Student of the district achieved the development of a strip that can test sugar through urine.

जिले के छात्र ने यूरिन से शुगर जांचने वाली स्ट्रिप डेवलप की उपलब्धि

यह नया शोध उन लोगों के लिए वरदान साबित होगा जो रक्त परीक्षण से डरते हैं
यूरिन आधारित टेस्ट स्ट्रिप से ग्लूकोज मॉनिटरिंग अधिक सुलभ होगी
दौलतपुर गांव के रहने वाले विभव शुक्ल नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी रायपुर से कर रहे हैं शोध

रायबरेली : शरीर में शुगर की जांच के लिए अब ब्लड सैंपल निकालना जरूरी नहीं होगा। शुगर लेवल की जांच यूरिन (पेशाब) से भी की जा सकेगी। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रायपुर में जनपद के शोध छात्र विभव शुक्ला ने ब्लड की जगह यूरिन से शुगर मापने वाल टेस्ट स्ट्रिप विकसित की है। उनका यह नया शोध उन लोगों के लिए वरदान साबित होगा जो रक्त परीक्षण से डरते हैं।

यह नवाचार ग्लूकोज मॉनिटरिंग को बदलने का वादा करता है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो डरते हैं।
संस्थान के केमिस्ट्री डिपार्टमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर कफील अहमद सिद्दिकी के निर्देशन में शोध कर रहे पीएचडी छात्र विभव शुक्ल सरेनी क्षेत्र के दौलतपुर गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता विनय कुमार शुक्ल हरिवंश लाल शुक्ल इंटर कॉलेज ऊँचगॉंव-उन्नाव में प्रधानाचार्य के रूप में कार्य का कार्यरत हैं। विभव ने बताया कि पारंपरिक रूप से ग्लूकोज स्तर को डायबिटीज जैसी स्थितियों की निगरानी के लिए रक्त नमूनों का उपयोग करके मापा जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में, रक्त परीक्षण से डर और गलतफहमियों के कारण बचते हैं। वे मानते हैं कि एक बूंद खून बनने में एक साल लगता है।
शुगर लेवल जांचने के लिए विभव नए शोध पर काम कर रहे थे। उनका लक्ष्य ऐसी टेस्ट स्ट्रिप्स बनाना था जो सस्ती और आसानी से उपलब्ध हो। जैसे, गर्भावस्था परीक्षण स्ट्रिप्स। उनका उद्देश्य यह है कि आम लोग अपने घर में बिना किसी इंजेक्शन या रक्त के अपने शुगर स्तर की सही जांच यूरिन के माध्यम से कर सकें। उनका कहना है कि शोध में ऐसी टेस्ट स्ट्रिप्स का विकास हुआ जो इन ग्लूकोज सांद्रताओं पर एक विशिष्ट रंग परिवर्तन दिखाती हैं। उनका कहना है कि यूरिन-आधारित टेस्ट स्ट्रिप से ग्लूकोज मॉनिटरिंग अधिक सुलभ और कम डरावनी हो जाएगी।
विभव शुक्ल ने बताया कि उनका यह शोध प्रसिद्ध जर्नल ‘मटेरियल्स टुडे केमिस्ट्री’ में प्रकाशित भी हुआ है। विभव का यह शोध ग्लूकोज डिटेक्शन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है। दुनिया भर में उच्च शुगर स्तर से प्रभावित लाखों लोगों के साथ, यह नवाचार डायबिटीज प्रबंधन और समग्र स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के लिए अपार संभावनाएं रखता है।

शोध में ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क का उपयोग
विभव शुक्ल ने अपने अनुसंधान में आयरन डोप्ड जिंक-बेस्ड मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क का उपयोग किया, जिसमें उन्होंने क्रिएटिनिन, क्रिएटिन, यूरिया, ग्लूकोज आदि सहित यूरिन के विभिन्न घटकों का परीक्षण किया। उन्होंने पाया कि आयरन डोप्ड जिंक-बेस्ड मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क जब ग्लूकोज के संपर्क में आता है, तो यूवी लाइट के तहत हरा रंग प्रदर्शित करता है, जबकि अन्य घटक कोई अलग रंग नहीं दिखाते। इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के अनुसार, 2019 में लगभग 463 मिलियन वयस्क डायबिटीज से पीड़ित थे। वर्ष 2045 तक यह संख्या 700 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है।

गांव में ही हुई विभव की प्रारंभिक शिक्षा
गंगा किनारे बसे दौलतपुर में जन्मे विभव ने प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की। सरस्वती विद्या मंदिर, उंचगाँव, उन्नाव से कक्षा 12 की पढ़ाई के बाद फिरोज गांधी कॉलेज से बी.एससी. और डीएवी कॉलेज-कानपुर से एमएससी की डिग्री प्राप्त की। 2019 में उन्होंने रसायन विज्ञान विषय में CSIR, NET/JRF परीक्षा में ऑल इंडिया रैंक 52 हासिल की और साथ ही GATE परीक्षा भी पास की। वर्तमान में, विभव शुक्ला नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रायपुर में पीएचडी कर रहे हैं।

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