फीरोज़ गाँधी कॉलेज बना अखाड़ा, अराजकत तत्वों का जमावड़ा

रायबरेली :  कानपुर विश्वविद्यालय से कुछ दिन पहले तक सम्बद्धता प्राप्त फ़िरोज़ गांधी कॉलेज की तुलना अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र में ऑक्सफोर्ड एवं कैम्ब्रिज से की जाती थी, लेकिन आज वही कॉलेज अपनी गलत नीतियों के कारण सुर्खियों में बना हुआ है।

अपने दिखावटी व्यस्ततम कार्यक्रम में से कुछ समय निकालते हुए मैनेजर साहब का कॉलेज में प्रतिदिन का दौड़ा शुरु हो चुका है, पहुचते ही प्रिन्सिपल को हिदायत, बड़े बाबू को कड़ी नसीहत, इस बार कॉलेज संस्थापक फिरोज गांधी का जन्मदिन 12 सितंबर को खास बनाने के लिए कार्यक्रम में कोई कमी न रहने पाये। सब कुछ कायदे से देख लेना, पिछ्ली बार से इस बार का कार्यक्रम बहुत अच्छा होना चाहिए नहीं तो तुम जानना।

मैनेजर साहब का अपने ही स्टॉफ को आखिर इतना कड़क निर्देश क्यों??

पूछने पर पता चला कि 12 सितम्बर आने वाला है।

ट्रस्ट और उनके परिवार तथा शहर के बहुत सारे एक जैसी सोच वाले गणमान्य लोग इसमें इसमें शामिल होंगे।
मैनेजर साहब को यहीं पर एक बात का स्मरण करा देना अपेक्षित है कि अभी तीन दिन पहले ही इसी महीने 8 सितम्बर को फ़ीरोज़ साहब की पुण्य तिथि थी, जहाँ उनकी प्रतिमा, इसी संस्था के लोगों से दो श्रद्धा सुमन के लिए तरस गयी और जन्मदिन वाले इस कार्यक्रम के लिये इतना ताम-झाम कि पैसे की कोई कमी नहीं होगी।

साहब की जेब से चवन्नी का खर्च नहीं होना है उसके लिये तो गाढ़ी कमाई से कॉलेज की अनाप-सनाप फीस जमा करने वाले बच्चों का पैसा है ही। लूटो और खाओ तथा शासन-प्रशासन की आँख पर धूल झोंक कर राज करो।
फ़िरोज़ गांधी डिग्री कालेज की स्थापना पूर्व प्रधानमंत्री मंत्री जवाहरलाल नेहरू के दामाद फ़ीरोज़ गाँधी की दूरदर्शी सोच से हुई थी कि हमारे संसदीय क्षेत्र में भी उच्च शिक्षा का एक केन्द्र होना चाहिए, जिसमें अशिक्षित ग्रामीण अंचल के लोग अपने बच्चों को यथा संभव उच्च शिक्षा दिला सकें।

इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए रायबरेली डिग्री कालेज ट्रस्ट की स्थापना की गई।
वास्तव में फिरोज गांधी कॉलेज की स्थापना की शुरुआत करते हुए तत्कालीन विधायक मुन्शी चंद्रिका प्रसाद ने कहा था कि सांसद जी, इस जिले में उच्च शिक्षा का केन्द्र होना चाहिए और इस केन्द्र के लिये उन्होंने बछरांवा नाम का सुझाव दिया।

फीरोज साहब ने उनके दिये गये सुझाव में थोड़ा संशोधन करते हुए कहा कि यह केन्द्र बछरांवा में नहीं, अपितु जिला मुख्यालय पर होगा।

बस इन्हीं सुझावों ने यही से डिग्री कालेज की स्थापना को लेकर उनके सपनों ने उड़ान भर दी।
इस पुनीत काम के लिए स्वयं फीरोज साहब ने ही “रायबरेली डिग्री कॉलेज एजूकेशन ट्रस्ट” का पंजीकरण कराया और शहर में खाली पड़ी 30 बीघा जमीन पर कॉलेज खोलने के प्रयास किये।

कॉलेज के पहले फाउंडर सांसद फ़ीरोज़ गाँधी और पहले फाउंडर सचिव स्व. ओंकारनाथ भार्गव बने।

रायबरेली जनपद के ईमानदार छवि वाले प्रथम सांसद एवं सुधी चिंतक फीरोज साहब ने अपनी दूरगामी योजना को लेकर गिने-चुने लोगों को ट्रस्ट में शामिल करते हुए कहा था कि स्थानीय लोगों मे जिम्मेदारी, ईमानदारी अधिक होती है।
उनके ही शुभचिन्तकों द्वारा कॉलेज को जमीन 30 साल के लिए पट्टे पर दी गई थी, उसकी अवधि 3 मार्च 1989 को खत्म हो गई।

आज तक उस भूमि के न तो कागजात बने हैं और न ही राजस्व परिषद के चेयरमैन की स्वीकृति मिल सकी है। एक तरह से सरकारी जमीन पर बिना लीज व बिना नवीनीकरण के फीरोज गाँधी कॉलेज चल रहा है। इस तरह के मामले देश में बिरले ही मिलेंगे।
एक शिकायती पत्र का संज्ञान लेते हुए सन 2006 में रायबरेली जनपद के तत्कालीन जिलाधिकारी महोदय ने फीरोज गाँधी कॉलेज के अस्तित्व पर सवाल खड़े किये थे।

उन्होंने सख्त निर्देश दिया था कि सरकारी जमीन पर पट्टा खत्म हो जाने के बाद कॉलेज कैसे चल रहा है।

