सन्तों की परंपरा रही है, किसी न किसी को रहते समय ही तैयार कर देते हैं,नाम, वक्त गुरु के अधीन हुआ करता है -सन्त बाबा उमाकान्त महाराज

ओम प्रकाश श्रीवास्तव /बाराबंकी।(उ. प्र.)निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, सृष्टि के सभी गोपनीय भेद और रहस्य जानने वाले, अपने सामने अपने जानशीन को तैयार करने वाले, जिनके अधीन वक़्त का जगाया हुआ नाम है, ऐसे इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज जी ने 4 मार्च 2019 प्रातः लखनऊ (उ.प्र.) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि पेड़ों में एक ही तत्व होता है- पृथ्वी तत्व। मनुष्य शरीर पांच तत्वों का होता है। तो मनुष्य को नहीं मारना काटना चाहिए। उखमज यानी पसीने से पैदा होने वालों में जल और पृथ्वी तत्व होता है। जिनसे अंडे की उत्पत्ति हो वो अंडज होते हैं। इसमें जल, पृथ्वी ,अग्नि तत्व होते हैं। पिंडज वो जिनसे पिंड की उत्पत्ति होती है।

सबसे पहले मां के पेट में पिंड ही बनता है। अभी शरीर का सिस्टम कैसे बनाया? कैसे उसको उतारा? कैसे जीवात्मा को बंद किया? जीवात्मा को चार शरीर के अंदर बंद किया। सबसे पहले ऊपर का कारण शरीर रूपी पतला खोल चढ़ाया। पांच तत्वों का वह भी होता है। रूप, रस, गंध ,स्पर्श और शब्द। पांच तत्वों का खोल जीवात्मा के ऊपर चढ़ा दिया। उसके ऊपर एक और खोल, नौ तत्व का और चढ़ाया जिसमें रूप, रस, गंध, स्पर्श, शब्द और मन, चित्त ,अहंकार ,बुद्धि। और उसके ऊपर एक और 17 तत्वों का खोल चढ़ाया जिसमें दसों इंद्रियों, चतु:श अंतकरण और तीन गुण का पर्दा चढ़ा दिया। ये लिंग शरीर कहलाया। फिर जीवात्मा के ऊपर स्थूल शरीर का मोटा पर्दा खोल चढाया। यानी यह पांच तत्वों-जल पृथ्वी अग्नि वायु और आकाश से बने हाड़-मांस के शरीर का।

ऊपरी लोकों में सुगंधी, प्रकाश, शब्द का भोजन होता है

इस शरीर का भोजन जड़ वस्तु बनाया गया जैसे धान, गेहूं, चना, बाजरा, मक्का, फल फूल आदि। फल-फूल के पेड़ भी सब जड़ होते हैं। जड़ वो जो एक जगह से दूसरी जगह आ-जा न सके। लिंग शरीर का भोजन खुशबू (सुगंधी) हैं। यह देवताओं का शरीर होता है। देवता इसी शरीर में रहते हैं। देवताओं का भोजन (सुगंधी) होता है। तभी तो लोग हवन करते हैं। यज्ञ में जौ, तिल, घी, मेवा आदि डालते हैं कि देवता खुश हो जाएं। अब यह जरूर है कि जब उनको बुलाने का तरीका, मंत्र मालूम होते हैं तब तो देवता आते और खाते हैं। नहीं तो 17 तत्वों का लिंग शरीर प्रेतों का भी होता है। तो उस (सुगंध के भोजन) को प्रेत खा जाते हैं। तो देवता नहीं आते-खाते तो प्रेत खाते हैं। और प्रेत ही फिर अपने को देवता कहने लगते हैं। फिर वह कूदने, बताने लगते हैं कि मैं दुर्गा, काली, भवानी, हनुमान जी आदि हूं। अब जिनको जानकारी नहीं होती, जो उन्हें नहीं देख सकते हैं, वह उनको देवता मान लेते हैं। वह सही करावे, गलत करा दे, मुर्गा, भैसा आदि कटवा दे, जो भी चाहे वह कर दे। बहुत से लोग कहते हैं कि दुर्गा जी, भैसा मुर्गा की बलि चाहती है। जीवात्मा के ऊपर दूसरा खोल सूक्ष्म शरीर का है। उसका भोजन प्रकाश (नूर) है। कारण शरीर का भोजन शब्द है। ढाई आखर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय। ढाई अक्षर क्या है? शब्द। जिस तरह से जीवात्मा उतारी गई है, उसी तरह से ही वापस ऊपर जाएगी।

सन्तों की परंपरा रही है, किसी न किसी को रहते समय ही तैयार कर देते हैं

महाराज जी ने 17 जून 2023 दोपहर करनाल (हरियाणा) में बताया कि सन्तों की यह परंपरा रही है कि जब दुनिया संसार से जाने लगते हैं तब किसी न किसी को (अपन) अधिकार देकर के जाते हैं। किसी ने किसी को रहते समय ही तैयार कर देते हैं। और फिर उनके लिए घोषणा कर देते हैं। अगर घोषणा नहीं भी करते हैं तो संकेत दे देते हैं और फिर उनकी पहचान कर ली जाती है। आज समय कम है, सुनाने का नहीं है। यूट्यूब पर बहुत से संतसंग पड़े हुए हैं। आपको प्रसंग सुनाया हुआ है कि कैसे मक्खन शाह ने परीक्षा लिया था। आप लोगों को मालूम है, इतिहास आप पढ़ते हो। पंजाब में ही हुए थे। तो पहचान भी कर ली जाती है। तो गुरु महाराज ने मुझ नाचीज को आदेश दिया, आप बहुत से लोगों को मालूम भी है कि यह (परम पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज) नए लोगों को नाम दान देंगे और पुरानों की संभाल करेंगे। पुरानों की संभाल वाली भी बात बताता रहता हूं। खान-पान, चाल-चलन, विचार-भावनाएं सही रखो। दो बात बर्दाश्त कर लो, लड़ाई-झगड़े से बचे रहोगे। एक रोटी का भूख रख करके खाओगे, बीमारी से बचे रहोगे। छोटे बन जाओगे तो सब प्यार करेंगे।*नानक नन्हे होय रहो, जैसे घास में दूब, और घास जल जाएगी, दूब खूब की खूब। देखो, गर्मी में बड़ी-बड़ी घास जल गई और जिस दूब घास पर आप बैठे हो यह समझो हमेशा हरी-भरी रहती है, कभी खत्म नहीं होती है क्योंकि इसकी जड़ बहुत नीचे तक जाती है।

नाम, वक्त गुरु के अधीन हुआ करता है

महाराज जी ने 17 जून 2023 दोपहर करनाल (हरियाणा ) में बताया कि वक्त गुरु को खोज, तेरे भले की कहूं। वक्त गुरु ही तेरा काम बनाएंगे। नाम, वक्त गुरु के आधीन हुआ करता है। वक्त के मास्टर, वक्त के डॉक्टर, वक्त के गुरु, वक्त के नाम की जरूरत होती है। यह जब बताया समझाया जाता है, तब जीव को ज्ञान, जानकारी होती है, इच्छा जगती है और उनके पास पहुंचता है तब वह दे देते हैं। और जब विश्वास के साथ करता है तो वही उसके लिए फलदाई हो जाता है। वही उसका लोक और परलोक दोनों बना देता है। जब तक इस दुनिया में रहता है, शरीर से सुखी, धन, पुत्र, परिवार में बढ़ोतरी और मानसिक शांति रहती है और अंत में उसकी जीवात्मा अपने प्रभु के पास, अपने घर पहुंच जाती है, जन्म मरण की पीड़ा से छुटकारा मिल जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *