नई नवेली दुल्हन पहली होली मायके में क्यों मनाती है
धर्म संस्कृति : होली के त्यौहार को रंगों का त्योहार भी कहते हैं समस्त देशवासी होली बड़े प्यार और खुशी के साथ मनाते हैं नई दुल्हन पहली होली अपने मायके में मनाती है। हिंदू धर्म में होली के त्यौहार को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं और यह पर्व बड़े ही रीति-रिवाजों से मनाया जाता है फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन होली का पर्व मनाया जाता है और पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है होलिका दहन के दूसरे दिन से ही चैत्र माह का प्रारंभ हो जाता है और होलिका का पर्व पूर्णिमा से लेकर अष्टमी तक मनाया जाता है होली का पर्व अष्टमी होली का पर्व समाप्त माना जाता है।
होलिका अष्टमी के दिन छोटी-छोटी गेहूं के आटे से 14 पुड़िया बनाई जाती है गुजिया बनाई जाती है उसे कोई थाली में सभी पूजा की सामग्री करके स्थापित माताजी के मंदिर में रंग गुलाल के साथ छोटी होली मनाई जाती है. इस दिन छोटी होली जलाई जाती है।
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नई नवेली दुल्हन ससुराल में पहली होली क्यों नहीं मनाती है
परंपरा के अनुसार ससुराल में अशुभ माना जाता है कि अगर दुल्हन पहली होली ससुराल में मनाती है तो यह अशुभ माना जाता है कहा जाता है कि पहली होली ससुराल में मनाने से सास और बहू की ज्यादा बनती नहीं है या फिर दो में से एक की मौत हो जाती है क्योंकि कहा जाता है कि लड़की को होली का जलता हुआ पहला लुक ससुराल में नहीं देखना चाहिए और इसका दूसरा कारण यह भी कहा जाता है कि होली का जन्म एक राक्षस कुल में हुआ था और यह हिरण्यकश्यप की बहन थी और अग्नि देव की उपासक थी इसलिए ससुराल की पहली होली जलते देखने का मतलब है कि आप होलिका का पुराना शरीर जलते हुए देख रहे हैं इसलिए नवविवाहित कन्या को इसका देखना अशुभ माना जाता है और नई दुल्हन और उसका पति अगर दुल्हन के मायके में जाकर दूल्हा और दुल्हन के सखियों के साथ मनाते हैं जिससे कि पति पत्नी में अत्यधिक प्रेम बढ़ता है और रिश्तो में मिठास और विश्वास बढ़ जाता है।
होली के रंगों का त्योहार कहा जाता है होली में रंगों का बहुत बड़ा महत्व है कहा जाता है कि होली एक दूसरे को रंग लगाकर बड़े ही हर्षोल्लास से मनाते हैं और होली में एक दूसरे को रंग लगाकर अपना प्रेम भी बरसाते हैं इसी कारण होली नई दुल्हन को अपने मायके में मनाना चाहिए।