ट्रस्ट के जिम्मेदारों को जमीन का मालियत के हिसाब से रुपया जमा करने को कहा गया।

साथ में यह भी कहा कि यदि ट्रस्ट ऐसा नहीं कर पाता है तो कॉलेज की कुर्की कर ली जाये, लेकिन जिलाधिकारी का स्थानांतरण हो जाने के बाद उस आदेश की फाइल को पूरी तरह से दबा दिया गया।

इस समय स्थानीय सर्किल रेट के हिसाब से बेशकीमती जमीन की कीमत लगभग 400 करोड़ रुपये है जो ट्रस्ट के लिये सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी की तरह है।

जिसे पीढियों के लिये सुरक्षित किया जा रहा है और जो भी कर्मचारी हैं।

चाहे वे शिक्षक हो या शिक्षणेतर कर्मचारी। वे इसका पूरा लाभ उठा रहे हैं।

इस अव्यवस्था से यदि कोई त्रस्त है तो बेचारे छात्र एवं उनके अभिभावक, जो विषम परिस्थितियों मे भी आर्थिक बोझ उठाने को मजबूर हैं।

प्रतिष्ठित कॉलेज में आज अभिभावकों का न कैश सुरक्षित रह गया है और न ही छात्रों एवं अध्यापकों का कैरियर।

चारों तरफ हर व्यक्ति में कैरियर एवं कोष को लेकर असुरक्षा एवं चिंता की भावना विद्यमान है।

जैसे–
प्रवेश के समय सभी छात्रों से जबर्दस्ती वसूली जाने वाली फीस Games-Medical fee रु 250, Student Aid fee रु 100, Identity card fee रु 100, Swf fee रु 100, Rovers/Randers fee रु 50, Cycle stand fee रु 600
उपर्युक्त धनराशि 1200 रुपये है, जिसे प्रति छात्र को देना अनिवार्य है।

कॉलेज की लगभग छात्र संख्या 5000×1200= ????

इसमें से मेडिकल के नाम पर शून्य खर्च, साइकिल प्रत्येक छात्र लाता नहीं, रेंजर्स रोबर्स में प्रतिवर्ष भाग लेने वालों की संख्या 150 से अधिक नहीं होती, तो फिर उच्च शिक्षा का सपना संजोए सभी अध्ययनरत गरीब छात्रों से अनर्गल धन उगाही क्यों??
दूसरी तरफ फ़िरोज़ गांधी कॉलेज के वरिष्ठ जिम्मेदार अध्यापकों द्वारा जानबूझकर बच्चों के कैरियर को बर्बाद करने के उद्देश्य से उठाये जाने वाले अनुचित,
अमर्यादित कदम, जिसमें उप प्राचार्य एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग प्रोफेसर बद्री दत्त मिश्र का नाम टॉप पर है।

हिंदी विषय के छात्रों के भविष्य विद्धंवशक कलियुगी गुरु (प्रोफ़ेसर बद्री दत्त मिश्र) ने ही 251+30+06 अपने ही विषय के प्रिय शिष्यों का भविष्य बर्बाद कर दिया है।

वो इतने बच्चों के कैरियर पर जानबूझकर यह गुरु पूर्ण अवरोधक की तरह काम कर रहे हैं और अपने उद्देश्य की पूर्ति में डॉ संजय सिंह एवं डॉ आलोक सिंह को अपना निशाना बना चुके हैं।

जिसकी चर्चाये इस समय सोशल मीडिया में भी खूब हो रही हैं। आपको मित्रघात का इससे अच्छा उदाहरण देखने को नहीं मिलेगा।
कॉलेज में इसका एक और उदाहरण है लेकिन उसका रूप स्वरूप और स्वभाव थोड़ा भिन्न है जैसे जानबूझकर केवल परेशान करने के उद्देश्य से बार बार रोकी जा रही सम्मानित शिक्षकों की प्रमोशन वाली फाइलें आदि।

टेबलेट प्राप्त होने से वंचित विद्यार्थियों को भी न्यायप्रिय सरकार में टैबलेट नहीं मिला है?
उपर्युक्त अधिकांश समस्याओं को मंत्री शिक्षक संघ डॉ सुभाष चंद्र ने दो माह पूर्व संपन्न हो चुकी प्रबंध समिति की बैठक में बहुत जोरदार ढंग से उठाया था, जिसके कारण उसी बैठक में कॉलेज की समस्त समस्याओं के निस्तारण हेतु चार सदस्यीय (उपाध्यक्ष राजीव भार्गव, संयुक्त सचिव डॉ संजय पांडेय, शिक्षक संघ अध्यक्ष प्रोफेसर अरुण कुमार, शिक्षक संघ महामंत्री डॉ सुभाष चंद्र) समिति गठित कर दी गई कि हर 15 दिन पर उक्त समिति की बैठक होगी लेकिन आज तक न जाने किस भय से इसे कार्य रूप नहीं दिया जा सका।

विगत 30 वर्षों से किसी भी नए कोर्स/विषय को मान्यता नहीं मिली, 25 साल से एक भी नये कक्ष का निर्माण नहीं हो सका।

फिर भी कहने को हमारा कॉलेज प्रगति करते हुए NAAC++ प्राप्त कर रहा है।

लुआक्ता उपाध्यक्ष प्रोफेसर सिद्धार्थ सिंह ने जनपद के ख्यातिप्राप्त महाविद्यालय में अनैतिक घटनाओं में खेद व्यक्त करते हुए कहा है कि सभी बिंदुओं की मेजिस्ट्रेटियल जॉच होनी चाहिए, जिससे दागदार लोगों पर कानूनी कार्रवाई करते हुए पढ़ाई का मनोरम वातावरण स्थापित किया जा सके।

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