राम वनगमन प्रसंग सुन भाव विभोर हुए श्रोता

शिवगढ़ (रायबरेली) क्षेत्र के बहुदाखुर्द में चल रही श्रीरामचरित मानस पाठ ज्ञान महायज्ञ के पांचवें दिन पंडित भगवती दुबे ने अपने मृदुल कण्ठ से राम वनगमन,श्रीराम केवट संवाद प्रसंग सुनाया। भगवान श्रीराम के वनगमन की कथा सुनकर श्रोताओं की आंखें भर आईं। श्री दुबे ने कहा कि एक बार मां भवानी ने भोले शंकर से कहा ‘कहहु पुनीत राम गुन गाथा, भुजंगराज भूषण सुर नाथा।’ इस पर भोलेनाथ ने कहा कि ‘धन्य-धन्य गिरिराज कुमारी, तुम्ह समान नही को उपकारी।’ हे भवानी सुनो राम कथा के श्रवण से कामी, क्रोधी, पापी तर जाते हैं, उनको मोक्ष प्राप्त हो जाते हैं। मां भवानी के आग्रह पर शिव भगवान ने केवट-राम संवाद सुनाना प्रारम्भ किया। कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि शिव ने पार्वती से कहा कि जब राम, लखन व सीता पिता के वचनानुसार वनवास के लिए चले तो राम ने गंगा नदी पार करने के लिए निषादराज केवट से नौका मांगी किन्तु ‘मांगी नाव न केवट आना, कहहि तुम्हार मरम मैं जाना।’ भगवान शिव के ऐसे प्रसंग को सुनकर गौरा विचलित हो उठी और बोली कि जिस राम ने वामना अवतार में महाराजा बलि से तीन पग में तीनों लोक नाप लिया था तो उनको नौका कि जरुरत क्यों पड़ी। भगवान शिव ने कहा हे महाकाली नौका मांगने के पीछे का रहस्य आज मैं तुम्हे सुनाता हूं सो सुनो। एक बार देवराज इंद्र की सभा में गंधर्व चित्रकेतु गीत सुना रहे थे। वहां सभी देवता व संत ऋषि मौजूद थे। उनमें महाक्रोधी दुर्वासा भी मौजूद थे। गीत चल ही रहा था कि चित्रकेतु से व्यंग हो गया।

इस पर दुर्वासा कुपित हो गए तथा चित्रकेतु को वृक्ष होने का श्राप दे दिया। चित्रकेतु के अनुनय-विनय पर दुर्वासा द्रवितभूत हो गए और मुक्ति का मार्ग बताते हुए कहा कि जब राम वनवास के लिए गंगा पार करेंगे तब तुम्हारे वृक्ष की लकडी़ से बनी नौका में पैर रखते ही तुम्हारा उद्धार हो जायेगा। इसलिए हे भवानी भगवान राम ने चित्रकेतु की मुक्ति व दुर्वासा के कथनों को सत्य करने के लिए नौका की मांग की। शैलपुत्री ने कहा वो तो ठीक है पर केवट भगवान को नौका में क्यों नही बैठा रहा था, इस पर भोलेनाथ ने कहा कि निषाद बहुत ही चालाक था वह उतराई के बदले धन नहीं अपितु स्वयं के भवसागर से उतारने में प्रभु की सहायता की प्रभु के चरण धुलने की मांग कर रहा था, इसलिए नौका नहीं लाया। जब प्रभु ने सारी शर्ते स्वीकार कर ली तो केवट ने भगवान को गंगा पार करा दिया। इस दौरान कथा आयोजक इंद्रजीत राजपूत ,हरिश्चंद्र राजपूत, विंदा मौर्य, संत राम मौर्य, रामदेव गोस्वामी, दीपक गोस्वामी, बजरंग ,राजकुमार ,प्रेमचंद आदि लोग मौजूद रहे।

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