आदर्श मूल्यों के प्रचारक,काव्य सर्जक प्रेम किशोर पांडेय जी : डॉ. सविता चडढा

नयी दिल्ली : स्मृति शेष आदरणीय श्री प्रेम किशोर पांडेय, रामनगर नगर पालिका के तीन बार चेयरमैन रहे।आप पक्के कांग्रेसी और गांधीवादी विचारधारा के समर्थक थे। डीएवी इंटर कॉलेज वाराणसी में अंग्रेजी के प्राध्यापक थे। भाषा प्रेम की बात की जाए तो आप हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाषा को जानने और जीने वाली शख्सियत थे।

आदर्शों-मूल्यों के प्रचारक , समाज के पथ प्रदर्शक, शायर और कवि के रूप में आप न केवल रामनगर बल्कि वाराणसी ,मुगलसराय, चंदौली ,मिर्जापुर और आसपास के तमाम क्षेत्रों में आपकी एक अलग विशिष्ट पहचान थी। आप एक कुशल वक्ता भी थे और महात्मा गांधी की तरह आप सत्य, अहिंसा और प्रेम को सर्वाधिक महत्व देते थे ।
राम नगर के सर्वोपरि प्रशासक, एकजुटता, वसुधैव कुटुंबकम की परिभाषा को चरितार्थ करने वाले थे।यह जानकारी हम सबके लिए बहुत सुखद है कि बहुत छोटी आयु में आपका रुझान कविता और शायरी के प्रति हो गया था ।आपकी शायरी, कविताएं कॉलम धर्मयुग में ,आज अखबार में, गांडीव में छपा करती थी। समसामयिक घटनाओं पर आप बहुत बड़े समालोचक थे।

उनकी लिखी रचनाएं जो उनके जीवन काल में प्रकाशित नहीं हो पाईं उनके प्रकाशन का उत्तरदायित्व डॉ प्रेम दत्त पांडेय जी की सुपुत्री और उदीयमान लेखिका डॉ कल्पना पांडेय “नवग्रह” ने लिया है। एक बेटी के रूप में उनके इस कृतित्व कि मैं भूरी भूरी प्रशंसा करती हूं ।
आदरणीय डॉ प्रेम दत्त पांडेय जी के इस ग्रंथ में एक सच्चे मन की लोकहितार्थ, समाजोपयोगी, सार्थक चिंतन की स्पष्ट झलक दिखाई देती है। उनका रचना संसार अत्यंत व्यापक है। ऐसा प्रतीत होता है संसार का कोई भी समाजपयोगी विषय आदरणीय पांडेय जी की कलम से अछूता नहीं रहा । ऐसी महान शख्सियत के ग्रंथ के प्रकाशन और उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए मैं इस संग्रह में उपस्थित हूं यह मेरे लिए अत्यंत गौरव के पल है मैं ऐसे पिता को अपने विनम्र आदर पूर्वक श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूं और ऐसी बेटी को अपनी अनंत मंगलकामनाएं देते हुए अपना स्नेह प्रदान करती हूं।

यहां मैं उनकी एक कविता “तुम को क्या हो गया बनारस “की कुछ पंक्तियां प्रस्तुत करती हूं :
किस की काली छाया तुम पर
पड़ी, कि तू असहाय हो गया ।
अपने संस्कृति की रक्षा में ,
क्यों कर तू निरुपाय हो गया ।
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हिंदू-मुस्लिम बेटे तेरे,
दोनों बड़े चहेते तेरे,
तेरी गोद फूले हैं ,
दोनों बने कलेजे तेरे ,
सूर्य चंद्रमा से दोनों तुझको,
फिर कैसे आ गई अमावस ,
तुझको क्या हो गया बनारस ।

इस कविता के केवल दो पैरा ही मैंने इसमें उद्धृत किए हैं ,आप जब यह पूरी कविता पढ़ेंगे तो आपको उनके मन में बनारस के प्रति प्रेम की स्पष्ट झलक दृष्टव्य होगी ।
जैसा कि मैंने कहा है इस संग्रह में आपको इंद्रधनुषी रंग मिलने वाले हैं उनके लिखी चार पंक्तियां और उद्धृत करना चाहती हूं:
इस कालरात्रि को झंझो में ,
मैं चौक उठता हूं कभी-कभी,
माता की स्नेहसिक्त वाणी,
सुनता सपनों में कभी-कभी ,
चल पड़ता मां की आशा में,
उठ पङता हूं मैं उसी समय ,
पाता हूं टीस भरी रजनी ,
फैली रहती जो दिग्दिगंत,
मां की ममता की गोदी में,
मैं पार हुआ षोडश बसंत ।

छोटी आयु में मां पर इस प्रकार के भाव आना विचारणीय है ।विश्व को डॉ कल्पना पांडेय जैसी बेटियों पर सदैव गर्व होगा जो अपने पिता के संस्कारों और उनसे प्राप्य संस्कृति को आगे ले जाने में सक्रिय भूमिका निभाती हैं ।डॉ कल्पना पांडेय द्वारा संपादित उनके इस संग्रह को भरपूर प्यार और सम्मान मिलेगा ऐसी मुझे आशा ही नहीं विश्वास भी है।

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