साधु बना अरुण निकला नफीस, ठगी का बड़ा खेल आया सामने
मुन्ना सिंह /अमेठी : पुत्र की शक्ल धरे जोगी को 22 वर्ष बाद पिता की बूढ़ी आंखों ने देखा तो ममत्व फफक पड़ा। पुत्र को वापस पाने के लिए परिवार तड़प उठा। पहले बेटे ने ना-नूकूर की और बाद में घर वापस लौटने के लिए फोन करने लगा। यहां तक तो सबकुछ ठीक ठाक था। परिवार के सामने बेटे ने घर वापस लौटने के एवज में मठ को 10 लाख से अधिक की रकम चुकाने की शर्त बताई और पिता की मठ के गुरु से बात कराई। दोनों के बीच तीन लाख 60 हजार में साधू का भेष छोड़ पुत्र की घर वापसी की सहमति बनी।
11 वर्ष की आयु में गायब हुए अरुण सिंह उर्फ पिन्टू के गृहस्थ बनने की संभावना से हर कोई खुश था। पुत्र को वापस पाने के लिए जायस के खरौली गांव निवासी मजबूर पिता रतीपाल ने अपनी 14 बिस्वा भूमि का सौदा अनिल कुमार वर्मा उर्फ गोली से 11 लाख 20 हजार में चुपचाप कर लिया। तभी साधू के भेष में अरुण के रूप में घर आए युवक को गोंडा के टिकरिया गांव का नफीस होने की बात सामने आ गई।
पत्रकारों की टीम ने गहनता से पड़ताल की तो टिकरिया गांव के कुछ परिवार इस तरह की ठगी के लिए पहले से ही बदनाम है और साधु बनकर ठगी करने के मामलों में जेल तक जा चुके हैं। उन्हीं में से एक नफीस का भी परिवार है। नफीस गांव निवासी मुकेश (मुस्लिम) का दामाद है। उसकी पत्नी का नाम पूनम है। इसका एक बेटा अयान है।
नफीस चार भाई हैं। उन्हीं में एक का नाम राशिद है। राशिद 29 जुलाई 2021 में जोगी बनकर मिर्जापुर के चुनार थाना क्षेत्र के गांव सहसपुरा परसोधा पहुंचा। गांव निवासी बुधिराम विश्वकर्मा का पुत्र रवि उर्फ अन्नू 14 वर्ष पहले गायब हुआ था। अन्नू बने राशिद ने मां से बोला, तुम मुझे भिक्षा दो, मेरा जोग सफल हो जाए। परिवार ने राशिद को अन्नू समझ घर में रख लिया। कुछ दिन बाद लाखों लेकर वह गायब हो गया। बाद में पुलिस ने उसे पकड़ा तो सच सामने आया।
वाराणसी के चोलापुर थाना क्षेत्र के हाजीपुर गांव निवासी कल्लू राजभर के घर 14 जुलाई 2021 को 15 वर्ष पहले गायब पुत्र सुनील साधु के भेष में घर पहुंचा और कल्लू की पत्नी से जोग सफल बनाने के लिए मां कहकर भिक्षा मांगने लगा। बाद में सुनील बने साधु की पहचान गोंडा के टिकरिया गांव के मुकेश के भाई के रूप में हुई। जो नफीस का चचेरा ससुर लगता है।
पिता के साथ दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रहा अरुण 2002 में गायब हो गया था। 22 वर्ष बाद अरुण की शक्ल में साधु के भेष में सारंगी बजाकर एक युवक जायस के खरौली गांव भिक्षा मांग रहा था। परिवारजन युवक को पहचान लिया। भतीजा की सूचना पर दिल्ली से युवक के पिता व अन्य परिवारजन 27 जनवरी को गांव पहुंच 22 वर्ष पहले गायब हुए बेटे से मुलाकात की। गायब बेटे को पाकर सभी बिलख पड़े। बेटे को दोबारा धाम न जाने का अनुरोध करने लगे। बातचीत धीरे-धीरे सौदेबाजी में बदल गई।
रतीपाल अपनी बहन नीलम के साथ गांव पहुंच साधु का भेष बनाए युवक से मिले। उसने बताया कि वह झारखंड के पारसनाथ मठ में शिक्षा ली है। वहां से गुरु का आदेश था कि अयोध्या दर्शन के बाद गांव जाकर परिवारजनों से भिक्षा मांग कर वापस आना तभी साधु की बनने की दीक्षा पूरी होगी। जबकि झारखंड में इस नाम का कोई मठ नहीं है। जैन मंदिर जरूर है।
परिवारजन व ग्रामीण भिक्षा में 13 क्विंटल अनाज साधु को देकर एक फरवरी को विदा किया। साधु बने बेटे के संपर्क में रहने के लिए पिता ने मोबाइल खरीद कर दिया। परिवारजन की माने तो युवक के साथ बनी गांव के फौजदार सिंह का भतीजा भी था। पिकअप से पूरा सामान लादकर दोनों अयोध्या ले गए थे। शुक्रवार को पिकअप चालक के बताए पते पर पिता रतीपाल के साथ कुछ लोग पहुंचे तो वहां कोई नहीं मिला।
जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य के अनुसार भारतीय सनातन परंपरा में एक आश्रम से दूसरे आश्रम में जाने की व्यवस्था और उसके मूल्य- मानक तो हैं, किंतु संन्यास से गृहस्थ आश्रम में लौटने का सवाल हो या किसी भी आश्रम से किसी भी आश्रम में लौटने का। यह व्यक्ति का अपना निर्णय है, इसके लिए शास्त्र कोई भी शर्त नहीं तय करता। यदि ऐसा कहा जा रहा है, तो वह न्यायसंगत और शास्त्रीय नहीं है।
पुलिस अधीक्षक डा. इलामारन जी. ने कहाकि इस मामले में एसएचओ जायस को सतर्क रहने की हिदायत दी गई है। पुलिस लगातार परिवार के संपर्क में है। किसी भी तरह की ठगी नहीं होने दी जाएगी। पूरे मामले पर पुलिस की नजर है।