एक सांस्कृतिक अभियान की रजत भूमिका : कृपाशंकर चौबे

युग प्रवर्तक साहित्यकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की स्मृति को संरक्षित करने का अभियान 25 साल पहले द्विवेदी जी की निर्वाण स्थली रायबरेली में कुछ पत्रकारों और हिंदी प्रेमियों ने शुरू किया था। वह अभियान आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति, रायबरेली के बैनरतले शुरू हुआ था जिसके संयोजक गौरव अवस्थी हैं। गौरव अवस्थी और उनके समानधर्मा साहित्यप्रेमियों ने द्विवेदी जी के स्मृति संरक्षण अभियान को पिछले 25 वर्षों में जिस तरह आगे बढ़ाया है, यह उनकी सांस्कृतिक प्रतिबद्धता का विरल उदाहरण है। स्मृति संरक्षण अभियान के परिणामस्वरूप 21 दिसंबर 1998 को रायबरेली शहर के राही ब्लाक परिसर में और 30 नवंबर 2010 को द्विवेदी जी के जन्मस्थान दौलतपुर में द्विवेदी जी की आवक्ष प्रतिमाएं स्थापित हुई।

गौरव अवस्थी ने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्मान में 1933 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ को खोज कर उसे 2015 में नेशनल बुक ट्रस्ट से पुनर्प्रकाशित कराया। उस पुनर्प्रकाशन में नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक (हिंदी) पंकज चतुर्वेदी और लेखक अरविंद कुमार सिंह की बड़ी भूमिकाएं रहीं। अभिनंदन ग्रंथ में आचार्य द्विवेदी का व्यक्तित्व-कृतित्व ही नहीं, साहित्य की तमाम विधाओं पर गहन मंथन है। उस ग्रंथ में महात्मा गांधी, थियोडोर वान विंटरस्टीन, नूट हामजून ग्रिम्सटैड, जार्ज ग्रियर्सन, एल.डी. बोमन, सुमित्रानंदन पंत, ज्वाला दत्त शर्मा, देवी दत्त शुक्ल, हरि भाऊ उपाध्याय, सत्यदेव परिव्राजक, रूपनारायण पांडेय, लल्लीप्रसाद पांडेय, रामबिहारी शुक्ल, लक्ष्मीधर वाजपेयी, ज्योतिप्रसाद मिश्र निर्मल, यज्ञदत्त शुक्ल, राम दास गौड़, केदारनाथ पाठक, चंद्रशेखर शास्त्री, देवी प्रसाद शुक्ल, भाई परमानंद और पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की श्रद्धांजलियां हैं।

जिस तरह महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ को साहित्य की सभी विधाओं-कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध, जीवनी, आलोचना के समांतर समाज शास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नागरिक शास्त्र, इतिहास और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान को भी महत्व देकर उसका फलक विस्तृत कर दिया था, उसी तरह अभिनंदन ग्रंथ में भी विषयों की विपुल विविधता है। ज्ञान के सभी अनुशासनों पर इस ग्रंथ में निबंध हैं। अभिनंदन ग्रंथ की प्रस्तावना में नंददुलारे वाजपेयी ने द्विवेदी जी के समय के हिंदी साहित्य को द्विवेदी युग का साहित्य कहा है। द्विवेदी जी की साहित्य की धारणा अत्यंत व्यापक थी। वे केवल कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक और आलोचना को ही साहित्य नहीं मानते थे।

उनके अनुसार किसी भाषा में मौजूद संपूर्ण ज्ञानराशि साहित्य है। साहित्य का यही अर्थ वांगमय शब्द से व्यक्त होता है। अपनी इसी धारणा को ध्यान में रखकर उन्होंने कविता, कहानी और आलोचना के साथ अर्थशास्त्र, भाषाशास्त्र, इतिहास, पुरातत्व, जीवनी, दर्शन, समाजशास्त्र, विज्ञान आदि पर लिखा। उनके साहित्य निर्माण की प्रक्रिया जितनी व्यापक है, उतनी ही विविधतामयी भी। वैसे तो इसका नाम अभिनंदन ग्रंथ है किंतु आज कल जैसी परिकल्पना से परे यह आचार्य द्विवेदी का प्रशंसा-ग्रंथ नहीं है, बल्कि हिंदी साहित्य, समाज, भाषा व ज्ञान का विमर्श है। यह ग्रंथ हमें यह प्रेरणा भी देता है कि अभिनंदन ग्रंथ में वस्तुतः युग का आकलन होना चाहिए। सम्यक आकलन के कारण ही यह ग्रंथ ज्ञानराशि का संचित कोश बल्कि भारतीय साहित्य का विश्वकोश है।

काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा 1933 में द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ समर्पित करने के अवसर पर महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने आचार्य द्विवेदी की महानता का बखान किया था। मैथिली शरण गुप्त ने कहा था कि हिंदी की आजीवन सेवा करने वाले और बोलियों में बंटी भाषा हिंदी को खड़ी बोली हिंदी का रूप देने वाले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी भाषा का परिमार्जन कर खड़ी बोली का रूप दिया। भाषा को नया व्याकरण दिया और नए-नए लेखक, साहित्यकार, कवि तैयार किए। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी ने आचार्य द्विवेदी के प्रति आदर भाव प्रकट करते हुए कहा था,”आज हम जो कुछ भी हैं, वह आचार्य द्विवेदी के बनाए हुए हैं। उन्होंने पथ बनाया और पथ प्रदर्शक का काम भी किया।” डॉ. नामवर सिंह ने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी युग प्रेरक सम्मान रायबरेली में ग्रहण करते समय कहा था कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी के प्रथम आचार्य हैं। उनके पहले सिर्फ संस्कृत के विद्वानों को ही आचार्य की पदवी से विभूषित किया जाता था।
द्विवेदी जी के स्मृति संरक्षण अभियान का एक और सुफल यह भी रहा कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति, रायबरेली के संयोजक गौरव अवस्थी की पहल पर राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान, रायबरेली के निदेशक भारत साह ने 2018 में मुंशी प्रेमचंद द्वारा 1930 में अपने संपादन में प्रकाशित कराई गई ‘विज्ञान वार्ता’ पुस्तक को पुनर्प्रकाशित किया। यह पुस्तक आचार्य द्विवेदी के तकनीक तथा विज्ञान पर आधारित लेखों का संग्रह है।

वर्ष 1964 में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की जन्म शताब्दी पर दौलतपुर में मेला लगा था। उस मेले में देशभर के सैकड़ों साहित्यकारों ने पधारकर अपने पूर्वज साहित्यकार व संपादक आचार्य द्विवेदी को दिल से याद किया था। उस मेले में महादेवी वर्मा समेत अनेक चोटी के साहित्यकार उपस्थित हुए थे। साहित्यकारों की अत्यधिक संख्या के चलते मेला अनवरत चार दिन तक चला था। 58 साल बाद रायबरेली में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति द्वारा एक बार फिर द्विवेदी मेला आयोजित किया जा रहा है। आचार्य द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान का यह 25वां वर्ष है। रजत जयंती समारोह राष्ट्रीय आयोजन समिति का गठन कर पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर, राम बहादुर राय और सूर्य प्रसाद दीक्षित को उसका संरक्षक, अरविंद कुमार सिंह को अध्यक्ष और गौरव अवस्थी को संयोजक बनाया गया है।

रजत जयंती वर्ष को यादगार बनाने के लिए समिति ने 11 और 12 नवंबर 2022 को रायबरेली जिला मुख्यालय पर ‘द्विवेदी मेला’ के रूप में मुख्य वार्षिक समारोह आयोजित किया है। इसमें देशभर से कई लेखक जुटेंगे। मेले के तहत दौलतपुर से लेकर रायबरेली तक विभिन्न कार्यक्रम मसलन-सम्मान समारोह, कवि सम्मेलन, संगोष्ठियां, ‘आचार्य पथ’ स्मारिका का विशेषांक, आचार्य द्विवेदी के जीवन वृत्त एवं स्वाधीनता संग्राम पर आधारित प्रदर्शनी, गीत एवं नृत्य, नाटक का मंचन होगा। इसी क्रम में छह नवंबर से 12 नवंबर तक फिरोज गांधी कालेज सभागार परिसर में पुस्तक मेला भी आयोजित किया गया है जो सुबह 10 बजे से शाम पांच बजे तक सभी लोगों के लिए खुला रहेगा। द्विवेदी मेले में पहली बार ऐसी प्रदर्शनी भी लगने जा रही है जिसमें साहित्य और स्वाधीनता संग्राम का इतिहास नई पीढ़ी को पढ़ने और जानने को मिलेगा। प्रदर्शनी में आचार्य द्विवेदी का जीवन वृत्त और उनका कृतत्व जाना जा सकेगा।

अपने समय में देश दुनिया की खबरों और खोजों से बाखबर करने वाली ‘सरस्वती’ पत्रिका के मुखपृष्ठ प्रदर्शनी के खास आकर्षण होंगे। द्विवेदी जी ने 1903 से 1920 तक ‘सरस्वती’ का संपादन किया था। प्रदर्शनी में आकर प्रथम स्वाधीनता संग्राम के महानायक राना बेनी माधव बक्श सिंह और किसान आंदोलन का इतिहास भी जाना जा सकेगा। द्विवेदी मेले कা लोगो भी जारी किया गया है। लोगो का थीम रजत जयंती वर्ष पर नए सूर्योदय पर आधारित है। मेले के तहत होने वाले कार्यक्रम सूर्य की रश्मियों की तरह चित्रित किए गए हैं। लोगो का निर्माण राजीव कुमार ने किया है।

आचार्य द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान भारत के दूसरे हिस्सों में भी पहुंच रहा है। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान रजत जयंती वर्ष को यादगार बनाने के लिए डॉ. राममनोहर त्रिपाठी सेवा समिति, मुंबई ने 27 अक्टूबर 2022 को महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के सान्निध्य एवं गीतकार मनोज मुंतशिर के मुख्य आतिथ्य में राजभवन में सम्मान समारोह एवं कवि सम्मेलन आयोजित किया। समारोह में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति, रायबरेली के संयोजक गौरव अवस्थी को सम्मानित किया गया।

आचार्य द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान अब सात समंदर पार कर विदेश भी पहुंच गया है। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति की अमेरिकी इकाई की भी स्थापना हो गई है। मंजु मिश्रा उसकी अध्यक्ष हैं। अमेरिकी इकाई के सहयोग से व्याख्यान व निबंध प्रतियोगिता के आयोजन हो चुके हैं। इन सारी सफलताओं का सारा श्रेय गौरव अवस्थी को जाता है। भारत और भारत के बाहर सांस्कृतिक जागरण लाने का जो बड़ा काम  अवस्थी कर रहे हैं, उसके लिए वे साधुवाद के अधिकारी हैं।
(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में प्रोफेसर हैं)

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