राष्ट्रीय किसान दिवस पर विशेष : आजादी के 75 वर्ष बाद भी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा किसान
- आज भी किसान ऋण में जन्म लेता है और ऋण में मर जाता है…
- छुट्टा मवेशियों की आई बाढ़ से किसान परेशान : केतार पासी
शिवगढ़,रायबरेली। भारत एक कृषि प्रधान देश है, यहां की 70 प्रतिशत आबादी आज भी कृषि पर निर्भर है। किन्तु दुर्भाग्य है कि आज भी किसान ऋण में जन्म लेता है और ऋण में मर जाता है। किसानों की दुर्दशा पर विशेष रूप से किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। जिससे किसानों की हालत आज भी जस की तस बनी हुई है। देश की आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी हर जगह सिंचाई के संसाधन नहीं है।
आज भी 40 प्रतिशत किसान बारिश के पानी अथवा दूसरों पर आश्रित हैं। किसानों की बदहाली के मुख्य कारणों में क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, जल प्रबन्धन का अभाव, बाढ़ का कहर, छुट्टा मवेशियों की बाढ़, खाद एवं उर्वरकों में मिलावट खोरी, खाद एवं बीजों के दामों में भी बढ़ोतरी, कमजोर कृषि तंत्र, सरकार द्वारा किसानों की उपेक्षा, कृषि विभाग के कर्मचारियों की उदासीनता, जागरूकता का अभाव आदि कारण है।
क्या कहते हैं कृषक….
गूढ़ा गांव के रहने वाले कृषक रामहेत रावत का कहना है कि क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ठीक नही, नालो, ड्रेनों की सफाई के नाम पर सिर्फ खिलवाड़ किया जाता है। जिसके चलते जल निकास ना होने से हर बार बारिश में हजारों हेक्टेयर फसल जलमग्न होकर चौपट हो जाती हैं, किसानों को मजबूर होकर अपनी जीविका चलाने के लिए शहरों के लिए पलायन करना पड़ता है।
दामोदर खेड़ा के रहने वाले केतार पासी का कहना है कि छुट्टा मवेशियों की बाढ़ आ गई है, जिनसे फसल बचाना मुश्किल हो रहा है। सरकार किसानों को छुट्टा मवेशियों से निजात दिलाने में विफल है।
मसापुर के रहने वाले जीवन पाठक का कहना है कि सरकार किसानों की आय दोगुनी करने का दावा करती है किंतु बुवाई के समय समितियों से खाद नदारद रहती हैं और बाहर दुकानों में कालाबाजारी रहती है। नहरो की सफाई के नाम पर हर साल खेल किया जाता है जिससे खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाता।
कुम्हरावां ग्राम पंचायत के रहने वाले कौशल किशोर का कहना है कि किसानों को फसल उत्पादन का न्यूनतम मूल्य मिल सके जिसको लेकर धान खरीद केंद्र खोले गए हैं किंतु धान खरीद केंद्रों पर सिर्फ बड़े किसानों और व्यापारियों की तौल हो रही है, छोटे किसानों को लंबी-लंबी तारीके दी जाती हैं। केंद्र प्रभारियों द्वारा तौल के नाम पर मोटा कमीशन मांगा जाता है।
भवानीगढ़ चौराहे के रहने वाले सुनील शुक्ला का कहना है कि जब छुट्टा मवेशियों से फसल ही नहीं बचेगी तो किसानों की आय कैसे दूनी होगी। किसान महंगे बीज, महंगी खाद, दवा लेकर बुवाई करता है और छुट्टा मावेशी पल मौका पाते ही फसल चौपट कर डालते हैं। पराली जलाने पर किसानों से जुर्माना वसूला जाता है और उद्योगों की चिमनियां जहर उगल रही है जिन्हें सरकार बढ़ावा दे रही है।

दबाव और प्रभाव में खब़र न दबेगी,न रुकेगी










