कबीरदान बाबा का 2 दिवसीय ऐतिहासिक मेला सम्पन्न

  • मेले में अद्भुत झांकियां देख मंत्रमुग्ध हुए दर्शक

शिवगढ़ ,रायबरेली। क्षेत्र के ग्राम पंचायत बैंती स्थित प्राचीन कालीन कबिरादान बाबा के मन्दिर में 2 दिवसीय ऐतिहासिक मेला एवं विशाल भण्डारा सम्पन्न हुआ। गौरतलब हो कि गत वर्षो की भांति कबीरादान बाबा के मन्दिर में मेला कमेटी के अध्यक्ष अरुण कुमार मिश्रा, कोषाध्यक्ष कमल किशोर रावत,जयशंकर मिश्रा के नेतृत्व में मेला कमेटी के सदस्यों एवं ग्रामीणों द्वारा 2 दिवसीय ऐतिहासिक मेले का आयोजन किया गया। मेले में विशाल भण्डारे एवं झांकी कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया। जिसमें पूण्य की लालसा से पहुंचे हजारों श्रद्धालुओं ने मन्दिर में माथा टेक कर प्रसाद ग्रहण कर मनोकामनाएं मांगी। अद्भुत झांकी कार्यक्रम में कृष्ण झांकी ग्रुप भवानीगढ़ के मशहूर कलाकार कृष्णा प्रेमी, विश्वा निर्मोही,गोकरन ने गणेश वंदना, श्रीकृष्ण रासलीला, दही मटकी, मथुरा-वृंदावन की फूलों की होली सहित झांकियों की अनुपम प्रस्तुति देकर सबका मन मोह लिया। झांकियों की अद्भुत प्रस्तुति देख दर्शक भक्ति रस में सराबोर होकर झूमने, नाचने, गाने लगे, दर्शकों द्वारा तालियों की गड़गड़ाहट से कलाकारों का जमकर उत्साह वर्धन किया गया। मेला कमेटी ने झांकी कलाकारों की सरहना करते हुए उपहार देकर सम्मानित किया गया। इस मौके पर शिवराज रावत, राम शंकर, रामविलास,रामधन,संजय रावत, लक्ष्मी प्रसाद, सुन्दरलाल यादव, शिवकुमार यादव, सर्वेश कुमार, बुधई, दुर्गेश कुमार, शिवम गुप्ता सहित भारी संख्या में लोग मौजूद रहे।

कबिरादान बाबा के मन्दिर से निकले असंख्य भंवरों ने छुड़ा दिए थे राजा के छक्के

शीतलाष्टमी के दिन लगता बाबा का ऐतिहासिक मेला

रायबरेली जिले के लखनऊ,उन्नाव, रायबरेली के बॉर्डर पर स्थित भवरेश्वर मन्दिर से निकने वाले भंवरों की कहानी तो आपने सुनी होगी। किंतु आज हम आपको ऐसे ही एक दूसरे मन्दिर से जुड़ी कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं जिसके विषय में आपने कभी नहीं सुना होगा। हम बात कर रहे हैं रायबरेली के शिवगढ़ क्षेत्र में स्थित प्राचीन कालीन कबीरादान मन्दिर की। ग्राम पंचायत बैंती के कबीरादान गांव में स्थित प्राचीन कालीन कबीरादान बाबा का मन्दिर जिसके प्रांगण में प्रत्येक वर्ष होली के आठव शीतलाष्टमी को बाबा का ऐतिहासिक मेला लगता है। बताते हैं कि राजतंत्र में धवलपुर रियासत में लगने वाले बैंती गांव में कबीरादान बाबा का मन्दिर कभी एक टीला हुआ करता था। एक बार दूसरी रियासत के राजा ने होली के आठव के दिन उस समय बैंती गांव पर आक्रमण कर दिया जब सभी ग्रामीण आठव को होलिकोत्सव मना रहे थे। आक्रमणकारी राजा की विशाल सेना के आगे बैंती गांव में मौजूद धवलपुर स्टेट की मुट्ठी भर सेना पर्याप्त न थी। किंतु उसी समय टीले से निकले असंख्य भवरें आक्रमणकारी राजा की सेना पर टूट पड़े। टीले से निकले असंख्य भवरों ने राजा की सेना के छक्के छुड़ा दिए। भंवरों के आक्रमण से आक्रमणकारी राजा की विशाल सेना भाग खड़ी हुई, अन्तत: बैंती गांव की विजय हुई।
जिसके बाद ग्रामीणों ने बड़ी ही सिद्दत से टीले को मन्दिर का आकार देकर मन्दिर को कबीरादान बाबा नाम दे दिया और पूजा अर्चना शुरु कर दी। और प्रत्येक वर्ष होली के आठव के दिन मन्दिर में मेला लगवाना शुरु कर दिया। यहीं कारण है कि करीब 500 वर्षों से होली के आठव के दिन ग्रामीणों के सामूहिक सहयोग से मन्दिर में ऐतिहासिक मेले एवं विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता चला आ रहा हैं। ग्रामीणों की मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से बाबा के दर्शन के लिए आता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। कबीरादान बाबा के मन्दिर के प्रति ग्रामीणों की अटूट आस्था है आज भी ग्रामीण कोई भी शुभकार्य करने से पहले कबीरादान बाबा के मन्दिर में माथा टेककर कार्य सिद्धि के लिए बाबा का आशीर्वाद लेते हैं।

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