शिक्षा का बाजारीकरण, जो समाज के लिए अभिशाप
रिर्पोट मुन्ना सिंह
- शिक्षा का बाजारीकरण, जो समाज के लिए अभिशाप बन चुका है,शिक्षा के मंदिर को बाज़ार मत बनाओ..स्कूल ‘लूट’ रहे हैं..अभिभावक ‘लुट’ रहे हैं
बाराबंकी : आज शिक्षा सबसे बड़ा व्यवसाय बन गई है। सरकार बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं दे पा रही है, इसलिए मजबूर होकर अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूल में भेजने के लिए मजबूर हैं. वहीं प्राइवेट स्कूलों में लूट मची हुई है. बढ़ती महंगाई में अभिभावक अब स्कूलों की मनमानी से परेशान आ चुके हैं।
प्रदेश भर के स्कूलों में 10 से 15 फीसदी तक फीस बढ़ा दी गई है जिससे पैरेंट्स परेशान हो रहे हैं।
निजी स्कूल अमीर परिवारों के बच्चों की शिक्षा का केन्द्र बन गए हैं जबकि सरकारी स्कूल गरीबों की शिक्षा का केन्द्र बन गए हैं।इसका सबसे बड़ा कारण है शिक्षा का बाजारीकरण, जो समाज के लिए अभिशाप बन चुका है। किसी शॉपिंग मॉल की तरह बने निजी स्कूल मोटी फीस वसूल कर खर्चीले उपभोक्ता तैयार करने का काम कर रहे हैं। दरअसल शिक्षा के बाजारीकरण ने शिक्षा की आत्मा को मार कर रख दिया है।
प्री प्राइमरी पुस्तक एक दुकान से, हायर सेकंडरी, हाईस्कूल की किताब दूसरे बुक डिपो से लेनी पड़ रही है। नर्सरी-KG-1 तक कि किताबें 4 से 5 हजार जबकि उससे ऊपर की कक्षा कि किताबें 8 से 10 हजार तक में आ रही है। ऐसे में पैरेंट्स के सामने बढ़ी हुई फीस के साथ महंगी किताबों का बोझ..डबल झटके से कम नहीं है।बच्चों के स्कूल मैनेजमेंट द्वारा किताबों को खरीदने के विशेष दुकान पर ही खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है। या यूं कहें कि कॉपी और दूसरी एसेसरीज के लिए स्कूलों की दुकान तय हैं। लिस्ट पकड़िए और घूमिए, पर किताब वहीं मिलेंगी, जहां स्कूल प्रबंधन ने तय किया हुआ है।
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ तक निजी स्कूलों की मनमानी और फीस बढ़ोतरी की बात पहुंचा दी गई है। जिसे देखते हुए जल्द एक्शन की बात कही जा रही है।