एक देशी गाय से किसान भाई कर सकते हैं 30 एकड़ खेती : शेषपाल सिंह
- प्राकृतिक खेती करके रासायनिक खादों और दवाओं और बीजों को करें बाय-बाय ! भोजन की थाली को बनाएं विष मुक्त
- किसान भाई जीरो बजट पर कर सकते हैं प्राकृतिक खेती
शिवगढ़,रायबरेली। शिवगढ़ क्षेत्र के कसना गांव के रहने वाले जागरूक, प्रगतिशील एवं प्राकृतिक शेषपाल सिंह ने जीरो बजट पर खेती करने के सिद्धांत को साबित कर दिखाया है,जिनसे आज क्षेत्र के सभी किसान प्रेरणा ले रहे हैं। शेषपाल सिंह ने यह साबित कर दिया है कि रासायनिक खादों, कीट नाशकों के प्रयोग से होने वाले उत्पादन से कहीं ज्यादा प्राकृतिक खेती से कृषि उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। शेष सिंह बताते हैं कि सन 2017 से पहले वह भी अन्य किसानों की तरह रासायनिक खेती करते थे। खेतों में रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का प्रयोग करते थे। सन् 2017 में सुभाष पालेकर जी से प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण लेने के बाद से वे सुभाष पालेकर प्राकृतिक कृषि करने लगे। पहले सिर्फ धान गेहूं की खेती करते थे एसपीएनएफ करने से अद्भुत परिणाम देखने को मिले।
आज उसी जमीन में सभी प्रकार के दलहन, सभी प्रकार के तिलहन सभी प्रकार के अनाज पैदा करने में सक्षम है। उन्होंने बताया कि आज ना तो वे बाहर से किसी प्रकार की खाद खरीदते हैं और ना ही किस प्रकार के कीटनाशक और दवायें खरीदने हैं। प्राकृतिक खेती की बदौलत दलहन, तिलहन, आनाज के साथ ही सहफल खेती करते हैं। सहफली खेती से भोजन की थाली की सभी जरूरतें पूरी हो जाती हैं, भोजन की थाली विष मुक्क्त और पोषण युक्त हो गई है। पंच वाटिका.से आम,आंवला, सहजन, बेल सहित विभिन्न प्रकार के फल मिला है, फलों का उत्पादन कई गुना ज्यादा बढ़ गया है। उन्होंने बताया कि खेत में किसी प्रकार की रासायनिक खाद और दवा का प्रयोग नहीं करते, बाहर के बीजों का प्रयोग नहीं करते केवल देशी गाय के गोबर और गोमूत्र से 4 हेक्टेयर खेती करते हैं।
गाय के गोबर और गोमूत्र से ही जीवामृत, घन जीवामृत और वीजामृत एवं दवाएं बना लेते हैं और उसी से खेती करते हैं। उन्होंने बताया कि एक गाय से 30 एकड़ तक की थी की जा सकती है। प्राकृतिक खेती से आज वे सशक्त स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर बन गए हैं, लगातार आर्थिक मजबूती की ओर आगे बढ़ रहे हैं। सबसे अच्छी बात है कि प्राकृतिक खेती में जीवामृत एवं दवाओं के छिड़काव के लिए किसी श्रमिक की जरूरत नहीं होती, सिंचाई के समय पानी के साथ जीवामृत एवं दवाएं खेत में चली जाती हैं।
दबाव और प्रभाव में खब़र न दबेगी,न रुकेगी