Fake birth certificate: This district of UP has been a safe haven for infiltrators, their links are connected with the entire state.

नकली जन्म प्रमाण पत्र: घुसपैठियों का सुरक्षित ठिकाना रहा यूपी का ये जिला, पूरे प्रदेश से जुड़े हैं इनके तार

रायबरेली 90 के दशक में लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन और डी-2 गैंग का सेफ जोन रहा है। इसके अलावा इसके आसपास के जिले भी ठिकाने बनते रहे हैं।

रायबरेली  : सलोन में फर्जी प्रमाणपत्रों के बांग्लादेशी और रोहिंग्या कनेक्शन का मामला नया नहीं है। जिला पहले भी घुसपैठियों और आतंकियों का सुरक्षित ठिकाना बला रहा। अब कानपुर और उन्नाव के रास्ते रोहिंग्या भी यहां आने लगे हैं। ऐसे में यहां की संवेदनशीलता बढ़ती जा रही है। करीब 20 हजार फर्जी जन्म प्रमाणपत्र मामले ने रायबरेली को पूरे देश में चर्चा में ला दिया है। अभी तक की जांच में पता चला है कि पकड़ा गया सीएससी संचालक जीशान तो बस मोहरा मात्र है। असल वजीर कोई और है, जिसकी शह पर सारा खेल हुआ है। भाजपा विधायक अशोक कुमार इसे आतंकी साजिश बता चुके हैं, वहीं हिंदू संगठन भी इसमें आतंकियों के शामिल होने का आरोप लगाकर रोष जता चुके हैं।

पनाहगारों को तलाश नहीं सकी पुलिस
रायबरेली 90 के दशक में लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन और डी-2 गैंग का सेफ जोन रहा है। 1992 में आतंकी अब्दुल करीम टुंडा रायबरेली आया था। इसी तरह हिजबुल मुजाहिद्दीन का एरिया कमांडर बिलाल अहमद भी रायबरेली के खिन्नी तल्ला में शरण ले चुका था। रायबरेली की खुफिया एजेंसी इस दौरान इन दोनों को नहीं ढूंढ़ सकी। उनके पनाहगार कौन थे? इस पर जिम्मेदारों ने चुप्पी साध ली। कभी कार्रवाई की जहमत नहीं उठाई।

सलोन व बछरावां में भी पैठ
सलोन क्षेत्र हमेशा से संवेदनशील रहा है। कमजोर खुफिया तंत्र का फायदा उठाकर कानपुर से उन्नाव और सलोन में लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर इमरान अंसारी सक्रिय रहा। किसी तरह से एटीएस ने उसे 2006 में पकड़ा, लेकिन इमरान को पनाह किसने दी? इसकी पड़ताल नहीं हो सकी। इसी तरह बछरावां डी-2 गैंग का सेंटर रहा है। जब मुंबई में डी-2 गैंग का असर कम हुआ तो कानपुर के डी-39 गैंग के सदस्यों ने यहां पैर जमा लिए। खुफिया विभाग को इसकी भनक तक नहीं लगी।

कानपुर और उन्नाव तक नेटवर्क
आतंकियों को लिए प्रदेश में कानपुर कमांड सेंटर सरीखा रहा है। कानपुर में नई सड़क, बेकनगंज, फेथफुलगंज, तलाकमोहाल, बजरिया, मूलगंज ऐसे इलाके हैं, जहां पर दाउद और टाइगर मेनन जैसे आंतकियों के कनेक्शन रहे हैं। 90 के दशक से ही कानपुर से दाउद के गुर्गों ने उन्नाव की ओर रुख किया और शुक्लागंज से कटरी के गांवों में पैठ बनाई। समय जैसे-जैसे बीता तो कानपुर का जाजमऊ घुसपैठियों का बड़ा सेंटर बना। राजनीतिक सरपरस्ती ने भी इनका काम आसान किया। जाजमऊ से शुक्लागंज होते हुए बांग्लादेशियों और रोहिंग्या ने उन्नाव शहर में भी अपने रिहाइश का इंतजाम कर लिया। 2021 में एसटीएफ ने रोहिंग्या की घुसपैठ की आंशका में उन्नाव नगर पालिका के दस्तावेजों को खंगाला, जिसमें अहम जानकारी हाथ लगी थी। उन्नाव के रास्ते खीरों होते हुए घुसपैठिए बिना किसी रोक के रायबरेली में पैर जमाने में लगे हैं। सलोन फर्जी प्रमाणपत्र प्रकरण भी इसी का एक हिस्सा है।
जीशान ने किए चौंकाने वाले खुलासे
18 जुलाई को यूपी एटीएस ने जन सेवा केंद्र संचालक जीशान खान, सुहैल, रियाज खान और वीडीओ विजय बहादुर यादव से अलग-अलग पूछताछ की थी। सूत्रों के अनुसार इस दौरान एक बड़ नेटवर्क की जानकारी हाथ लगी है, जो बांग्लादेशियों और रोहिंग्या को जगह-जगह बसाने में लगा है। कानपुर, उन्नाव, प्रयागराज, लखनऊ में भी इसी तरह का खेल चल रहा है। इसके बाद एटीएस बिहार, असम, कर्नाटक, केरल, मुंबई तक के तार जोड़ने में लगा है।

मामले की हो रही जांच
खुफिया तंत्र सक्रिय है। फर्जी प्रमाणपत्र मामले में पुलिस की जांच चल रही है। जिले की सीमाओं पर भी जांच होती है और साथ ही पुलिस घरों का सर्वे भी करती है। नवीन कुमार सिंह, एएसपी, रायबरेली

सक्रिय होना चाहिए खुफिया तंत्र
फर्जी प्रमाणपत्र के मामले में एटीएस जांच कर रही है तो कई राज खुलकर सामने आएंगे। मैं एटीएस का फाउंडर रहा हूं तो मुझे मालूम है कि एटीएस इस तरह की घटनाओं का खुलासा पूरी जड़ से करती है। एटीएस अपना काम बखूबी करती है। समय लग सकता है। कारण जांच बड़े स्तर पर चलती है। घुसपैठ को रोकने के लिए स्थानीय पुलिस को अपना नेटवर्क तेज करना होगा। इसके लिए खुफिया तंत्र बहुत सक्रिय होना चाहिए।

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