श्रीकृष्ण – रुक्मणी के निश्चल प्रेम की कथा भावविभोर हुए श्रोता
- कथा के समापन पर हुआ हवन पूजन एवं प्रसाद वितरण कार्यक्रम का आयोजन
शिवगढ़,रायबरेली। क्षेत्र के बैंती कस्बे में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन कथा व्यास भरद्वाज जी महाराज ने अपनी अमृतमयी वाणी श्री कृष्ण-रुक्मणी विवाह की कथा सुनाई। बनारस के हरिद्वार घाट से पधारे भरद्वाज जी महराज ने अपने मुखारविंद से श्री कृष्ण- रुक्मणी विवाह की कथा सुनाते हुए कहा कि हम सभी श्रीकृष्ण के प्रेम, त्याग और समर्पण के कई किस्से बचपन से सुनते आ रहे हैं। श्रीकृष्ण और राधा एक दूसरे से प्रेम करते थे, परन्तु श्रीकृष्ण का विवाह रुक्मणी से हुआ था। कहते हैं राधा कृष्ण के बीच आध्यात्मिक प्रेम था, इसलिए उन्होंने विवाह नहीं किया। राधा से बिछड़ने से लेकर श्रीकृष्ण और रुक्मणी विवाह की कई कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन एक समय ऐसा भी आया था जब श्रीकृष्ण और रुक्मणी को भी बिछड़ना पड़ा था।
आइये जानते हैं आखिर किस वजह से श्रीकृष्ण और रुक्मणी को 12 साल तक अलग रहना पड़ा। भरद्वाज जी महराज ने कहाकि भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मणी को एक श्राप के कारण अलग रहना पड़ा था। पौराणिक कथा के अनुसार, विवाह के बाद श्रीकृष्ण रुक्मणी के साथ द्वारिका स्थित दुर्वासा ऋषि के आश्रम पहुंचे थे। श्रीकृष्ण ने गुरु दुर्वासा को भोजन ग्रहण करने और आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया। दुर्वासा ने श्रीकृष्ण के आमंत्रण को स्वीकार कर लिया परंतु एक शर्त भी रखी। दुर्वासा ने कहा कि उनके लिए एक अलग रथ की व्यवस्था किए जाए, श्रीकृष्ण ने उनकी शर्त मान ली।एक रथ होने की वजह से घोड़ों की जगह श्रीकृष्ण और रुक्मणी स्वयं रथ में जुत गए। इस रथ पर दुर्वासा ऋषि रवाना हुए और कृष्ण और रुक्मणी रथ को खींचने लगे। इस दौरान रास्ते में रुक्मणी को प्यास लगी. लेकिन, बीच रास्ते में जल की व्यवस्था नहीं थी. इसलिए श्रीकृष्ण ने जमीन पर पैर का अंगूठा मारा जिससे गंगाजल निकलने लगा।
गंगाजल से श्रीकृष्ण और रुक्मणी ने अपनी प्यास बुझा ली, परंतु ऋषि दुर्वासा को जल के लिए पूछना भूल गए। इससे ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो गए और श्रीकृष्ण और रुक्मणी को 12 वर्ष तक अलग रहने का श्राप दे दिया और दोनों 12 साल तक अलग अलग रहे। रुक्मणी ने 12 साल तक भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की, जिसके बाद प्रसन्न होकर श्रीहरि ने रुक्मणी को श्राप मुक्त कर दिया। कथा के समापन पर शुक्रवार को हवन पूजन एवं प्रसाद वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन मानव कल्याण के निर्देश में ग्रामीणों की सामूहिक सहयोग से किया गया। इस मौके पर भारी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।
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