सालों-साल ‘रायबरेली’ बदहाल – आरती जायसवाल

रायबरेली : लोकसभा चुनाव निकट हैं इसे देखते हुए आपको क्या लगता है कि कौन होगा अगला सांसद ?
राजतंत्र हावी रहेगा या लोकतन्त्र की जीत होगी ?
सीट बिक जाएंगी या योग्यतानुसार किसी नए चेहरे को दिया जाएगा सांसद बनने का सुअवसर ?
वर्तमान सत्ताधारी नए विकल्प चुनेंगे अथवा परिवारवाद का पोषण करेंगे।क्या जनता के पास यह विकल्प होगा कि वह एक अच्छे और सुयोग्य प्रत्याशी का चयन कर सके ,अथवा पुनः वही चेहरे लाए जायेंगे उनके सामने जो वर्षों से कुर्सी का कीड़ा बनकर विकास के नाम पर देश को खाते आ रहे हैं और जनता पुनः विवश होगी उन्हीं में से किसी एक जोंक ,निकृष्ट व अकर्मण्य नेता को चुनने के लिए?
राजतंत्र – हाय – हाय !भ्रष्ट-तन्त्र मुर्दाबाद!
अपराधिक छवि वाले ,जनता का खून चूसने वाले ,विकास को खोद – खोदकर पुनः विकास करने वाले , ‘जन-गण-मन -धन’ व राष्ट्र को विभिन्न प्रकार से हानि पहुंचाने वाले गद्दार नेताओं कुछ अच्छा नहीं कर सकते तो कुर्सी छोड़ो!वी ०वी ०आई०पी० माने जाने वाले रायबरेली में लोक सभा सीट पर अभी तक कांग्रेस का बोल – बाला रहा है ।मात्र तीन बार ऐसा हुआ है कि किसी अन्य दल को यहां सफलता मिली।१९७७ ईसवी में जनतादल से राजनारायण व १९९६ तथा १९९८ में अशोक कुमार सिंह ही यहां के ऐसे सांसद हुए जो कांग्रेसी नहीं थे।

१६ बार विजय हासिल कर चुकी कांग्रेस की वर्तमान सांसद भी सोनिया गांधी हैं।

नेहरू गांधी परिवार के प्रति यहां के जन की निष्ठा देखते ही बनती है क्योंकि वी० वी० आई०पी० क्षेत्र होने के बाद भी यहां का कोना -कोना अपनी दुरवस्था पर आंसू बहा रहा है; किन्तु घोर आश्चर्य है कि देश के अन्य राष्ट्रभक्तों की भांति इन्हे भी अपने किसी नेता से कोई शिकायत नहीं है सरकार द्वारा लोक सभा चुनाव में उतारे गए प्रत्याशियों में से ही किसी न किसी को चुन लेना यहां की जनता की विवशता बन चुकी है।

हां ‘अधिक बुरा करने वाले की अपेक्षा कुछ न करने वाला बेहतर होता है’ (मैं भी यही सोच कर मतदान करती हूं) की सोच के साथ हर बार नेता चुन लिया जाता है किसी को जो विजय पाने के बाद गधे के सिर से सींग की भांति गायब हो जाते हैं उन्हें कोई लेना देना नहीं होता न रायबरेली से और न यहां की जनता से।

मेरे विचार से इस बार यहां का सांसद वो होना चाहिए जो यहीं का हो,साधारण व सरल हो,रायबरेली की माटी से जुड़ा अपने राष्ट्र और मातृभूमि को समर्पित फिर वो किसी पार्टी का हो अथवा न हो इससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
जनता के समक्ष अच्छे से अच्छा चुनने का विकल्प होना ही चाहिए।

‘राजनीति को गन्दा कहकर उससे किनारा करने के स्थान पर उसे साफ करने हेतु अच्छे और योग्य व्यक्तियों का राजनीति में प्रवेश अनिवार्य है ; क्योंकि जमा हुए कचरे को निकाले बिना किसी भी पात्र में कुछ भी अच्छा नहीं भरा जा सकता और कुछ ‘अच्छा’ भरने के लिए उस ‘अच्छा’ का होना आवश्यक है ।

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