धर्म और संस्कृति : रायबरेली के आस्तिक स्वामी मंदिर की महिमा
- क्यों हुआ आस्तिक मुनि का जन्म
रायबरेली : जिले के लालू पुर गांव में बना है आस्तिक मंदिर जो कि रायबरेली से ठीक 20 से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यहां पर दूर-दूर से लोग आकर दर्शन करते हैं यह मंदिर सही नदी के किनारे पर स्थित है यहां पर हर सोमवार और शुक्रवार को मेला लगाया जाता है वैसे तो यह मेला वर्ष के प्रत्येक सोमवार को लगता है लेकिन वर्ष के सावन महीने में यह मेला और ज्यादा भीड़ वाला होता है सावन माह में प्रत्येक सोमवार को लाखों लोगों की संख्या में भीड़ हो जाती है क्योंकि सावन माह में यहां ज्यादा ही मान्यता दी जाती और एक बात यह है कि सावन महीने में नाग पंचमी के एक दिन पहले ही बहुत धूमधाम से मनाया जाता है इस दिन यहां पर बहुत दूर से लोग दर्शनार्थी आते हैं 1 दिन या 2 दिन पहले आकर यहां ।
रुकते हैं और तब यहां शाम का दृश्य और भी अत्यधिक सुंदर लगता है क्योंकि शाम को बहुत दर्शनार्थी एटा मिट्टी के चूल्हा बनाकर भोजन बनाते हैं और प्रेम से बैठ कर खाते हैं भजन कीर्तन भी करते हैं मंदिर में जगह-जगह रामायण भी लोग करते हैं तब दृश्य और भी सुंदर लगता है क्योंकि नाग पंचमी के ठीक 1 दिन पहले ही रात 2:00 बजे से खंभा गिर चढ़ाने के लिए लोग लाइन में आप कतार में खड़े होकर अपने खंभा गिर चढ़ाने का इंतजार करते हैं इस दिन जिले के जगह-जगह से पुलिस प्रशासन भी आकर अपना कार्य करती है और सभी प्रकार की दुकानें बड़ी-बड़ी लगाए जाते हैं जैसे कपड़ा बर्तन चूड़ी मिठाई चार्ट पकोड़े समोसे पानी पूरी आज की बहुत बड़ी बड़ी दुकानें लगाई जाती है और आस्तिक मुनि मंदिर के साथ-साथ माता शीतला दुर्गा हनुमान राम दरबार पहलवान वीर बाबा शिव बाबा आज देवताओं के मंदिर में स्थापित है।
कैसे हुई आस्तिक मुनि की स्थापना
पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि एक बार सई नदी में अचानक बाढ़ आ गए थे जिससे लोगों के घर इधर-उधर हो गए थे और जिनके घरों के अंदर पानी पहुंच गया था वह मंदिर का स्थान सबसे ऊंचे पर था तब हर लोग जाकर रहने लगे तभी कहा जाता है वहां पर एक साधु कहीं से आ गए थे तब वहां पर आकर अपनी कुटिया बनाकर रहने लगे थे और वह थोड़ा बहुत झाड़ फूंक भी करते थे वहीं पर रहकर झाड़-फूंक करने लगे तभी एक दिन वहां पर एक शर्त निकला और स्वप्न में साधु से कहने लगा है साधु हमारा स्थान यहीं पर बनवा दो मैं आस्तिक मुनि हूं मैं यहां जो दर्शनार्थ दर्शन करने आएंगे उनकी हम सब भी मनोकामना पूरी करेंगे और जिन मनुष्य को किसी सर्प ने डस लिया तो हम उसे अपने दरबार में अच्छा आ कर देंगे फिर सुबह वह व्यक्ति यह बात गांव वालों को बताएं तब गांव वाले इस बात को मानकर मंदिर बनाने के लिए तैयार हो गया और मंदिर का निर्माण कर दिया गया.
