सीबीआई ने बड़े रैकेट का किया भंड़ाफोड़, गवर्नर पद दिलाने के लिए भी 100 करोड़ रुपये का रेट डिमांड

100 करोड़ रुपये में राज्यसभा (Rajya Sabha seat) की एक सीट बेची जा रही है। जी हां, यह सोलह आने सच है। सीबीआई (CBI) ने 100 करोड़ रुपये में राज्यसभा की एक सीट का वादा करने वाले रैकेट का भंड़ाफोड़ किया है। यही नहीं यह रैकेट राज्यपाल तक बनवाने का ठेका ले रहा था। गवर्नर पद दिलाने के लिए भी 100 करोड़ रुपये का रेट डिमांड किया जा रहा था। सीबीआई ने करीब आधा दर्जन लोगों को इसके लिए अरेस्ट किया है।

सीबीआई, पिछले कुछ हफ्तों से एक फोन इंटरसेप्ट के माध्यम से कॉल सुन रही थी। कुछ लोग रैकेट के सदस्यों से लगातार राज्यसभा व गवर्नरशिप के लिए बात कर रहे थे और उनकी डिमांड आदि की जानकारियां ले रहे थे। रैकेट के सदस्य एक सीट के लिए 100 करोड़ रुपये की डिमांड कर रहे थे। मामले में रुपयों के लेन देन के पहले सीबीआई ने आधा दर्जन के करीब लोगों को धर दबोचा।

इन लोगों को सीबीआई ने किया आरोपित

सीबीआई ने चार से अधिक लोगों को आरोपित किया है। इनमें से कुछ की पहचान कर ली गई है। पकड़े गए लोगों में महाराष्ट्र का कर्मलाकर प्रेमकुमार बंदगर, कर्नाटक का रहने वाला रवींद्र विट्ठल नाइक और दिल्ली निवासी महेंद्र पाल अरोड़ा और अभिषेक बूरा शामिल है।

रैकेट लोगों को इस तरह से फंसाता था

सूत्रों ने कहा कि आरोपियों ने लोगों को झूठा आश्वासन देकर धोखा देने के लिए एक विस्तृत रैकेट चलाया कि वे राज्यसभा, गवर्नरशिप या सरकारी संगठनों, मंत्रालयों और विभागों के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति की व्यवस्था करेंगे। जांच से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि अभिषेक बूरा ने अपने कनेक्शन का इस्तेमाल करने और उच्च स्तरीय सरकारी अधिकारियों तक पहुंचने के लिए कर्मलाकर प्रेमकुमार बंदगर के साथ साजिश रची।

इस तरह फंसाते थे लोगों को अपनी जाल में

सीबीआई ने अपने एफआईआर में बताया है कि कैसे रैकेट ने लोगों को ₹ 100 करोड़ तक धोखा देने के लिए राज्यसभा सीट का वादा किया था। कर्मलाकर प्रेम कुमार बंदगर खुद को सीबीआई का सीनियर अफसर बताता था। मोहम्मद एजाज खान सहित अन्य आरोपियों के साथ मिलकर पूरा प्लान बनाया, कहा कि वे किसी भी तरह का काम करें, जिसे वह एक बड़ी राशि के बदले में तय कर सकें। सीबीआई के अनुसार कर्मलाकर प्रेमकुमार बंदगर, महेंद्र पाल अरोड़ा, मोहम्मद अलाज खान और रवींद्र विट्ठल नाइक अक्सर वरिष्ठ नौकरशाहों और राजनीतिक पदाधिकारियों का नाम किसी काम के लिए सीधे या अभिषेक बूरा जैसे बिचौलिए के जरिए आने वाले मुवक्किल को प्रभावित करते थे।

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