हिंदी पत्रकारिता दिवस: याद उनकी जो नियमित पढ़ाते हैं अखबार
उन्नाव: कासिम एक अखबार आधारा…
अखबार की दुनिया बस इतनी ही नहीं है जितना हम आप देखते-सुनते हैं। यानी अखबार और ज्यादा से ज्यादा रिपोर्टर-एडिटर का नाम। अखबार की महत्वपूर्ण कड़ी वितरक और अभिकर्ता भी हैं। इन्हीं के मार्फत हमें अखबार सुबह-सुबह पढ़ने को मिलता है। इस कड़ी को बिसार दें तो अखबार पढ़ने क्या देखने को भी हम-आप तरस जाएं?
उन्नाव में कासिम वह नाम है, जो पांच दशक से अधिक समय से अखबार वितरण का काम-धाम संभाल रहे हैं। वह साल 1970-72 का रहा होगा, जब मात्र 14 बरस की उम्र में कासिम भाई नवजीवन अखबार के वितरक बने थे। इस अखबार का काम पहले मोतीनगर में रहने वाले कांग्रेस नेता कृष्ण सहाय श्रीवास्तव के पास था। भाइयों के बीच हुए मनमुटाव में भुगतान में विलंब हुआ। नवजीवन के सेल्स डिपार्टमेंट के राम शर्मा उन्नाव आए और उन्हें किशोर कासिम टकरा गए। पहली मुलाकात के बाद ही कासिम भाई लखनऊ गए और कुछ रुपए जमा करके नवजीवन अखबार की एजेंसी लेकर आ गए।
कासिम भाई बताते हैं कि पहले दिन 25 अखबार आए थे। यहीं से उनका अखबार से नाता ऐसा जुड़ा कि फिर जुड़ा ही रह गया। कासिम भाई बताते हैं कि श्रीवास्तव जी के पास ही स्वतंत्र भारत की एजेंसी भी हुआ करती थी। थोड़े ही दिनों बाद उन्होंने अखबार के वितरण का काम बंद कर दिया और स्वतंत्र भारत का काम भी मेरे पास ही आ गया।
वह याद करते हैं कि उस दौर में जागरण अखबार कानपुर से छपना ही शुरू हुआ था। उसकी छोटी-छोटी एजेंसियां हुआ करती थीं। उस समय हुकुमचंद श्रीवास्तव दैनिक जागरण में सेल्स मैनेजर हुआ करते थे। एक दिन वह आए और उन्होंने तब जागरण की एजेंसी हमारे हवाले कर दी। वह दिन है और आज का दिन। कासिम भाई दैनिक जागरण के और जागरण उनका। इस बीच कासिम भाई की जिला सत्र न्यायालय में नौकरी लग गई। कासिम कोर्ट में नौकरी करते रहे और अखबार का काम भी। इस बीच उन्होंने बैंक का कंपटीशन भी दिया। बैंक में नौकरी लग गई। पोस्टिंग मिली सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया में। 3 साल कानपुर में नौकरी करने के बाद उनका उन्नाव तबादला हो गया।
तबादले के बाद कासिम भाई ने फिर सारे प्रमोशन छोड़ दिए। नौकरी और अखबार दोनों काम करते रहे। अखबार वितरण की दुनिया में कासिम में ऐसा नाम है जिन्हें अखबार की दुनिया से जुड़ा हर छोटा बड़ा शख्स जानता ही जानता है। उन्हें बिना जाने किसी की पहचान मुकम्मल नहीं होती। कासिम भाई के अंदर अपने काम को लेकर जो ऊर्जा 52 साल पहले थी, वही आज भी। तड़के 3 बजे जगना और बस अड्डे के पास बने केंद्र पर पहुंचना उनका रूटीन कल भी था और आज भी। हंसते हुए उनके चेहरे पर हमेशा तेज टपकता रहता है। तनाव तो कभी दिखा ही नहीं। उनके नजदीक आकर तनाव भी मुस्कुराने ही लगता है।
वह बताते हैं कि जब अखबार का काम शुरू किया था तब शहर में मुश्किल से 10 15 होकर होते थे आज उनकी संख्या 100 से अधिक है। वह एक ऐसे अभिकर्ता है, जो किसी अखबार का बकाया नहीं रखते। समय पर भुगतान उनकी पहचान है। इस पेज में पांच दशक से अधिक समय तक बने रहने का यही एक कारण भी। नहीं तो पता नहीं, कितने आए-कितने गए?
हम भी करीब 32 वर्ष पहले अखबार की दुनिया से पहले पहल जुड़े। अमर उजाला से जुड़ाव 1994-95 में हुआ। अमर उजाला अखबार कानपुर से 1992 में छपना शुरू हुआ। अखबार प्रबंधन ने प्रसार की दृष्टि से एजेंसी कासिम के बजाय दूसरे को दी। प्रसार को लेकर दोनों अखबारों में कानपुर से लेकर हर जनपद में टकराव हुए। उन्नाव में भी। 1996 में उन्नाव में अमर उजाला की कमान हमें दी गई। कमान मिलने की भी एक रोचक दास्तान है इस पर विस्तार से फिर कभी। अमर उजाला से जुड़े होने के नाते शुरुआती दौर में ही हमारा उनका 36 का आंकड़ा रहा लेकिन निजी संबंध तब भी मधुर थे और आज भी।
पौत्री त्विषा (श्रीजी) के मुंडन के सिलसिले में बीते कुछ दिन अपनी मातृभूमि उन्नाव में गुजरे। उन्नाव का यही प्रवास अखबारों के सेंटर बस अड्डे खींच ले गया। इस दौरान उन्नाव में अखबार की महत्वपूर्ण कड़ी कासिम भाई से लंबे अरसे बाद मिलना-जुलना हुआ। उनसे मिलना एक युग से मिलना है। पुरानी खट्टी मीठी सभी यादें ताजा हुई। उसे दौर से नए दौर तक अखबारों और अखबार वालों में आए बदलाव अभी चर्चा के केंद्र में रहे। अच्छा यह लगा की कासिम भाई ने अपने बाद की पीढ़ी को भी इस प्रोफेशन को अपनाने के लिए तैयार कर लिया है। यानी कासिम युग अभी क्या कभी क्लोज नहीं होगा? ऐसा हमें क्या लगभग सभी को विश्वास है।
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर आज कासिम भाई के मार्फत सभी वितरण को अभिकर्ताओं को एक पत्रकार का प्रणाम और सलाम |
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