आस्तिक मुनि के पिता कौन थे
जरत्कारु ऋषि के बारे में कहा जाता है कि उनका नाम जरूर का रूप कैसे पड़ा और क्या है उस नाम का अर्थ जरा शब्द का अर्थ है चाहिएकारू शब्द का अर्थ दार और तात्पर्य है उनका शरीर पहले बड़ा ही हटा कटा था बाद में तपस्या करके उन्होंने अपना शरीर बना लिया था इसी से उनका नाम जरूर कालुपड़ा वासुकी नाग की बहन भी पहले वैसी ही थी बाद में उन्होंने अपना शरीर भी वैसे ही कर लिया था इसलिए वह भी जल कारू कहलाए राजा परीक्षित का राज्य काल था उस समय जरूर करो रिसीव ब्रह्मचर्य धारण करके कपस्या करते थे मुनिवर निर्भय होकर सारी पृथ्वी पर घूमते फिरते रहते थे रिवर का एक नियम था कि जहां संध्या हो जाती थी वहीं ठहर जाते थे और तीर्थ स्थानों पर जाकर स्नान करते और कठोर तप का पालन भी करते थे जो कि सामान्य व्यक्ति के कर लिए करना बहुत ही मुश्किल कार्य था वह केवल वायु पीकर निराहार व्रत करते थे जिससे कि उनका शरीर बहुत ही सुपर दुबला हो गया तब क्यों हुआ आस्तिक मुनि का जन्म जरूर करूं उनके गड्ढे में नीचे की तरफ रहते हुए थे और वही 1 दिन का ही बचा था और उसे भी एक चूहा कूद रहा था इतने दुबले थे उनके पास पहुंचकर पूछा आप लोग इस घास के तिनके के सहारे लटक रहे हो और इस दिल की एक चूहा उतर रहा है आप लोग कब जब इस कीचड़ कट जाएगी तब आप लोग मुंह के बल नीचे गिर जाएंगे।
आप लोगों को इस अवस्था देखकर मुझे बहुत दुख हो रहा है हम आपकी बहुत चिंता हमें आपकी बहुत चिंता हो रही मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं तब मुनिवर ने है कि हम लोगों की सेवा के लिए आप तीसरे आधे भाग से बचाया जा सके और मैं क्या करूं मैं अपनी समस्या का फल देकर मैं आप लोगों को बचाना चाहता हूं आप आज्ञा कीजिए कहा कि अगर आप हम को बचाना चाहते हो तो सुनो हमारी समस्या का हल तपस्या से नहीं कर सकती तपस्या का फल तो हमारे पास भी है परंतु वंश परंपरा के नाश होने के कारण हम गिर रहे हैं इसलिए हमारी बात को सुनिए हम लोग आए हैं हमारे बस एक ही वंश बचा हुआ है लेकिन वह भी नहीं के बराबर है दुर्भाग्य से वह भी हो गया है वहीं उसने तपस्या करके हमें संकट में डाल दिया उसके ना तो कोई भाई बहन बंद पत्नी पुत्र भी नहीं है इसी कारण बेहोश होकर हम अनाज की तरह लटक रहे हैं यदि मिल जाए तो उससे कहना कि तुम्हारे में नीचे लटक रहे तुम अपना विवाह करके संतान उत्पन्न करो आप यह देख रहे हैं।
यही हमारे वंश का एकमात्र सहारा हमारे वंश के लोग जो नष्ट हो चुके हैं इसकी कटी हुई जड़ है और यह भी जरूरी है और जो चढ़ने वाला चूहा है वह महाबली काल है और यह काले दिन जरूर कारू को भी नष्ट कर देगा जजों की बात सुनी तो उन्हें भी बहुत कष्ट हुआ और गद्दारों को कहा कि मैं जरूर हूं आप लोग मेरे पिता पितामह मैं आप लोगों का अपराधियों में दर्द देकर कर्म करे करने योग्य काम बताइए हमारे लिए सौभाग्य की बात है पितरों ने कहा मैं मुक्ति दिलाने के लिए तुम विवाह करके एक संतान की प्राप्ति करके हमें मुक्ति दिलाने तो सोचा था कि अखंड ब्रह्मचर्य का पालन करके स्वर्ग की प्राप्ति करो परंतु मैं आपको देखकर अपना विवाह शीघ्र करुंगा उसी दिन से अपने नाम की कन्या को ढूंढ कर शादी का निश्चय किया कि अगर अपनी बहन को हमें भी अच्छा के रूप में दोगे तो मैं इसे स्वीकार कर लूंगा और मैं इस का भरण-पोषण नहीं करूंगी कभी भी कोई अप्रिय किया तो मैं इसे छोड़ कर चला जाऊंगा।
तब उनके घर पर विवाह संस्कार हुआ कोई भी काम मत करना जिससे मुझे छोड़कर जाना पड़े क्योंकि मैंने यह से पहले अपनी गोद में सो रहे थे तभी कबीर इस पत्नी ने सोचा कि सूर्यास्त का समय हो गया है अब मैं इन्हें जगह आ रही हूं तो यह धर्म के अनुकूल है काफी सोच के बाद ऋषि पत्नी ने उन्हें जगह दिया तब दृश्य को क्रोध आ गया और वह वाह घर छोड़कर जाने लगे तब पत्नी मधुर वाणी में बोली कि आप क्षमा कर दीजिए किंतु संध्या का समय हो गया जब ऋषि ने कहा कि जब तक हम जग नहीं जाते तब तक सूर्य अस्त नहीं होता और इतना कहकर जरूर का रूप चलने लगे तब नागकन्या ने कहा कि आप जा तो रहे हो लेकिन सर विनाशक यज्ञ और आपके पितरों का क्या होगा जो खर्च की जड़ से उल्टा लटक रहे हैं तब इसने कहा कि एक रिश्ता बच्चन है कि तुम्हारे गर्व से ही आस्तिक कंचन होगा जो कि सर भुना सकी है कि को का भी उद्धार करें और वही नागकन्या मनसा देवी मनसा देवी के नाम से विख्यात और जब वह गर्भ में तभी रिश्ता ने उसके संबंध को अस्ति का पद उच्चारण किया था इसलिए उस बालक का नाम आस्तिक पड़ा वह बड़ा होकर नागों को अपनी ओर आकर्षित करने लगा।