पुस्तक समीक्षा: रूढ़ीवादी सोच के विरुद्ध बात करती है “कंचन सौरव मिस्सर” द्वारा लिखित किताब “और फिर वो एक दिन”
साहित्य डेस्क : किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसे समाज में पहचान दिलाता है। कभी-कभी कोई व्यक्ति अपने रूप के कारण से समाज में एक अलग पहचान बना लेता है तो कभी कोई अपने काम से समाज में जाना जाता है।
इस समाज ने हर किसी के लिए एक माप बना दिया और आज भी लोग उन्हीं माप-दंडों के साथ जीते चले जा रहे है। लेकिन समाज के इसी रूढ़ीवादी सोच के विरुद्ध बात करती है “कंचन सौरव मिस्सर” द्वारा लिखित किताब “और फिर वो एक दिन”।
किताब की कहानी “कनिका” नाम की एक ऐसी लड़की के शादी के इर्द गिर्द घुमती जो अपनी एम बी ए की पढाई पूरी कर चुकी है और अब उसके घर वाले उसकी शादी करा देना चाहते हैं।
“कनिका” भी अब शादी करना चाहती है लेकिन उसके सामने एक परेशानी यह है कि उसे वो खुद भी पसंद नहीं आती। “कनिका” को लगता है कि वो कमसूरत और मोटी है। उसका रंग भी और सभी लड़कियों की तरह नहीं है जिसके कारण से उसे पसंद नहीं किया जायेगा और उसकी शादी में बहुत परेशानी होगी।
इसी कारण से वो अपने अन्दर शारीरिक बदलाव चाहती है, अपना मोटापा कम करना चाहती है और उसके लिए ही जीम शुरू करती है।
पूरी कहानी में आपको एक ऐसी लड़की जिसकी शादी की ज़िम्मेदारी उसके घर वाले उठाते हैं: के अन्दर उठने वाले, वैसे सभी प्रश्नों को समझने का मौका मिलेगा। समाज के दोहरे चेहरे को भी बहुत अच्छे तरीके से लेखिका ने उजागर किए हैं।
किताब के अंत तक पढने पर आपको पता चलता है कि “और फिर वो एक दिन” का क्या मतलब है और उस लड़की के सपने का क्या होता है जो खुद सुन्दर न होकर भी एक सुन्दर पति के सपने देखती है।
नोट: पुस्तक समीक्षा गुलशेर अहमद (@ahmads_voice ) जी ने लिखा है। किताब अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
Amazon Link: https://amzn.to/46PgGkh
#पुस्तकसमीक्षा #BookReview #aurfirwoekdin