नितिन गडकरी ने ब्राह्मणों के लिए क्या कहा, हर ब्राह्मण को जरूर पढ़ना चाहिए ;-
श्री डेस्क : अहंकारी ब्राह्मणों की आंखें खोल देने वाली जानकारी पढ़ें, जिसे खुद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने ट्विटर पर पोस्ट किया है hvऔर इसकी अहमियत समझें
श्री गडकरी ने ट्वीट किया है कि आज के दौर में असली दलित ब्राह्मण हैं। अपनी बात को पुख्ता करने के लिए उन्होंने फ्रेंच पत्रकार फ्रांसिस गुइटर की रिपोर्ट भी शेयर की है, जिसके मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
दिल्ली में 50 सुलभ शौचालयों में करीब 325 सफाई कर्मचारी हैं। ये सभी ब्राह्मण वर्ग से हैं।
दिल्ली और मुंबई में 50% रिक्शा चालक ब्राह्मण हैं। इनमें से ज्यादातर पांडे, दुबे, मिश्रा, शुक्ला, तिवारी यानी पूर्वांचल और बिहार के ब्राह्मण हैं।
दक्षिण भारत में कुछ जगहों पर ब्राह्मणों की स्थिति अछूतों जैसी है। वहीं, दूसरी जगहों पर लोगों के घरों में काम करने वाले 70% रसोइए और नौकर ब्राह्मण हैं।
मुसलमानों के बाद भारत में ब्राह्मणों की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है। यहाँ ज़्यादा चिंता की बात यह है कि 1991 की जनगणना के बाद से मुसलमानों की प्रति व्यक्ति आय में सुधार हो रहा है, जबकि ब्राह्मणों की आय लगातार कम होती जा रही है।
ब्राह्मण भारत में दूसरा सबसे बड़ा कृषक समुदाय है। लेकिन उनके पास खेती के जो साधन हैं, वे 40 साल पीछे हैं। इसका कारण यह है कि ब्राह्मण होने के कारण इन ब्राह्मण किसानों को सरकार से उचित मुआवज़ा, ऋण और अन्य रियायतें नहीं मिल पा रही हैं। ज़्यादातर ब्राह्मण किसान कम आय के कारण आत्महत्या करने या अपनी ज़मीन बेचने को मजबूर हैं।
ब्राह्मण छात्रों में “ड्रॉप आउट” यानी पढ़ाई अधूरी छोड़ने की दर अब भारत में सबसे ज़्यादा है। वर्ष 2001 में ब्राह्मणों ने इस मामले में मुसलमानों को पीछे छोड़ दिया और तब से वे ड्रॉप आउट के डर में सबसे ऊपर हैं।
बेरोज़गारी की दर भी ब्राह्मणों में सबसे ज़्यादा है। समय पर नौकरी/रोज़गार न मिलने के कारण हर दशक में 14% ब्राह्मण वैवाहिक सुख से वंचित रह जाते हैं। यह दर भारत में किसी भी समुदाय में सबसे ज़्यादा है। ब्राह्मणों की जनसंख्या में लगातार गिरावट का यह एक बड़ा कारण है।
आंध्र प्रदेश में बड़ी संख्या में ब्राह्मण परिवार 500 रुपये प्रति माह और तमिलनाडु में 300 रुपये प्रति माह पर जीवन यापन कर रहे हैं। इसका कारण बेरोजगारी और गरीबी है। उनके घरों में भूख से मौतें होना अब आम बात हो गई है।
भारत में ईसाई समुदाय की प्रति व्यक्ति आय करीब 1600 रुपये, एससी/एसटी की 800 रुपये और मुसलमानों की करीब 750 रुपये है। लेकिन ब्राह्मणों में यह आंकड़ा सिर्फ 537 रुपये है और इसमें लगातार गिरावट आ रही है।
ब्राह्मण युवाओं में रोजगार की कमी और संपत्ति की कमी के कारण ज्यादातर ब्राह्मण लड़कियां दूसरी जातियों में अरेंज मैरिज कर रही हैं।
उपरोक्त आंकड़े बताते हैं कि कुछ दशकों में ब्राह्मणों का सफाया हो जाएगा। जो बचे रहेंगे, वे उस जहर से नष्ट हो जाएंगे जो सोशल मीडिया पर दिन-रात ब्राह्मणों के खिलाफ गलत बातें लिखकर और उनका ब्रेनवॉश करके नई पीढ़ी के दिमाग में ब्राह्मणों के प्रति अंधी नफरत पैदा करके भरा जा रहा है।
हम कहां जा रहे हैं, हमें अपने भविष्य पर ध्यान देना होगा।
ब्राह्मणों से सात सवाल
1-ब्राह्मण कैसे और कब एकजुट होंगे?
2-ब्राह्मण कब एक दूसरे की मदद करेंगे?
3-ब्राह्मण संगठनों में एकता कैसे आएगी?
4-ब्राह्मण कब एक साथ वोट देंगे?
5-ब्राह्मण कब ब्राह्मणों की प्रशंसा करेंगे?
6-ब्राह्मण मंत्री, सांसद, विधायक, उच्च पदों पर बैठे अधिकारी कब अपने निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर ब्राह्मणों की बिना शर्त मदद करेंगे?
7-गरीब ब्राह्मणों की मदद के लिए ब्राह्मण महाकोश कब बनेगा?
एक कट्टर ब्राह्मण विचारक इसका जवाब पाना चाहता है।
यदि आप वास्तव में ब्राह्मण जाति का उद्धार चाहते हैं, तो इसे पढ़कर कम से कम दस ब्राह्मणों को भेजें ताकि वे ब्राह्मणों के कल्याण के लिए आगे आएं।
अनूप त्रिवेदी की कलम से