तुलसी और शालिगराम विवाह का महत्व हिंदू धर्म में तुलसी का पौधा और तुलसी

हिंदू धर्म में तुलसी का पेड़ तुलसी का पौधा बहुत ही महत्वपूर्ण है ।

कहा जाता है अगर किसी पूजा में या प्रसाद में तुलसी की पत्ती ना डाली जाए तो पूजा और प्रसाद अधूरा माना जाता है इसी से जुड़ी एक कहानी हम आपको बता रहे हैं यह एक पौराणिक कथा है कहा जाता है कि यह एक प्रसिद्ध कहानियां धार्मिक मान्यता के अनुसार देव तनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं इसी दिन सभी शुभ कार्यों की शुरुआत होती है देवउठनी एकादशी से जुड़ी कई परंपराएं हैं एक परंपरा है तुलसी और शालिग्राम के विवाह की परंपरा तुलसी और शालिग्राम का विवाह क्यों होता है शिव महापुराण एक कथा है कहा जाता है कि शिव महापुराण के अनुसार ब्रह्म नामक एक दैत्य था जिसके यहां काफी दिनों तक कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई कोई संतान की उत्पत्ति नहीं हुई तब वह दुखी होकर गुरु शुक्राचार्य के पास गया और उसने शुक्राचार्य को अपना गुरु बनाया और उनसे श्री कृष्ण मंत्र ग्रहण किया फिर उसने घोर तप करके पुष्कर में जाकर घोर तप किया उसके तपस्या से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए उन्होंने ब्रह्म को पुत्र प्राप्त होने का वरदान दिया फिर उसके घर में एक पुत्र प्राप्त हो वास्तव में वह श्री कृष्ण के वासियों का अग्रणी सुदामा नाम था जिसे राधा जी ने श्राप दिया था दैत्ययोनि में जन्म लेने का श्राप दिया था जिसके कारण उसका नाम शंखचूड़ रखा गया बड़ा हो गया तो उसने पुष्कर के वन में जाकर    ब्रह्मा जी  की कठिन तपस्या कि उसके द्वारा की गई तपस्या के कारण ब्रह्मा जी अत्यंत प्रसन्न हो गए और शंखचूड़ के सम्मुख प्रगट हो गए तब शंखचूर्ण ने ब्रह्मा से वरदान मांगा कि मैं देवताओं के अजय हो जाऊं तब ब्रह्माजी ने उसे वरदान दे दिया और कहा कि पत्री बन जाओ वहां धर्म दोष की पुत्री तुलसी तपस्या कर रही है तुम जाओ और उसके साथ विवाह कर लो तब शंख चूर्ण पत्री वन गया और उसने तपस्या कर रहे तुलसी को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुआऔर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उन्होंने उन दोनों का गंधर्व विवाह करा दिया इस तरह से विवाह करके अपना जीवन निर्वाह करने लगे और बहुत ही खुश रहने लगे।

यहां तक कि उसे देवताओं का भी राजा बन गयादेवता भी उसे नहीं हरा सकता उसने देवताओं गंधर्व मनुष्य नागो दान वो राक्षसों तथा त्रिलोकी  के सभी प्राणियों पर विजय प्राप्त कर ली  उसके राज्य में सभी खुश थे और वह भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहता था जब देवताओं के हाथ से स्वर्गनिकल गया तब वह परेशान होकर ब्रह्माजी के पास गए तब भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा कि अब शंखचूड़ की मृत्यु निश्चित है और उसकी मृत्यु भोलेनाथ के त्रिशूल से निर्धारित है देवता की बात को सुनकर भोलेनाथ चित्र रत्न को दूत बनाकर शंख चूर्णके पास भेजा चित्र रत्नने बताया कि वह देवताओं को उनका राज्य वापस कर दे तब शंखचूर्ण  ने कहा कि मैं भोलेनाथ सेजब तक युद्ध नहीं करूंगा तब तक मैं देवताओं उनका का राज्य वापस नहीं दूंगा शिव को यह बात पता चली तो शंख चूर्णके पास युद्ध करने के लिए अपनी सेना तैयार की और शंख चूर्ण ने भी अपनी सेना लेकर युद्धों में पहुंच गए देखते ही देखते देवता और दानवों में घमासान युद्धहोने लगा वरदान के कारण देवता उसको हरा नहीं पा रहे थे तब भगवान शिव ने जैसे ही अपना त्रिशूल शंख चूर्णको मारने के लिए उठाया तभी एक आकाशवाणी हुई कि भोलेनाथ तुम इसे नहीं मार सकते जब तक किसके हाथ में भगवान विष्णु का कवच है और इसकी पत्नी का अस्तित्व अखंडित है तब तक तय है इसका वध करना असंभव है ।

आकाशवाणी सुनकर भगवान विष्णु ने एक ब्राह्मण का रूप धारण करके शंख चूर्ण के पास गया और उन्होंने कवच दान में मांग लिया तब शंख चूर्ण नेबिना सोचे समझे वह कवच दान में दे दिया और कवच पाने केबाद मैं भगवान विष्णुविष्णु तुलसी के पास शंखचूड़ का रूप धरकर पहुंच गए और महलके पास पहुंचकर अपनी विजई होने की सूचना बताएं और श्रीहरि को अपने पति के रुप में पाकर बहुत खुश है और इधर भगवान की बहुत तरह से सेवा की भगवान शिव ने शंखचूड़ की पत्नी का सतीत्व भंग होते हैं उन्होंने अपने त्रिशूल से शंखचूड़ का वध कर दिया इधर जब तुलसी को इस बात का ज्ञात हो कि हमारे पति नहीं रहे और भगवान विष्णु ने हमारे साथ मूल रूप से छल किया गया तो दुख के मारे विलाप करने लगी और उसने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि हे भगवान हे विष्णु आप धरती पर पाषाण रूप रहेंगे मेरे स्वामी  को मार डाला था आप अवश्य ही पाषाण हृदय वाले हैं आज सेआप पृथ्वी पर रहेंगे तब भगवान ने कहा देवी तुम मेरे लिए बहुत ही तपस्या कर चुकी हो भारतवर्ष में रहकर बहुत ही तपस्या कर चुकी हो तुम् अपनी देह का त्याग कर  के रूप धारण कर तुम मेरे साथ आनंद से रहो तुम्हारा यह शरीर बदलकर कंटकी नामक नदी के रूप में प्रसिद्ध होगा तुम पुष्पों में श्रेष्ठ पौधों में श्रेष्ठ तुलसी का पौधा बन जाओगी और सदा मेरे साथ रहोगी ।

तुम्हारे इस श्राप को सत्य करने के लिए मैं पाषाण रूप मतलब शालिग्राम बन कर रहूंगा नदी के तट पर मेरा वास रहेगा नदी में रहने वाले करोड़ों कीड़े अपने दांतों से काट काट कर उस पर मेरा एक चक्र का चिन्ह बनाएंगे इसलिए तुलसी और धर्म प्रेमी शालिग्राम का विवाह करके पुण्य अर्जन करेंगे नेपाल स्थित कंठ की नदी में ही मिलते हैं शालिग्राम के पत्थर तुलसी का विवाह संपन्न कर मांगलिक कार्य शुभारंभ किया जाता है कहा जाता है कि तुलसी शालिग्राम का विवाह कराने से अतुल्य फल मिलता है ।

तुलसी क्यों नहीं चढ़ाई जाती है भगवान गणेश का गणेश भगवान को क्यों नहीं चढ़ाई जाती है तुलसी पौराणिक कथा एक बार गणेश जी गंगा के तट पर तपस्या कर रहे थे दूसरी ओर से तुलसी अपने  विवाह की इच्छा लेकर  तीर्थ यात्रा पर निकले तब रास्ते में उन्होंने तपस्या में लीन गणेश जी को देखा उन्होंने चंदन का लेप पूरे शरीर में लगाए हुए कमर में रेशमी पीतांबर पहने गले में और 7 रनों का हार धारण किए हुए रत्न सिंहासन पर विराजमान हैं उन्हें देखकर तुलसी उन पर मोहित हो गए और उनके समक्ष अपने विवाह का प्रस्ताव रखा जिससे गणेश भगवान की का ध्यान तपस्या भंग हो गई गणेश जी को यह बात अच्छी नहीं लगी और तुलसी द्वारा यह कृत्य को अशुभ बताते हैं और अपने आप को ब्रह्मचारी बताते हैं कहा कि हमारा विवाह संभव नहीं है यह सुनकर तुलसी को बहुत क्रोध है और क्रोध के बारे तुलसी ने गणेश को शाप दे दिया कि तुम्हारा विवाह तुम्हारी इच्छा से नहीं होगा गणेश जी ने तुलसी से अपने आपको ब्रह्मचारी बताया था इसलिए तुलसी ने श्राप दिया कि तुम्हारा विवाह एक नहीं बल्कि 2 स्त्रियों के साथ होगा यह सुनकर गणेश को क्रोध आ गया और उन्होंने तुलसी को श्राप दिया कि तुम्हारा भी विवाह एक असुर के साथ होगा एक दैत्य के साथ अपना विवाह सुनकर तुलसी इस बात को सहन न कर पाए और उन्होंने उसने अपनी गलती समझ आ गई और उन्होंने गणेश भगवान से अपने गलती की क्षमा मांगी को शांत होने पर गणेश कहा कि तुम्हारा विवाह शंख चूर्ण के साथ होगा और पूर्ण होने पर तुम भगवान श्री कृष्ण को अत्यंत प्रिय मानी जाओगी और कलयुग में तुम्हारा महत्व कितना अधिक होगा कि तुम लोगों को मोच पद दिला होगी परंतु मेरी पूजा में तुम्हें अर्पित करना अशुभ माना जाएगा इसलिए गणेश की पूजा में तुलसी की पत्ती नहीं चढ़ाई जाती है

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