Chaitra Navratri : नवरात्रि में कैसे उगाए ज्वार, क्या है मान्यता

श्री डेस्क :  हिंदू धर्म में कोई भी बिना पूजा बिना कलश के अधूरी मानी जाती है क्योंकि कलश को गणेश भगवान का स्वरूप माना जाता है इसलिए कोई भी पूजा-अर्चना भागवत कथा बिना कलश के अधूरी मानी जाती इसकी भी कथा आपको बता रहे भगवान गणेश के जन्म की कथा कहा जाता है कि:-

भगवान गणेश के जन्म की कथा

भगवान शंकर तपस्या करने के लिए कैलाश पर्वत से बाहर गए थे उसी समय माता पार्वती घर पर अकेले ही रहती थी तभी उनकी सखियां माता पार्वती को उबटन लगा रहे थे तभी उनके शरीर का जो मेल उबटन के साथ निकला था उससे सखियों ने एक बालक का पुतला बना दिया और उस पर माता पार्वती से प्राण प्रतिष्ठा डालने का आग्रह किया और माता पार्वती ने अपनी दाईं उंगली चीरकर उसमें अपना रक्त डाल दिया और वह एक सुंदर बालक के रूप में परिवर्तित हो गया तब माता अपने शरीर के मेल और अपने रक्त से प्राण प्रतिष्ठा के कारण उन्होंने गणेश को अपना पुत्र मान लिया और और माता पार्वती जब स्नान करने के लिए स्नान ग्रह में चली गई थी तब गणेश को आदेश दिया कि आप बाहर खड़े होकर पहरा दो कोई अंदर ना आने पाए तभी भगवान शंकर अपनी तपस्या पूरी करके घर के अंदर जाने लगे तब भगवान गणेश ने उन्हें मना किया तो वह नहीं माने तब गणेश और शंकर जी में युद्ध हुआ और उन्होंने अपनी त्रिशूल निकालकर गणेश जी का वध कर दिया क्रोध और घर के अंदर प्रवेश कर गए तब माता पार्वती ने शंकर जी से पूछा कि क्या द्वार पर तुम्हें कोई नहीं मिले तब शंकरजी ने माता को बताया कि द्वार पर एक बालक मिला था और हमे अंदर आने से मना कर रहा तो हमने उसका गला काट कर उसका वध कर दिया तब माताजी को बहुत क्रोध आ गया और माताजी ने पूरे ब्रह्मांड में हाहाकार मचा दिया तभी सारे देवी देवता मिलकर भगवान शिव से विनती की कि हे भोलेनाथ किसी भी तरह आप माता के प्रकोप से इन तीनों लोगों को बचाइए और गणेश को पुनः जीवित कीजिए शंकर जी ने अपने दूतो को बुलाकर कहा कि आप सभी लोग पृथ्वी आकाश पाताल कहीं भी जाओ और जो मां अपने बच्चे को जन्म देने के बाद अपने बच्चे की तरफ पीठ करके लेती हो उसका सिर काट कर ले आओ और उसका सिर गणेश को लगा दो तभी गणेश जी पुनः जीवित हो जायेंगे इतना सुनने के बाद सभी गुप्तचर अपने अपने काम पर लग गया और जब सारा ब्रह्मांड घूम लिया और उन्हें ऐसा कोई जीवनहीं मिला तब वह लोग निराश होकर वापस लौट आए तब भगवान विष्णु खोजने के लिए निकले और उन्होंने देखा कि एक हाथिन अपने बच्चे को जन्म देकर उसकी तरफ पीठ करके लेटी है और हाथिन का बच्चा उस से दूर पड़ा हुआ और हाथिन उसकी तरफ एक बार भी नहीं देख रही है तब भगवान विष्णु ने उसका गला काट लिया और उसे लाकर के गणेश भगवान के लगा दिया और भोलेनाथ ने अपना रक्त डाला और गणेश भगवान को पुनः जीवित किया अपने पुत्र को जीवित देखकर माता पार्वती बहुत खुश हुई लेकिन जब उन्होंने देखा कि हमारे पुत्र को हाथी का सिर लगा दिया गया तब और भी क्रोधित हो गई और तब सभी देवी देवता मिलकर माता पार्वती से की विनती की और उन्हें समझाया कि हे माते आपका पुत्र पृथ्वी पर सबसे सर्वप्रथम आपके पुत्र की पूजा की जाएगी कोई भी पूजा आपके पुत्र के बिना पूरी नहीं मानी जाएगी अधूरी ही रहेगी तब जाकर माता का क्रोध शांत हुआ और तभी से भगवान गणेश को अनेकों नाम की प्राप्ति जैसे गणेश गजानन विघ्न हरता विघ्न विनाशक गजमुख लंबोदर आदि नामों की प्राप्ति हुई.

ज्वार को कैसे उगाए

ज्वार उगाने के लिए हमेशा को शुद्ध मिट्टी लाकर उसे बारीक बारीक फोड लेना चाहिए उसके बाद मिट्टी में पानी डाल देना चाहिए वैसे तो ज्वार को जमीन पर ही बोना चाहिए लेकिन अब अधिकतर घरों में फर्श हो गई है जिसके कारण ज्वार जमीन पर नहीं बो सकते हैं लेकिन ज्वार बोन के लिए कुम्हार के घर से एक मिट्टी का बर्तन लाए उसके बाद उसमें मिट्टी भरे फिर मात्रा अनुसार पानी डालें जिससे कि मिट्टी न तो बहुत गीली हो और ना ही बहुत सुखी हो फिर उसमें जो को बो देना चाहिए फिर मिट्टी को बराबर करके उस पर हल्दी रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बना देना चाहिए फिर कलश में हल्दी सुपारी पैसा गंगाजल चावल दूब आदि कलश के अंदर डाल देना चाहिए फिर कलश के ऊपर 7 पत्तों वाला आम का पल्लव और एक कुश की डाल को रखना चाहिए उसके बाद कटोरी में थोड़े चावल भर कर रखना चाहिए और कलस पर कलावा से लपेटकर हरा नारियल रखना चाहिए और जो ज्वार आपने बोए हैं उसमें शाम को प्रतिदिन पानी जरुर डालना चाहिए जिससे कि हमारी ज्वार बहुत हरी-भरी हो क्योंकि ज्वार का उगना बहुत ही शुभ माना जाता है कहा जाता है कि ज्वार जितनी अच्छी उगती है उतना ही उस घर में सुख शान्ति धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती है और हमेशा वह घर हरा भरा और खुशहाल रहता है.

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