हाई कोर्ट का बड़ा आदेश, महिला शिक्षित है तो काम करने के लिए नहीं है बाध्य

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि यदि महिला शिक्षित है तो उसे बाहर काम पर जाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। अपने फैसले में मुंबई उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि एक महिला स्नातक है, इसका मतलब यह नहीं है कि उसे काम करना है और वह घर पर नहीं रह सकती है।

 

न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने कहा कि हमारे समाज ने अभी तक यह स्वीकार नहीं किया है कि घर की महिला को अनिवार्य रूप से आर्थिक योगदान देना चाहिए। काम करना या नहीं करना महिला की पसंद का विषय है। महिला को सिर्फ इसलिए बाहर काम पर जाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है कि व स्नातक है, इसलिए घर पर नहीं बैठ सकती है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने इस मामले में सवाल किया कि आज मैं जज हूं, कल मान लीजिए किसी कारण से मैं घर बैठ जाऊं तो क्या आप कहेंगे’ मैं जज बनने के काबिल हूं इसीलिए मुझे घर पर नहीं बैठना चाहिए’।

 

ये है पूरा मामला

 

दरअसल बॉम्बे हाई कोर्ट में पति की ओर से दायर एक पुनरीक्षण आवेदन पर सुनवाई हो रही थी, जिसमें पुणे के एक फैमिली कोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पति को अपनी पत्नी को भरण-पोषण भत्ता का भुगतान करने का आदेश दिया गया था, जबकि उसकी पत्नी एक स्थिर आय प्राप्त कर रही थी।

 

याचिका पर सुनवाई के दौरान पति के वकील अभिजीत सरवटे ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने पत्नी के नौकरी करने के बावजूद पति को भरण-पोषण देने का गलत आदेश दे दिया है, लेकिन पति के वकील की दलीलों से न्यायमूर्ति भारती डांगरे संतुष्ट नहीं थी और उन्होंने कहा कि शिक्षित महिलाओं की मर्जी पर निर्भर करता है कि वह काम करें या नहीं करें। इस केस में पति-पत्नी की शादी 2010 में हुई थी। 2013 में पत्नी अपनी बेटी के साथ अलग रहने लगी। अप्रैल 2013 में महिला ने अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ घरेलू हिंसा का केस किया था और पारिवारिक भरण पोषण की मांग की थी।

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