड़ सकें और एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ सकें या यूं कहूं की उन्हें एक नए रास्ते से परिचय कराते हो ?
कातिब – कलम तुम बोल तो सही रही हो लेकिन वो लोग उस बात को समझने के लिए तैयार ही नही होते हैं उनको लगता है की हम जैसे लोग बिलकुल बेकार बैठे हैं इसलिए लिखते रहते हैं उल्टा – सीधा। जबकि उनको ये नहीं पता होता है की हम बिना देखे , बिना सुने , बिना किसी के बारे में कुछ विशेष जाने , बस अपनी भावनाओं की मदद से , अपने दिमाग की मदद से , अपनी अंतरात्मा की मदद से किसी भी विषय पर या किसी के विषय में लिखने के लिए सक्षम होते हैं।
कलम थोड़ी देर सोचती रही , फिर बोली ….
अच्छा मुझे एक बात नहीं समझ आ रही है की जब तुम लोगों को कुछ ही लोग समझते हैं बाकी के लोग समझने को तैयार ही नहीं हैं तो लिखते ही क्यों हो ?
इस बार कातिब धीरे से मुस्कुराया और बोला ….
हमें पता होता है कि हमें कुछ ही लोग समझ पाते हैं बाकी लोग समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं फिर भी हम सिर्फ़ इसलिए या इस उम्मीद से लिख देते हैं की जो ज्ञान हमारे पास है उससे उन्हें कुछ सीख मिले, हमारे पास जो अनुभव होता है उसे हम इसलिए लिख देते हैं की जिन परेशानियों से , समस्याओं से ,चुनौतियों से हम पीछे रह गए हैं , जिस मार्गदर्शन बिना हम आगे नहीं बढ़ पाए हैं, वो न रहें बल्कि वो दिन – रात मेहनत करके अपने कर्तव्य को पहचानते हुए एक नई रौशनी , नई उम्मीद , नई उमंग या यूं कहें की एक नई ऊर्जा के साथ सदैव आगे बढ़ते रहें।
थोड़ी देर बाद …..
कलम – तो क्या इसे अब मुझे ” दर्द – ए – कलम ” मान लेना चाहिए ?
कातिब – बिलकुल
कलम – पर क्यों ?
कातिब – क्योंकि हम जैसे लोग अपने दिलों में उन तमाम मुसीबतों को , परेशानियों को , चुनौतियों को , दर्द एवं तकलीफों को दबाए हुए रहते हैं जिन्हें हम शब्दों में उतार कर लोगों के पास पहुंचाने का प्रयास करते हैं , हम ये उम्मीद करते हैं की शायद इसे कोई पढ़ेगा और अपनी गलतियों को सुधार कर आगे बढ़ेगा । हम जैसे लोग तो उनकी समस्याओं को , परेशानियों को भावनाओं को , चुनौतियों को , दर्द एवं तकलीफों को देखकर समझ जाते हैं , भांप लेते हैं जिन्हें शब्दों में उतार कर एक ” रचना ” का नाम दे देते हैं लेकिन हम लोगों की परेशानी , चुनौती , समस्याएं , दुःख – दर्द , तकलीफें तो छोड़ो कोई हमारी भावनाएं तक नहीं समझता है और न ही समझने की कोशिश करता है इसलिए सैकड़ों की भीड़ में कोई एक ही रचनाकार , साहित्यकार, कलमकार, ग्रंथकर्ता , ग्रंथकार , सृजनकार निकलता है इसलिए हम जैसे लोगों की भावनाओं को ” दर्द – ए – कलम ” समझने में या यूं कहें की कहने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए।