अंडा मांसाहारी है -सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज,अन्न दोष सबसे बड़ा दोष है, यह खूब आता है और रोज आता है
ओम प्रकाश श्रीवास्तव /बाराबंकी : उत्तर प्रदेश छोटे-मोटे परहेज से बड़ी बीमारियों, तकलीफों से बचने का उपाय बताने वाले, सेवा का महत्त्व समझाने वाले, सेवा करने का मौक़ा देकर पूर्व के गलत कर्मों की मिल रही और आगे मिलने वाली सजा को ख़त्म करवाने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 1 जनवरी 2023 प्रातः उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेव यूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि अपने घर में आदमी मजबूरन बनाता, पकाता, खाता है। सतसंगी तो और मजबूरी में आ जाते हैं क्योंकि जहां दो ही प्राणी रहते हैं, इन बच्चियों को मना किया गया है कि जब तुम्हारा मासिक धर्म हो, पांच दिन तो भोजन मत बनाना, मत नहाना, कोई ऐसा काम मत करना। तो मजबूरी आ गई। तो पच्चीस दिन जो बनाती, खिलाती है तो उसको भी बनाना, खिलाना पड़ता है। उसमें भी कर्जा अदा हो जाता है।
इतना सेवा किया पच्चीस दिन बनाई खिलाई, अब बनाकर उसको खिलाओ। तो अपने घर में भी मजबूरन आदमी को बनाना पड़ता है। तो जो भोजन बना लेते हो, जरूरत है भंडारे में तो वहां सहयोग कर दो, जल्दी हो जाएगा। देखो जिसके लायक जो सेवा हो तो जब सतसंग में आओ तो सेवा को पकड़ा करो। अपना समझा करो। यह न सोचा करो कि गंजेड़ी यार किसके, दम लगा कर खिसके। आये सतसंग सुने फिर सटक गए (चले गए)। मिल गया तो खा लिया नहीं तो अंदर ही अंदर भुन-भुनाते रहे कि व्यवस्था अच्छी नहीं है, देखो यह खत्म हो गया, इनको और बनाना चाहिए। मन खराब करके आदमी चला जाता है। लेकिन अगर उसी काम में लग जाए, जो नहीं हो पा रहा है, बेचारे दिन-रात लगे हुए हैं, नहीं हो पा रहा है, उसमें लगकर के करा लिया तो करने वाले जो हैं, एक दिन के लिए भी आया, उसको भी आनंद का अनुभव हो जाता है।
बहुत से लोग अपने ज्ञान हुनर को छिपाए दबाये रहते हैं। हुनर को बांटना चाहिए। जो योग्यता है, उसको देना, बांटना चाहिए। और नहीं तो वह आपके साथ चली जाएगी। और कब योग्यता चली जाएगी, कुछ नहीं पता। क्योंकि शरीर के साथ में योग्यता जुड़ी हुई है। शरीर का कोई ठिकाना नहीं। तो कब यह शरीर छूट जाए इसीलिए उसको बांटना चाहिए।
अन्न दोष सबसे बड़ा दोष है
महाराज जी ने 7 अक्टूबर 2021 सायं उज्जैन आश्रम में बताया कि सतसंग सुनते रहेंगे तो संग दोष से बचे रहेंगे। और अन्न दोष, यह सबसे बड़ा दोष है। और इसका असर खूब आता है और रोज आता है। संग तो कभी-कभी पड़ता है। जैसे आप गांव के लोग खेती करते हो। आप गांव में रहते हो, दिन भर मेहनत करते हो, अपना खेती का काम करते हो और शाम को आते हो, भोजन करके सो जाते हो। किसका साथ रहता है? परिवार वालों का। वही अड़ोसी-पड़ोसी, गांव वालों का साथ ज्यादा से ज्यादा मिलेगा। लेकिन जो लोग बाहर निकलते हैं उनको साथ हर तरह के लोगों का मिलता है। आप जो इसमें ज्यादातर गरीब किसान लोग हो तो आप तो समझो बच जाते हो लेकिन अन्न के दोष से नहीं बच सकते हो। साथ कभी-कभी पड़ता है, स्थान कभी-कभी बदलता है। लेकिन अन्न तो रोज चाहिए। सतयुग में हड्डी में प्राण था।
त्रेता में लहु (खून) में प्राण था और द्वापर में त्वचा खाल में प्राण था। और कलयुग में अन्न में प्राण आ गया। तो अन्न तो रोज चाहिए। अब अगर अन्न दूषित आ गया, इधर-उधर से बगैर मेहनत की कमाई का खाए तो बुद्धि तो भ्रष्ट होनी ही होनी है। और आश्रम वासियों को तो विशेष इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यहां पर जो अन्न आता है, वह तरह-तरह के लोग देते हैं। कुछ लोग तो इस हिसाब से देखते हैं कि हम मेहनत करते हैं, हमारी आमदनी होती है, हम अनाज पैदा करते हैं। इसका कुछ अंश निकाल दिया जाए जिससे यह शुद्ध हो जाए। तो जहां भी, जो भी परिवार के आदमी के ऊपर ये लगे, उसकी बुद्धि सही रहे। कुछ ये सोच कर देते हैं कि कोई तकलीफ या रोग हो गया, कहीं कोई बात हो गयी, मुकदमेबाजी में फंस गए आदि तो ये संकल्पित धन होता है।
ज्यादातर लोग हवन, पूजा पाठ, अनुष्ठान संकल्प बना कर करते हैं। पितृपक्ष में लोग भोजन कराते हैं? किसके लिए कराते हैं? हमारे जो पितर कोई प्रेत आत्मा में चले गए हो तो खिलाएंगे। जो यह खाएंगे, वह उनको मिलेगा। इसी तरह से संकल्प बनाते हैं। तो यह जो होता है संकल्पित धन होता है। इसलिए कहा गया साधकों को भैरव पूजा, देवी-देवता पूजा आदि का जो संकल्पित भोज होता है, उसको और उस पर चढ़ाया हुआ नहीं खाना चाहिए। सतसंगियों को जो साधना करते हैं अपने को सतसंगी मानते हैं, जो सत्य का संग, परमात्मा सत्य है, उसका संग करना चाहते हैं उनको नहीं खाना चाहिए। ये संकल्पित धन का जो व्यक्ति खाता है, उसका असर खाने वाले पर भी पड़ता है।
जब दवाएं नहीं बनी थी
महाराज जी ने 21 दिसंबर 2020 प्रातः रेवाड़ी (हरियाणा) में बताया कि जब तक शरीर में ताकत है, अपने आत्म कल्याण करने के इस मिले हुए रास्ते पर आप चलते रहो। सुमिरन ध्यान भजन बराबर करते रहो। सुमिरन ध्यान भजन में जब मन न लगे, वातावरण शुद्ध नहीं है, जहाँ खान-पान लोगों का सही नहीं है, वहां दिल, दिमाग, मन, बुद्धि के ऊपर असर आता है। उसके असर से मन लोभी, लालची, कामी, क्रोधी हो जाता है, सुमिरन में मन नहीं लगता है। तो उस असर को दूर करने के लिए सेवा करनी चाहिए। जैसे कोई दवा खाने पर दवा का रिएक्शन हो जाता है तो उस रिएक्शन को मिटाने के लिए ग्लूकोस चढ़ा देते हैं, गोली देते हैं। जैसे सांप बिच्छू की दवा जब नहीं बनी थी तो लोग सांप द्वारा काटे हुए व्यक्ति को घी पिलाते थे। सांप के जहर का असर बहुत दिन तक रहता है।
बदन में खुजली, जलन होने लगती है, चक्कर आने लगता है। जहर अपना असर अनुकूल मौसम होने पर दिखाता है। जैसे कुत्ते के काटे का, जहर का असर तत्काल नहीं बल्कि बरसात आने पर होता दिखता है। फिर आदमी उसी तरह से भौंकने लगता है। सियार के काटने का भी असर कुछ समय बाद में आता है। फिर सियार के काटे आदमी को पानी दिखाने लग जाओ तो पानी देखकर भागता है। फिर समझ लो बस अब दो-चार दिन का मेहमान है। ऐसे ही हर चीज की एक दवा, काट होती है। जहर को मिटाने के लिए प्रकृति ने चीजें बना दी है।
जानकार, लोगों को बता देते बताते हैं। अब डाक्टर बता देते हैं। दवा रिएक्शन कर गई, तो ये इंजेक्शन लगा दो, गर्मी की जगह ठंडी चीज को खिला दो तो उसका असर नहीं आएगा। इस असर को खत्म करने के लिए जिससे मन, चित, बुद्धि सही हो जाए, मन असला काम में लगने लग जाये, उसके लिए सेवा का विधान सन्तों ने बना दिया है। तो बराबर, जो भी काम संगत का हो, गुरु महाराज का नाम और काम बढ़ाने में, जो भी जहां भी, जैसे भी हो सके, उसमें मदद करते रहना चाहिए। तन मन धन की जो हो सके सेवा, बराबर करते रहना चाहिए । इससे अंतरात्मा की सफाई होगी, बुद्धि सही होगी। मन दुनिया के विषयों से अलग होगा, दुनियादारी की तरफ से कमजोर पड़ेगा और परमार्थ की तरफ मन लगने लग जाएगा। तो मन को तो लगना ही लगना है। थोड़ा सा इधर से हटाओ, उधर लगा दो। तो जिधर ही लगता है, तो उसी तरफ चला जाता है।
अंडा मांसाहारी है
महाराज जी 17 जून 2023 सायं करनाल (हरियाणा) में बताया कि आप किसी भी पशु पक्षी का मांस, मछली और अंडा मत खाना। (कुछ लोग) कहते हैं कि अंडा शाकाहारी है। यह उनकी महा भूल है। अंडा बड़ी गंदी चीज है। अब तो वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया है कि यह मांसाहारी है। यह मातायें मासिक धर्म होती है, खराब खून इक्ट्ठा हो जाता है, बच्चा बन जाता है। मुर्गियों का खराब खून, उनके लैट्रिंन पेशाब का खराब हिस्सा जब इकट्ठा हो जाता है तो वही अंडा बन जाता है। अब सोचो आप यह कितनी गंदी चीज है। इसीलिए इससे दूर रहना चाहिए।