बढ़ती महंगाई के बीच सस्ता हुआ खाद्य तेल, कीमतों में आई भारी गिरावट

भारत की खाद्य तेल की मांग का 60% आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा युद्धरत यूक्रेन और रूस से आता है। युद्ध के कारण आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होने के कारण, देश में खाद्य तेल की कीमतें तेजी से बढ़ गईं थी। लेकिन विदेशी बाजारों में खाद्य तेलों कीमतों में तेजी के बावजूद इंडोनेशिया द्वारा निर्यात खोलने के कारण देशभर के तेल-तिलहन बाजारों में बीते सप्ताह अधिकांश तेल-तिलहनों की कीमतों में गिरावट का रुख देखने को मिला। सोयाबीन के डीऑयल्ड केक (डीओसी) की मांग बढ़ने से सोयाबीन तिलहन के भाव में सुधार आया, जबकि गिरावट के आम रुख के अनुरूप सोयाबीन तेलों की कीमतें गिरावट दर्शाती बंद हुईं।

बाजार सूत्रों ने कहा कि इंडोनेशिया द्वारा निर्यात खोले जाने के बाद विदेशों में सूरजमुखी को छोड़कर सोयाबीन, पामोलीन तेलों के दाम में लगभग 100 डॉलर की कमी हुई है। ऊंचे दाम पर देश में आयात घटा है और स्थानीय मांग की पूर्ति देशी तेल (सोयाबीन, मूंगफली, बिनौला और सरसों) से की जा रही है। इसमें सबसे अधिक दबाव सरसों पर है जो आयातित तेलों से कहीं सस्ता बैठता है। आयातित तेलों की मांग भी नहीं के बराबर है जिससे पिछले साल के मुकाबले इस बार अप्रैल में आयात लगभग 13 प्रतिशत घटा है।

सूत्रों ने बताया कि हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में सरसों का भारी मात्रा में रिफाइंड बनाया जा रहा है। लेकिन आयातित तेलों की कमी को इन तेलों से पूरा करने की भी एक सीमा है। इसके कारण आने वाले दिनों में सरसों जैसे तिलहन की किल्लत पैदा हो सकती है। आने वाले दिनों में खाद्य तेल आपूर्ति की दिक्कतों से बचने के लिए सरकारी खरीद एजेंसियों को सरसों जैसे तिलहनों का स्टॉक बना लेना चाहिये और सरकार को खुदरा कारोबार में जहां धांधलेबाजी हो उसे रोकने का इंतजाम करना चाहिये।

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