ट्रेनों से जनरेटर हटाकर बचा लिए दो सौ करोड़

  • उत्तर रेलवे की 85 प्रतिशत ट्रेनों में एचओजी तकनीक
  • इससे एक साल में 2.36 करोड़ लीटर डीजल की बचत 

नई दिल्ली : उत्तर रेलवे ट्रेनों में डीजल के उपयोग को कम कर रहा है। ट्रेन के सभी कोच में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए डीजल वाले जनरेटर की जगह हेड आन जनरेशन (एचओजी) तकनीक के प्रयोग पर बल दिया जा रहा है। लगभग 85 प्रतिशत ट्रेनों में इस तकनीक का प्रयोग शुरू हो गया है। इससे पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलने के साथ ही डीजल पर होने खर्च से भी राहत मिल रही है।

भारतीय रेलवे को वर्ष 2030 तक कार्बन मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इसे पूरा करने के लिए उत्तर रेलवे तेजी से काम कर रहा है। इसी कड़ी में लंबी दूरी के ट्रेनों को एचओजी तकनीक में बदला जा रहा है। उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक आशुतोष गंगल का कहना है कि राजधानी व शताब्दी एक्सप्रेस सहित अन्य ट्रेनों में इस तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। इससे कोच में रोशनी, पंखों व एयर कंडीशनर के लिए जनरेटर पर निर्भरता खत्म हो रही है। इस तकनीक के इस्तेमाल से उत्तर रेलवे में 2.36 करोड़ लीटर डीजल और 203 करोड़ रुपये की बचत हुई।

दिल्ली मंडल ने 71 रेक को किया परिवर्तितः-

दिल्ली मंडल में लिंके हाफमैन बुश (एलएचबी) कोच वाली 56 ट्रेनों के 71 रेक को एचओजी तकनीक में परिवर्तित किया गया है। इससे प्रति वर्ष डीजल पर होने वाले 107.44 करोड़ रुपये की बचत हो रही है।

क्या है एचओजी तकनीकः-

ट्रेन में लगे जनरेटर यान से सभी कोच में बिजली आपूर्ति की जाती है। एचओजी तकनीक से कोच में बिजली आपूर्ति सीधे इंजन से होती है। ओएचई (ओवर हेड इलेक्ट्रिक वायर) से इंजन में आपूर्ति होने वाली बिजली से कोच की आवश्यकता पूरी होती है। इससे जनरेटर की जरूरत नहीं रहती है। जनरेटर यान की जगह कोच लगने से ज्यादा यात्रियों को कंफर्म टिकट मिलता है। इससे रेलवे की कमाई भी बढ़ रही है।

पर्यावरण संरक्षण में मददः-

डीजल के इस्तेमाल नहीं होने से पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिल रही है। कार्बन उत्सर्जन में कमी पर्यावरण के लिए अच्छा है। जनरेटर का शोर नहीं होने से ध्वनि प्रदूषण में भी कम होता है।

 

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